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बांग्लादेश में फिर हिंसा का तांडव, BNP नेता को सिर में मारी गई गोली, हादी की मौत के बाद बढ़ा तनाव

ढाका, 22 दिसंबर: बांग्लादेश में राजनीतिक हिंसा एक बार फिर भड़क उठी है। विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के एक नेता को अज्ञात हमलावरों ने सिर में गोली मार दी। यह घटना हाल ही में हुई हादी की मौत के बाद सामने आई है, जिससे पूरे इलाके में तनाव और दहशत का माहौल बन गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, घायल BNP नेता को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनकी स्थिति नाजुक बताई जा रही है। घटना के बाद इलाके में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है, जबकि हमलावरों की तलाश जारी है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले हादी की संदिग्ध हालात में हुई मौत ने पहले ही राजनीतिक हलकों में उबाल ला दिया था। अब BNP नेता पर हुए इस जानलेवा हमले ने हालात को और बिगाड़ दिया है। विपक्ष ने इस घटना के लिए सत्ताधारी दल पर निशाना साधते हुए कानून-व्यवस्था की विफलता का आरोप लगाया है। वहीं, स्थानीय प्रशासन का कहना है कि मामले की गंभीरता से जांच की जा रही है और दोषियों को जल्द गिरफ्तार किया जाएगा। राजनीतिक अस्थिरता के इस दौर में लगातार हो रही हिंसक घटनाओं ने बांग्लादेश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।

बिहार की सियासत में उथल-पुथल: नितिन नबीन को दिल्ली की राह, कुशवाहा बाहर! चिराग की निर्णायक भूमिका

पटना, 22 दिसंबर: बिहार में राज्यसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा चरम पर है। राजधानी पटना से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक गलियारों में जोड़-घटाव का खेल तेज हो चुका है। इस सियासी बिसात पर जहां भाजपा के वरिष्ठ नेता नितिन नबीन की राज्यसभा में एंट्री लगभग तय मानी जा रही है, वहीं उपेंद्र कुशवाहा की विदाई की अटकलें भी जोर पकड़ चुकी हैं। इसी बीच, चिराग पासवान के लिए यह चुनाव महज औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि उनकी राजनीतिक ताकत और भविष्य की दिशा तय करने वाली अग्निपरीक्षा बनता जा रहा है। नितिन नबीन को दिल्ली भेजने की तैयारी सूत्रों के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी बिहार कोटे से राज्यसभा की एक सीट पर नितिन नबीन को भेजने की रणनीति पर अंतिम चरण में है। संगठन और सरकार दोनों स्तरों पर उनकी मजबूत पकड़ और लंबे अनुभव को देखते हुए पार्टी उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका सौंपना चाहती है। माना जा रहा है कि यह फैसला बिहार भाजपा के भीतर संतुलन साधने और संगठन को नई धार देने के उद्देश्य से लिया जा रहा है।  कुशवाहा के लिए सियासी संकट दूसरी ओर, राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी राज्यसभा सीट बचाने की है। बदले हुए राजनीतिक समीकरणों में उनके पक्ष में आवश्यक संख्या बल जुटा पाना मुश्किल नजर आ रहा है। ऐसे में राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस बार कुशवाहा का राज्यसभा से बाहर होना लगभग तय है। यह उनकी सक्रिय राजनीति के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। चिराग पासवान की होगी असली परीक्षा राज्यसभा चुनाव चिराग पासवान के लिए बेहद अहम है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता के रूप में यह चुनाव उनके राजनीतिक वजन को परखने का मौका है। सवाल यह है कि चिराग किस खेमे के साथ खड़े होते हैं और उनके समर्थन से सत्ता समीकरण कितना प्रभावित होता है। इस चुनाव के जरिए चिराग यह दिखाने की कोशिश करेंगे कि वे सिर्फ विरासत के नेता नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाने वाले सियासी खिलाड़ी हैं।

बांग्लादेश में हिंसा पर शेख हसीना की चेतावनी — ‘जिस अराजकता ने मेरी सरकार गिराई, वही हालात फिर लौट रहे हैं’

