नई दिल्ली, 04 फरवरी: उच्चतम न्यायालय ने अवैध बंगलादेशी प्रवासियों को उनके देश भेजने के बजाय पूरे भारत के सुधार गृहों में लंबे समय तक हिरासत में रखने के संबंध में सोमवार को केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा।

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने इस बात पर बल दिया कि जब किसी अवैध बंगलादेशी प्रवासी को पकड़ा जाता है और विदेशी अधिनियम, 1946 के अंतर्गत उसे दोषी ठहराया जाता है, तो उसकी सजा पूरी होने के तुरंत बाद उसे निर्वासित किया जाना चाहिए।

पीठ ने पूछा कि “विदेशी अधिनियम के अंतर्गत अपनी सजा पूरी करने के बाद वर्तमान में कितने अवैध आप्रवासियों को विभिन्न सुधार गृहों में हिरासत में रखा गया है?”

शीर्ष अदालत ने लगभग 850 अवैध प्रवासियों की अनिश्चितकालीन हिरासत पर चिंता व्यक्त की और 2009 के परिपत्र के खंड 2 (v) का पालन करने में सरकार की विफलता पर सवाल उठाया, जो निर्वासन प्रक्रिया को 30 दिनों में पूरा करने का आदेश देता है।

न्यायालय ने इस बात पर भी केंद्र से ठोस स्पष्टीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार से क्या कदम अपेक्षित हैं।

माजा दारूवाला बनाम भारत संघ का मामला 2013 में कलकत्ता उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित किया गया था।

यह मामला मूल रूप से 2011 में शुरू हुआ जब एक याचिकाकर्ता ने अवैध बंगलादेशी प्रवासियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला, जिन्हें उनकी सजा पूरी होने के बाद भी पश्चिम बंगाल सुधार गृहों में कैद रखा गया था।

शीर्ष अदालत में स्थानांतरित होने से पहले कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया था। पीठ ने कहा कि ये प्रथाएं मौजूदा दिशा-निर्देशों के विपरीत हैं, जो तेजी से निर्वासन प्रक्रियाओं की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। मामले की अगली सुनवाई 06 फरवरी, 2025 को निर्धारित है।

गौरतलब है कि न्यायमूर्ति ओका की अगुवाई वाली उच्चतम न्यायालय की एक अन्य पीठ ने हाल ही में असम में अवैध अप्रवासियों की अनिश्चितकालीन हिरासत के संबंध में इसी तरह की चिंता व्यक्त की है।

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