नई दिल्ली, 18 फरवरी: दिल्ली की एक अदालत द्वारा 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान दो लोगों की हत्या के मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को दोषी करार दिए जाने के बाद अभियोजन पक्ष ने उनके लिए मौत की सजा की मांग की है। सज्जन कुमार को नवंबर 1984 में सरस्वती विहार इलाके में हुई पिता-पुत्र की हत्या के मामले में बुधवार को दोषी ठहराया गया था। सरकारी वकील को अपनी लिखित दलीलें दाखिल करनी हैं। वह निर्भया और अन्य मामलों में दिशा-निर्देशों में मृत्युदंड की मांग कर रहे हैं। वरिष्ठ वकील भी अपनी लिखित दलीलें दाखिल करेंगे। अदालत ने सजा पर बहस के लिए 21 फरवरी को मामले की सुनवाई तय की है।

आईपीसी की इन धाराओं में ठहराया था दोषी

अदालत द्वारा सज्जन कुमार को आईपीसी की धाराओं 147 (दंगा), 302 (हत्या), 308 (गैर इरादतन हत्या का प्रयास), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 395 (डकैती), 397 (मृत्यु या गंभीर चोट पहुंचाने के प्रयास के साथ डकैती या लूटपाट) और 436 (घर आदि को नष्ट करने के इरादे से आग या विस्फोटक पदार्थ का इस्तेमाल) समेत अन्य प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया था।

सज्जन कुमार को हो सकती है कम से कम आजीवन कारावास की सजा

रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के स्पेशल कोर्ट की जज कावेरी ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को सिख विरोधी दंगों के दौरान सरस्वती विहार इलाके में पिता-पुत्र की हत्या के मामले में बुधवार को दोषी करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि सज्जन कुमार उस भीड़ का हिस्सा थे, जिसने हत्याकांड को अंजाम दिया था। हत्या का दोषी करार दिए जाने के बाद सज्जन कुमार को अब अधिकतम मृत्युदंड या कम से कम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। जज कावेरी बावेजा ने सज्जन कुमार की सजा पर बहस की तारीख 18 फरवरी तय की थी।

जज ने कहा था, ”यह भी साबित हो गया है कि हमलावर भीड़ का हिस्सा होने के नाते सज्जन कुमार घटना के दौरान शिकायतकर्ता के पति जसवंत सिंह और बेटे तरुणदीप सिंह की हत्या करने के दोषी हैं।” जज ने दोषसिद्धि के फैसले में कहा था, ‘‘शिकायतकर्ता, जिसने अपने पति और बेटे की क्रूर हत्या देखी है, उससे निश्चित रूप से उस व्यक्ति का चेहरा भूलने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जो उक्त हत्याओं और लूटपाट को अंजाम देने के लिए भीड़ को उकसा रहा था और अदालत में शिकायतकर्ता का बयान उसके इस रुख की पुष्टि करता है।’’

अदालत ने सज्जन कुमार की इस दलील को खारिज कर दिया था कि शिकायतकर्ता के बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने आरोपी का नाम देर से बताया और कहा कि घटना के समय उसे आरोपी की पहचान के बारे में जानकारी नहीं थी क्योंकि वह उस क्षेत्र में नई थी और उसने आरोपी को पहले कभी नहीं देखा था।

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