 22 दिसंबर : बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश में लगातार बढ़ रही हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने मौजूदा प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस को सीधे शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि जिस तरह की अराजकता आज बांग्लादेश में दिखाई दे रही है, वही हालात कभी उनकी सरकार के पतन का कारण बने थे। शेख हसीना ने कहा कि देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। राजनीतिक विरोध, हिंसक झड़पें, अल्पसंख्यकों पर हमले और सरकारी संस्थानों पर जनता का घटता भरोसा बांग्लादेश के भविष्य के लिए खतरनाक संकेत हैं। उन्होंने कहा, “मैंने यह सब पहले भी देखा है। जब अराजकता बढ़ती है और सरकार हालात संभालने में नाकाम रहती है, तो सत्ता टिक नहीं पाती।” पूर्व प्रधानमंत्री ने मौजूदा सरकार पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि सिर्फ सत्ता में बने रहना ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि जनता की सुरक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है। उनके अनुसार, अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो हालात और भी गंभीर हो सकते हैं। शेख हसीना ने यह भी कहा कि राजनीतिक मतभेद लोकतंत्र का हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें हिंसा में बदलने देना देश को कमजोर करता है। उन्होंने प्रधानमंत्री यूनुस से अपील की कि वे सख्त निर्णय लें, कानून-व्यवस्था बहाल करें और सभी वर्गों को विश्वास में लेकर आगे बढ़ें। गौरतलब है कि हाल के हफ्तों में बांग्लादेश के कई हिस्सों से हिंसा, आगजनी और विरोध-प्रदर्शन की खबरें सामने आई हैं। ऐसे में शेख हसीना का यह बयान न केवल राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है, बल्कि आने वाले दिनों में देश की राजनीति की दिशा को भी प्रभावित कर सकता है।

TMC से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने बनाई नई पार्टी, ‘जनता उन्नयन पार्टी’ के नाम से राजनीति में नई एंट्री

मुर्शिदाबाद, 22 दिसंबर: तृणमूल कांग्रेस (TMC) से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में नया कदम उठाते हुए अपनी अलग राजनीतिक पार्टी का ऐलान कर दिया है। कबीर ने अपनी पार्टी का नाम ‘जनता उन्नयन पार्टी’ रखा है। मुर्शिदाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान हुमायूं कबीर ने पार्टी के गठन की घोषणा करते हुए कहा कि उनकी नई पार्टी आम लोगों के विकास, अधिकार और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर काम करेगी। उन्होंने संकेत दिए कि आगामी चुनावों में जनता उन्नयन पार्टी राज्य की कई सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। पार्टी के चुनाव चिह्न को लेकर हुमायूं कबीर ने बताया कि उनकी पहली पसंद ‘टेबल’है, जबकि दूसरी पसंद ‘जुड़े गुलाब’ (ट्विन रोजेज) को रखा गया है। चुनाव आयोग की मंजूरी के बाद अंतिम चुनाव चिह्न पर फैसला होगा। गौरतलब है कि हुमायूं कबीर हाल के दिनों में अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहे थे, जिसके बाद उन्हें तृणमूल कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया था। अब नई पार्टी के गठन के साथ उन्होंने साफ कर दिया है कि वे बंगाल की राजनीति में स्वतंत्र तौर पर अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं।

एपस्टीन फाइल्स विवाद: क्यों हटाई गई थीं ट्रंप की तस्वीरें? विरोध के बाद अमेरिकी न्याय विभाग ने दी सफाई

