नई दिल्ली, 03 फरवरी: विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन ने देश के कुछ मुस्लिम नेताओं पर न्यायपालिका को धमकाने और मुस्लिम समाज को भड़काने का आरोप लगाते हुए देश के मुस्लिम समाज से ऐसे कट्टरपंथी नेताओं को ठुकरा कर सह-अस्तित्व में विश्वास रखने वाले नेतृत्व को स्थापित करने की अपील की है।
डॉ. सुरेंद्र जैन ने कहा कि ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में अदालत के आदेश से हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार मिला है। आज से 30 साल पहले मुलायम सिंह यादव ने मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण से बिना किसी लिखित आदेश के हिंदुओं को पूजा करने के इस अधिकार से वंचित कर दिया था। हिंदुओं के साथ किए गए उस अन्याय को न्यायालय ने न्यायोचित तरीके से ठीक कर दिया और संपूर्ण देश को इसका स्वागत करना चाहिए।
जैन ने आगे कहा कि अगर किसी भी वर्ग के साथ अन्याय हुआ हो और उस अन्याय को न्यायपालिका ठीक करती है, तो सभी को इसका स्वागत करना चाहिए, लेकिन जिस प्रकार से मुस्लिम पक्ष के कुछ नेताओं ने न्यायपालिका के इस निर्णय पर मुस्लिम समाज को भड़काने की कोशिश की है, काशी के अंदर दंगे और उपद्रव की स्थिति लाने की कोशिश की है, वह घोर आपत्तिजनक और निंदनीय है।
उन्होंने कहा कि एक ओर मुस्लिम पक्ष न्यायपालिका में अपील के लिए भी जा रहे हैं और वहीं सड़क पर दंगे भी करने की कोशिश कर रहे हैं। विहिप नेता ने आगे कहा कि मुस्लिम पक्ष के कुछ नेता यह बयान देते हैं कि मुस्लिम समाज का न्यायपालिका पर से विश्वास उठ रहा है, वह न्यायपालिका को धमकाने का प्रयास कर रहे हैं और इस तरह का प्रयास वह हर बार करते हैं, जब अदालत का कोई फैसला मुल्ला-मौलवियों की इच्छा और इरादों के खिलाफ जाता हैं।
उन्होंने कहा कि इसी तरह का माहौल इन्होंने शाहबानो प्रकरण में आए न्यायपालिका के फैसले के समय बनाया, हिजाब के समय बनाया, ट्रिपल तलाक पर आए फैसले के समय बनाया और यहां तक कि अयोध्या मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लेकर ये नेता आज भी विषवमन करते रहते हैं।
जैन ने कहा कि मुस्लिम समाज का यह कट्टरपंथी नेतृत्व मुस्लिम समाज को आत्मघाती रास्ते पर ले जा रहा है, इसलिए वह मुस्लिम समाज से ऐसे कट्टरपंथी नेताओं को ठुकरा कर सह-अस्तित्व में विश्वास रखने वाले नेतृत्व को स्थापित करने की अपील करते हैं।
उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं या विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा किए गए अन्याय के साथ खड़े होने वाला समाज संघर्ष को बढ़ावा देता है और यह किसी भी तरह से सह-अस्तित्व के सिद्धांत पर नहीं चल सकता है और ऐसे कट्टरपंथी नेता मुस्लिम समाज को भी प्रगति के रास्ते पर नहीं ले जा सकते।