नई दिल्ली, 22 जुलाई: वर्ष 2002 में पूर्व सैन्य अधिकारी एमएस अहलूवालिया द्वारा दायर मानहानी मामले में करीब 22 वर्ष बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए समाचार पत्रिका तहलका, इसके पूर्व प्रधान संपादक तरुण तेजपाल, अनिरुद्ध बहल, मैथ्यू सैम्युएल और एक कंपनी पर दो करोड़ का हर्जाना लगाया है।
पूर्व सैन्य अधिकारी को बड़ी राहत देते हुए न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि पीड़ित सैन्य अधिकारी बीते कई वर्षों से न सिर्फ इस बदनामी के साथ समाज में रहने को मजबूर है, बल्कि पहले ही कोर्ट आफ इंक्वायरी का भी सामना कर चुके हैं। स्टिंग ऑपरेशन में लगाए गए आरोप के कारण उन्हें सेना अधिकारी के लिए अयोग्य भी घोषित किया गया था। ऐसे में इस मामले में माफी न केवल अपर्याप्त हैं बल्कि अर्थहीन भी है।
ऐसे में पीड़ित की क्षतिपूर्ति के लिए आरोपितों को दो करोड़ रुपये हर्जाने के तौर पर देने होंगे। अदालत ने कहा कि कहा कि पीड़ित पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों से न सिर्फ उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची थी बल्कि उनके चरित्र पर भी दाग लग गया था। तहलका और उसके पत्रकारों ने खबरें लिखकर अहलूवालिया को बदनाम किया, जबकि उन्होंने कभी किसी पैसे की मांग नहीं की थी।
ये था मामला : तहलका की ओर से मार्च 2001 में आपरेशन वेस्ट एंड के नाम से एक स्टिंग आपरेशन कर एक खबर प्रकाशित की गई। इसमें अहलूवालिया पर रक्षा सौदों में रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। वर्ष 2002 में अहलूवालिया ने मानहानि मुकदमा दायर कर तर्क दिया था कि तहलका के वीडियो टेप के साथ-साथ प्रकाशित खबर ने समाज में यह धारणा बनाने में मदद की कि उन्होंने संबंधित पत्रकार से शराब और 10 लाख रुपये की मांग की थी। इससे उनकी छवि धूमिल हुई है, उनके चरित्र और प्रतिष्ठा पर भी आक्षेप लगाए गए हैं।