22 दिसंबर, अंतरराष्ट्रीय डेस्क: अमेरिकी न्याय विभाग (US Department of Justice) एक बार फिर जेफरी एपस्टीन से जुड़ी फाइलों को लेकर विवादों में घिर गया है। एपस्टीन केस से जुड़े सार्वजनिक दस्तावेजों से पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तस्वीरें अचानक गायब होने के बाद अमेरिका की राजनीति और सोशल मीडिया में हलचल मच गई थी। भारी आलोचना और विरोध के बाद अब न्याय विभाग ने न केवल ये तस्वीरें दोबारा डेटाबेस में अपलोड कर दी हैं, बल्कि इन्हें हटाने की वजह भी स्पष्ट की है। क्या है पूरा मामला? दरअसल, ‘एपस्टीन फाइल्स ट्रांसपेरेंसी एक्ट’ के तहत अमेरिकी न्याय विभाग ने हाल ही में जेफरी एपस्टीन से जुड़े कई दस्तावेज सार्वजनिक किए थे। इनमें कुछ तस्वीरें और रिकॉर्ड ऐसे भी थे, जिनमें डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी दिखाई दे रही थी। लेकिन कुछ ही समय बाद ट्रंप से जुड़ी तस्वीरें वेबसाइट से हटा दी गईं, जबकि अन्य सार्वजनिक हस्तियों से संबंधित सामग्री यथावत बनी रही। इस कदम को लेकर विपक्षी नेताओं, मानवाधिकार संगठनों और सोशल मीडिया यूजर्स ने सवाल उठाए। आरोप लगाए गए कि न्याय विभाग राजनीतिक दबाव में काम कर रहा है और तथ्यों को छिपाने की कोशिश की जा रही है। न्याय विभाग की सफाई विवाद बढ़ने के बाद अमेरिकी न्याय विभाग ने बयान जारी कर कहा कि ट्रंप की तस्वीरों को जानबूझकर नहीं हटाया गया था। विभाग के मुताबिक, “डेटाबेस अपडेट और तकनीकी समीक्षा के दौरान कुछ फाइलें अस्थायी रूप से ऑफलाइन हो गई थीं। इसका किसी व्यक्ति विशेष को बचाने या जानकारी छिपाने से कोई संबंध नहीं है।” न्याय विभाग ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी प्रासंगिक दस्तावेजों को दोबारा जांच के बाद सार्वजनिक कर दिया गया है और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए आगे भी नियमित अपडेट किए जाएंगे। राजनीतिक असर और प्रतिक्रियाएं हालांकि सफाई के बावजूद यह मामला राजनीतिक रंग ले चुका है। ट्रंप समर्थकों का कहना है कि पूर्व राष्ट्रपति को बदनाम करने के लिए उनका नाम बार-बार उछाला जा रहा है, जबकि विरोधियों का आरोप है कि शक्तिशाली लोगों को बचाने की कोशिश की जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि एपस्टीन केस से जुड़े दस्तावेज आने वाले समय में अमेरिकी राजनीति में और उथल-पुथल मचा सकते हैं, खासकर ऐसे दौर में जब राष्ट्रपति चुनाव नजदीक हैं। ट्रंप की तस्वीरों का हटना और फिर दोबारा सामने आना यह दिखाता है कि एपस्टीन फाइल्स सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक और नैतिक बहस का भी बड़ा मुद्दा बन चुकी हैं। अब सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि आने वाले दिनों में और कौन-कौन से नाम और तथ्य सामने आते हैं।

मनरेगा की जगह नया कानून: ‘विकसित भारत – जी राम जी’ से ग्रामीणों को मिलेगा 125 दिन का काम

दिल्ली, 21 दिसंबर: ग्रामीण भारत के लिए सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ‘विकसित भारत – जी राम जी’ बिल को मंज़ूरी दे दी है। इस बिल के लागू होते ही अब मनरेगा की जगह नई रोजगार योजना शुरू होगी। सरकार का कहना है कि इससे गांवों में रहने वाले परिवारों को ज़्यादा काम मिलेगा और उनकी आमदनी बढ़ेगी। क्या है नया बदलाव? अब तक मनरेगा के तहत ग्रामीण परिवारों को साल में 100 दिन का रोजगार मिलता था। नई योजना में यह सीमा बढ़ाकर 125 दिन कर दी गई है। यानी अब गांव के लोगों को साल में 25 दिन ज़्यादा काम मिलने का वादा किया गया है। किसे मिलेगा फायदा? इस योजना का फायदा हर ग्रामीण परिवार को मिलेगा। खासतौर पर * गरीब और मजदूर परिवार * जिनके पास स्थायी नौकरी नहीं है * जो काम के लिए शहरों में पलायन करने को मजबूर होते हैं सरकार का मानना है कि ज्यादा काम मिलने से लोग गांव में ही रहकर कमाई कर सकेंगे। किस तरह का काम मिलेगा? नई योजना में सिर्फ गड्ढे खोदने या अस्थायी काम पर ज़ोर नहीं होगा। इसके तहत गांवों में ऐसे काम कराए जाएंगे जो लंबे समय तक फायदा दें, जैसे— * तालाब, नहर और जल संरक्षण के काम * ग्रामीण सड़कें और रास्ते * पंचायत भवन और सामुदायिक भवन * खेती और पर्यावरण से जुड़े काम पैसे का भुगतान कैसे होगा? सरकार का कहना है कि मजदूरी का पैसा सीधे बैंक खाते में भेजा जाएगा। पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी ताकि * भुगतान में देरी न हो * भ्रष्टाचार कम हो * सही व्यक्ति को सही पैसा मिले सरकार क्यों ला रही है यह योजना? सरकार के अनुसार यह योजना ‘विकसित भारत–2047’ के लक्ष्य का हिस्सा है। मकसद है कि * गांव मज़बूत बनें * लोगों को गांव में ही काम मिले * शहरों पर आबादी का दबाव कम हो  विपक्ष और विशेषज्ञ क्या कहते हैं? कुछ विपक्षी दलों का कहना है कि मनरेगा जैसी पुरानी योजना हटाने से शुरुआत में परेशानी हो सकती है। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि योजना अच्छी है, लेकिन यह तभी सफल होगी जब * इसके लिए पूरा बजट मिले * राज्यों के साथ मिलकर सही ढंग से इसे लागू किया जाए * काम और भुगतान समय पर हों  नतीजा क्या निकलेगा? कुल मिलाकर, ‘विकसित भारत – जी राम जी’ योजना को गांवों के लिए एक नई शुरुआत माना जा रहा है। अब देखना यह होगा कि यह योजना कागज़ों तक सीमित रहती है या सच में गांव के लोगों की ज़िंदगी में बदलाव लाती है।

