नई दिल्ली, 03 फरवरी: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को न्याय दिए जाने की कानूनी प्रणाली पर पुनर्विचार और उसमें सुधार करने का आह्वान करते हुए शनिवार को कहा कि अपराधी विभिन्न क्षेत्रों में वित्त पोषण और संचालन के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

राष्ट्रमंडल विधि शिक्षा संघ (सीएलईए)-राष्ट्रमंडल अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल सम्मेलन (सीएएसजीसी) में मोदी ने कहा कि देश पहले से ही हवाई यातायात नियंत्रण और समुद्री यातायात के क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ काम कर रहे हैं और उन्होंने इस सहयोग को जांच तथा न्याय दिए जाने की प्रक्रिया तक बढ़ाने की पैरवी की।

उन्होंने कहा, ”जब हम एक साथ मिलकर काम करते हैं तो क्षेत्राधिकार न्याय देने का जरिया बन जाता है न कि उसमें देरी करने का।” उन्होंने कहा कि अपराध की प्रकृति और दायरे में आमूलचूल परिवर्तन देखा गया है। उन्होंने कहा कि कई बार किसी एक देश में न्याय सुनिश्चित करने के लिए दूसरे देशों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता पड़ती है।

प्रधानमंत्री ने उम्मीद जतायी कि यह सम्मेलन इसे सुनिश्चित करने के लिए काम करेगा कि सभी को समय पर न्याय मिले और कोई भी पीछे न छूटे। उन्होंने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी का उदय और साइबर खतरे नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं और ऐसे में न्याय देने की प्रणाली को अधिक लचीला तथा सुगम बनाने की आवश्यकता है।

मोदी ने कहा कि 21वीं सदी की चुनौतियों से 20वीं सदी के तौर-तरीकों के साथ नहीं लड़ा जा सकता है। प्राचीन भारतीय मान्यताओं का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि न्याय स्वतंत्र स्व-शासन के मूल में है और बिना न्याय के राष्ट्र का अस्तित्व संभव नहीं है।

अफ्रीकी देशों के बड़ी संख्या में प्रतिनिधि मौजूद होने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत के अफ्रीकी संघ के साथ खास संबंध हैं। उन्होंने कहा, ”हमें गर्व है कि भारत की अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ जी20 का हिस्सा बना।”

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि न्याय देने की प्रक्रिया में कानूनी शिक्षा एक अहम उपकरण है और उन्होंने विधि स्कूलों में अधिक महिलाओं के होने पर जोर दिया ताकि कानून प्रणाली में उनकी उपस्थिति बढ़ें।

मोदी ने कहा कि दुनिया को युवा विधि प्रतिभाओं की जरूरत है जिनके पास विविध अनुभव हो। उन्होंने कहा कि कानूनी शिक्षा में बदलते वक्त और प्रौद्योगिकी के अनुसार परिवर्तन की आवश्यकता है। इस सम्मेलन की थीम ”न्याय देने की प्रक्रिया में सीमा पार चुनौतियां” है। यह सम्मेलन कानून और न्याय से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे न्यायिक परिवर्तन और कानूनी अभ्यास के नैतिक आयामों पर विचार-विमर्श करेगा।

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