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वाल्मिकी बाघ अभयारण्य की बीमार बाघिन को बेहतर इलाज के लिए पटना चिड़ियाघर लाया गया

पटना, 01 अगस्त : बिहार के वाल्मिकी बाघ अभयारण्य (वीटीआर) की बीमार बाघिन को बेहतर इलाज के लिए पटना चिड़ियाघर लाया गया है और वन विभाग के अधिकारी उसकी जान बचाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं।

बीमार बाघिन की उम्र लगभग दस साल है। उसकी विशिष्ट पहचान (यूआईडी) संख्या-8 है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग (डीईएफसीसी) के अधिकारी उसे बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान वीटीआर से सोमवार रात पटना चिड़ियाघर ले आए।

बिहार के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक और मुख्य वन्यजीव वार्डन पी के गुप्ता ने मंगलवार को बताया, “बाघिन (यूआईडी नंबर-8) अब पटना चिड़ियाघर के अधिकारियों और पशु चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम की निरंतर निगरानी में है। हम उसे पटना चिड़ियाघर में सर्वोत्तम इलाज प्रदान कर रहे हैं… बीमार बाघिन को बचाने के प्रयास जारी हैं।'”

गुप्ता ने कहा, “वीटीआर के अधिकारी घायल बाघिन को बिना पिंजड़े में कैद किए उसके प्राकृतिक आवास में चिकित्सा सहायता दे रहे थे, पर हमने उसे बेहतर इलाज के लिए पटना चिड़ियाघर लाने का फैसला किया। आशंका है कि बाघिन के बाएं अंग पर गंभीर चोट आई है, क्योंकि वह ठीक से चल नहीं पा रही है।”

उन्होंने बताया, ‘”बाघिन के घायल बाएं अंग में सूजन है, पर बाहरी चोट या खून के धब्बे का कोई निशान नहीं पाया गया है। ऐसा भी प्रतीत होता है कि बाघिन को अत्यधिक दर्द है और वह कुछ दिनों से भूखी थी, क्योंकि किसी पर हमला करने की स्थिति में नहीं थी। बाघिन का बायां कैनाइन (ऊपर का दांत) भी टूट गया है।”

गुप्ता ने कहा कि बाघिन को पहली बार 28 जुलाई को वीटीआर में पंडई नदी के पास देखा गया था। उन्होंने बताया कि डीईएफसीसी ने बाघिन की स्थिति के बारे में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को भी सूचित किया है।

‘प्रोजेक्ट टाइगर’ का संचालन करने वाला सर्वोच्च निकाय एनटीसीए, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है, जिसे 2006 में संशोधित वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के सक्षम प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया है, ताकि सौंपी गई शक्तियों और कार्यों के अनुसार बाघ संरक्षण के प्रयासों को और भी सशक्त बनाया जा सके।

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