बिहार हिजाब विवाद की आंच झारखंड तक: इरफान अंसारी के बयान से JMM ने बनाई दूरी

नुसरत को नौकरी ऑफर बना सियासी मुद्दा पटना, 21 दिसंबर: बिहार के एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नुसरत परवीन के साथ कथित तौर पर हिजाब खींचे जाने की घटना ने न सिर्फ राज्य की राजनीति को झकझोर दिया है, बल्कि इसकी गूंज अब झारखंड तक सुनाई दे रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह राज्य से उठे इस विवाद पर झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी की प्रतिक्रिया ने नई सियासी बहस छेड़ दी है। मामले के सामने आने के बाद मंत्री इरफान अंसारी ने डॉक्टर नुसरत परवीन के समर्थन में बयान देते हुए झारखंड में नौकरी देने का ऑफर दिया। उनका कहना था कि अगर बिहार में उन्हें असुरक्षित महसूस हो रहा है, तो झारखंड सरकार उनके लिए अवसर उपलब्ध करा सकती है। यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ और इसे एक मानवीय पहल के तौर पर देखा गया। हालांकि, बयान के सियासी मायने निकलते ही झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने इससे खुद को अलग कर लिया। पार्टी नेतृत्व ने साफ शब्दों में कहा कि यह इरफान अंसारी का व्यक्तिगत बयान है, न कि सरकार या पार्टी का आधिकारिक रुख। JMM नेताओं का कहना है कि किसी भी राज्य के प्रशासनिक या संवैधानिक मामलों पर प्रतिक्रिया देते समय संस्थागत प्रक्रिया का पालन जरूरी है। राजनीतिक गलियारों में इस घटनाक्रम को दो राज्यों की राजनीति के टकराव के रूप में देखा जा रहा है। विपक्ष ने आरोप लगाया कि इस तरह के बयान भावनात्मक मुद्दों पर सियासत चमकाने की कोशिश हैं, जबकि समर्थकों का तर्क है कि यह अल्पसंख्यक सुरक्षा और महिला सम्मान का सवाल है। उधर, बिहार सरकार ने पूरे मामले की जांच की बात कही है और दोषियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया है। वहीं, डॉक्टर नुसरत परवीन की ओर से अब तक किसी राजनीतिक ऑफर पर औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। कुल मिलाकर, हिजाब विवाद ने एक बार फिर देश में धार्मिक स्वतंत्रता, महिला सम्मान और राजनीति की सीमाओं पर बहस तेज कर दी है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा सिर्फ बयानबाजी तक सीमित रहता है या दोनों राज्यों की सियासत में कोई ठोस मोड़ लाता है।

