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ढाका/नई दिल्ली: बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के पुत्र तारिक रहमान की संभावित वतन वापसी को देश की राजनीति में एक बड़े सियासी घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है। लंबे समय से विदेश में रह रहे तारिक रहमान की वापसी न केवल बांग्लादेश के आंतरिक राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकती है, बल्कि इसका सीधा असर भारत-बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ने की संभावना जताई जा रही है।

विपक्ष को मिल सकती है नई धार

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, तारिक रहमान की सक्रिय राजनीति में वापसी से BNP को नई मजबूती मिल सकती है। वर्तमान राजनीतिक माहौल में विपक्ष बिखरा हुआ नजर आता है, ऐसे में तारिक रहमान की मौजूदगी पार्टी को संगठित कर सकती है और सरकार के खिलाफ आंदोलन को नई दिशा दे सकती है। इससे आने वाले चुनावों में सत्तारूढ़ अवामी लीग के लिए चुनौती बढ़ सकती है।

भारत की चिंता और कूटनीतिक संतुलन

भारत के लिए तारिक रहमान की वापसी अहम है, क्योंकि BNP के शासनकाल में दोनों देशों के रिश्तों में कई बार तनाव देखा गया था। सीमा सुरक्षा, आतंकवाद और उत्तर-पूर्व भारत में उग्रवादी गतिविधियों को लेकर नई दिल्ली की चिंताएं बढ़ी थीं। हालांकि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में यह भी माना जा रहा है कि सत्ता में आने की स्थिति में BNP भारत के साथ व्यावहारिक और संतुलित संबंध बनाए रखने की कोशिश कर सकती है।

क्षेत्रीय राजनीति पर भी नजर

दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव और अमेरिका की सक्रियता के बीच बांग्लादेश की राजनीति में कोई भी बड़ा बदलाव क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित करता है। तारिक रहमान की वापसी से बांग्लादेश की विदेश नीति की प्राथमिकताओं में बदलाव संभव है, जिसका असर भारत सहित पूरे क्षेत्र पर पड़ सकता है।

आगे क्या?

कुल मिलाकर, तारिक रहमान की वतन वापसी बांग्लादेश की राजनीति में नया मोड़ ला सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी वापसी राजनीतिक स्थिरता को मजबूत करती है या फिर भारत-बांग्लादेश संबंधों समेत क्षेत्रीय राजनीति में नई चुनौतियां खड़ी करती है।

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