नई दिल्ली। देश की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक अरावली रेंज को लेकर जारी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए एक बार फिर मामले की सुनवाई करने का फैसला किया है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ सोमवार को इस अहम मुद्दे पर सुनवाई करेगी। अदालत की यह पहल ऐसे समय में आई है, जब पर्यावरणविद और सामाजिक संगठन अरावली की प्रस्तावित नई परिभाषा को लेकर गंभीर चिंता जता रहे हैं।
दरअसल, विवाद अरावली रेंज की उस नई परिभाषा को लेकर है, जिसमें 100 मीटर की ऊंचाई के मानदंड को आधार बनाया गया है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस मानक को लागू किया गया, तो अरावली के बड़े हिस्से को ‘पर्वतीय क्षेत्र’ की श्रेणी से बाहर कर दिया जाएगा। इससे उन इलाकों में खनन, निर्माण और औद्योगिक गतिविधियों का रास्ता साफ हो सकता है, जो अब तक संरक्षित माने जाते रहे हैं।
पर्यावरणविदों की चिंता
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का तर्क है कि अरावली सिर्फ पहाड़ियों का समूह नहीं, बल्कि उत्तर भारत की पर्यावरणीय रीढ़ है। यह दिल्ली-एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में भूजल संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण और मरुस्थलीकरण रोकने में अहम भूमिका निभाती है। नई परिभाषा लागू होने से न केवल जैव विविधता को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि भविष्य में जल संकट और प्रदूषण की समस्या भी गंभीर हो सकती है।
पहले भी हो चुकी है सुनवाई
अरावली से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट पहले भी सख्त रुख अपनाता रहा है। अदालत पूर्व में अवैध खनन और पर्यावरणीय नुकसान पर कड़ी टिप्पणियां कर चुकी है। ऐसे में मौजूदा स्वतः संज्ञान को विशेषज्ञ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम मान रहे हैं।
आज की सुनवाई पर टिकी निगाहें
सोमवार को होने वाली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट यह तय कर सकता है कि
* नई परिभाषा पर्यावरणीय दृष्टि से कितनी उचित है,
* क्या 100 मीटर ऊंचाई का मानदंड वैज्ञानिक आधार पर सही है,
* और क्या इससे अरावली के संरक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
देशभर की नजरें अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, क्योंकि यह फैसला न सिर्फ अरावली रेंज, बल्कि भविष्य की पर्यावरण नीति के लिए भी दिशा तय कर सकता है।