प्रदूषण से जल रही हैं आंखें? ये 8 आम गलतियां बना सकती हैं इन्फेक्शन की वजह

बढ़ता वायु प्रदूषण अब आंखों के लिए भी एक गंभीर खतरा बन चुका है। धूल, धुआं और जहरीले कण सीधे आंखों की नाजुक सतह को प्रभावित करते हैं, जिससे जलन, लालिमा, खुजली, सूखापन और पानी आने जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। कई बार लोग राहत पाने के चक्कर में ऐसी गलतियां कर बैठते हैं, जो हालात को और बिगाड़ देती हैं। अगर प्रदूषण के कारण आपकी आंखें भी परेशान हैं, तो इन 8 बड़ी गलतियों से हर हाल में बचना जरूरी है 1. आंखों को बार-बार रगड़ना जलन या खुजली होते ही आंखों को रगड़ना सबसे आम गलती है। ऐसा करने से आंखों की बाहरी परत को नुकसान पहुंचता है और हाथों पर मौजूद कीटाणु सीधे आंखों में चले जाते हैं, जिससे इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। 2. खुद से आई ड्रॉप डालना हर आंख की समस्या का इलाज एक जैसा नहीं होता। बिना डॉक्टर की सलाह के आई ड्रॉप का इस्तेमाल एलर्जी, सूजन या आंखों की ड्राइनेस को और बढ़ा सकता है। 3. गंदे हाथों से आंखों को छूना प्रदूषण के कण पहले से ही आंखों को परेशान करते हैं, ऐसे में गंदे हाथों से आंखों को छूना बैक्टीरिया और वायरस को न्योता देना है। 4. कॉन्टैक्ट लेंस का लापरवाही से इस्तेमाल प्रदूषित वातावरण में लंबे समय तक कॉन्टैक्ट लेंस पहनने से आंखों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे जलन और इन्फेक्शन की संभावना बढ़ जाती है। 5. बिना चश्मे बाहर निकलना धूल और धुएं से आंखों को बचाने के लिए सनग्लास या प्रोटेक्टिव चश्मा बेहद जरूरी है। बिना सुरक्षा के बाहर निकलने से आंखों पर सीधा असर पड़ता है। 6. आंखों की सही सफाई न करना दिनभर प्रदूषण में रहने के बाद आंखों की सफाई न करना एक बड़ी चूक है। हल्के गुनगुने पानी से आंखें धोने से जलन और थकान में राहत मिलती है। 7. जरूरत से ज्यादा स्क्रीन टाइम मोबाइल, लैपटॉप और टीवी की स्क्रीन आंखों को और ज्यादा ड्राई बना देती है। प्रदूषण के साथ ज्यादा स्क्रीन टाइम आंखों की समस्या को दोगुना कर देता है। 8. लक्षणों को नजरअंदाज करना अगर आंखों में लगातार दर्द, लालिमा, सूजन या धुंधलापन बना रहे, तो इसे हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है। समय पर इलाज न मिलने से गंभीर इन्फेक्शन हो सकता है। आंखों की सुरक्षा के लिए क्या करें? * बाहर निकलते समय आंखों को ढककर रखें * आंखों को बार-बार छूने से बचें * पर्याप्त पानी पिएं * स्क्रीन से नियमित ब्रेक लें * समस्या बढ़ने पर तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से सलाह लें याद रखें, बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण में थोड़ी सी सावधानी आपकी आंखों को लंबे समय तक स्वस्थ रख सकती है।

Asia Cup 2025 Final: पाकिस्तान ने रचा इतिहास, पहली बार एशिया कप पर कब्जा; फाइनल में भारत को करारी शिकस्त

21 दिसंबर : एशिया कप 2025 के फाइनल में पाकिस्तान ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए भारतीय टीम को एकतरफा मुकाबले में हराकर पहली बार खिताब अपने नाम कर लिया। टॉस हारकर पहले बल्लेबाजी करने उतरी पाकिस्तान की टीम ने 50 ओवर में 8 विकेट के नुकसान पर 347 रन का विशाल स्कोर खड़ा किया। जवाब में 348 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम 26.2 ओवर में मात्र 156 रन पर सिमट गई। पाकिस्तान की जीत के नायक रहे समीर मिन्हास, जिन्होंने फाइनल जैसे बड़े मुकाबले में शानदार शतक जड़ा। उन्होंने 172 रनों की दमदार पारी खेलकर भारतीय गेंदबाजों पर दबाव बना दिया। उनके अलावा अहमद हुसैन ने 56 रनों की महत्वपूर्ण पारी खेली और टीम को बड़े स्कोर तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। भारतीय गेंदबाजों ने बीच-बीच में विकेट जरूर निकाले, लेकिन रन गति पर अंकुश नहीं लगा सके। लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम की शुरुआत बेहद खराब रही। शुरुआती ओवरों में लगातार विकेट गिरने से टीम दबाव में आ गई। पाकिस्तान के गेंदबाजों ने अनुशासित लाइन-लेंथ के साथ आक्रामक गेंदबाजी की और भारतीय बल्लेबाजों को खुलकर खेलने का मौका नहीं दिया। पूरी टीम 26.2 ओवर में 156 रन पर ऑलआउट हो गई, जिससे मुकाबला पूरी तरह एकतरफा साबित हुआ। गौरतलब है कि ग्रुप स्टेज में भारत ने पाकिस्तान को हराया था, लेकिन फाइनल में पाकिस्तान ने शानदार वापसी करते हुए भारत से उस हार का बदला भी ले लिया। इस जीत के साथ पाकिस्तान ने न सिर्फ पहली बार एशिया कप का खिताब जीता, बल्कि क्रिकेट इतिहास में एक नया अध्याय भी जोड़ दिया। फाइनल जीतते ही पाकिस्तानी खिलाड़ियों और प्रशंसकों में जश्न का माहौल देखने को मिला, जबकि भारतीय टीम को बड़े मंच पर मिली इस हार से निराशा हाथ लगी। एशिया कप 2025 का फाइनल लंबे समय तक क्रिकेट प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बना रहेगा।

अरावली पर SC के आदेश से मचा बवाल, सड़कों पर उतरे लोग; सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा #SaveAravalli

नई दिल्ली, 21 दिसंबर: सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद अरावली पहाड़ियों को लेकर देशभर में नई बहस छिड़ गई है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को स्वतः ‘जंगल’ नहीं माना जाएगा। इस टिप्पणी के सामने आते ही पर्यावरण कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों और स्थानीय लोगों में गहरी चिंता देखने को मिल रही है। कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए, वहीं सोशल मीडिया पर #SaveAravalli ट्रेंड करने लगा। क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश? सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी क्षेत्र को ‘वन भूमि’ घोषित करने के लिए केवल उसकी भौगोलिक संरचना या ऊंचाई ही एकमात्र आधार नहीं हो सकती। अदालत ने माना कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अपने आप जंगल मान लेना उचित नहीं है, बल्कि इसके लिए सरकारी रिकॉर्ड, अधिसूचना और कानूनी मानदंडों को देखना जरूरी है। क्यों बढ़ी चिंता? पर्यावरणविदों का कहना है कि यह आदेश अरावली जैसे संवेदनशील पारिस्थितिकी क्षेत्र के लिए खतरा बन सकता है। उनका तर्क है कि अरावली सिर्फ पहाड़ियों का समूह नहीं, बल्कि उत्तर भारत के पर्यावरण संतुलन की रीढ़ है। यह क्षेत्र * भूजल स्तर बनाए रखने * रेगिस्तान के विस्तार को रोकने * प्रदूषण और धूल भरी आंधियों से बचाव   में अहम भूमिका निभाता है। विशेषज्ञों को आशंका है कि इस फैसले की आड़ में खनन, रियल एस्टेट और औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे अरावली की प्राकृतिक संरचना को नुकसान पहुंचेगा। सड़कों से सोशल मीडिया तक विरोध फैसले के बाद दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा और राजस्थान में कई जगह लोगों ने प्रदर्शन किए। पर्यावरण संगठनों ने सरकार से अरावली को विशेष संरक्षण देने की मांग की। वहीं ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर #SaveAravalli के जरिए लोग अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पुनः समीक्षा की मांग कर रहे हैं। सरकार और आगे की राह सरकारी पक्ष का कहना है कि अदालत के आदेश का गलत अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए और अरावली के संरक्षण से जुड़े कानून पहले की तरह लागू रहेंगे। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अब केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर अरावली संरक्षण के लिए स्पष्ट और मजबूत नीति बनानी होगी, ताकि किसी भी तरह के पर्यावरणीय नुकसान को रोका जा सके। अरावली को लेकर यह बहस आने वाले दिनों में और तेज होने की संभावना है, क्योंकि यह मुद्दा सिर्फ पहाड़ियों का नहीं, बल्कि पर्यावरण और भविष्य की पीढ़ियों से जुड़ा हुआ है।