-ब्रह्मर्षि वैद्य पं. नारायण शर्मा कौशिक-
ज्योतिष शास्त्रानुसार मानव एवं प्राणी मात्र की सूक्ष्म जानकारी, प्रकृति तथा व्यवहार-चरित्र चिन्तन ज्योतिष फलित सूत्रों से जाना जा सकता है। यह फलित योग जानने हेतु सूक्ष्म अध्ययन की आवश्यकता है तथा अनुभूत योगों के द्वारा घटनाओं की घोषणा तथा कुछ समय पश्चात उस स्थिति से प्रभावित होना पुष्टि होना माना जाता है। प्रस्तुत आलेख में स्त्री के उत्तम चरित्र संबंधी सूत्रों का बोध कराया गया है।
सच्चाई का जानना बुरा नहीं, स्त्री की जन्म कुण्डली में सही गणना मिले तो जानकारी होती है।
इसी क्रम में ज्योतिष सिद्धांत सूत्र- जातक परिजातानुसार कतिपय योग लिखे जा रहे हैं।
सप्तम भाव में गुरु हो तथा उस पर शुक्र व बुध की दृष्टि है तो स्त्री पतिवल्लभा एवं साध्वी होती है।
सप्तमेश- शुक्र के साथ हो तथा दोनों पर गुरु की दृष्टि हो तो स्त्री पतिव्रता होती है।
सप्तमेश- गुरु के साथ हो तथा दोनों पर शुक्र की दृष्टि हो तो स्त्री पतिव्रता होती है।
गुरु लग्न में, एकादश या तृतीय भाव में बैठकर सप्तम भाव को देखे तो स्त्री पतिव्रता होती है।
सप्तमेश केन्द्र में शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो स्त्री पति परायणा होती है।
सप्तमेश सप्तम भाव में हो तथा उस पर पाप ग्रहों का प्रभाव नहीं हो तो स्त्री सुशीला एवं पतिव्रता होती है।
गुरु सप्तम भाव में हो, लग्नेश बली हो तथा शुक्र चर राशि (1, 4, 7, 10) में हो तो स्त्री सुन्दर, पतिव्रता तथा पति में आसक्त होती है।
सप्तमेश गुरु हो (मिथुन या कन्या लग्न में) तथा शुक्र या बुध की दृष्टि गुरु पर हो तो स्त्री सुन्दर, दयावती तथा सच्चरित्रा होती है।
यदि सप्तम भाव की नवांश राशि का स्वामी शुभ ग्रह हो तो ऐसी स्त्री पतिव्रता होती है।
यदि चन्द्रमा से सप्तम भाव में शुभ ग्रह हो तो स्त्री सच्चरित्र होती है।
यदि लग्नेश या लग्न के नवांश का स्वामी शुभ ग्रह हो तो स्त्री चरित्रवान होती है।
चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह हो तो स्त्री सच्चरित्रा होती है।
यदि गुरु उच्च का स्वराशि (कर्क, धनु, मीन) में त्रिकोण (5, 9) या केन्द्र (1, 4, 7, 10) में हो तो स्त्री शील युक्त साध्वी, सुपुत्रा, धनी एवं गुणी होती है।
कर्क लग्न हो, सूर्य सप्तम में मकर राशि में हो, सप्तमस्थ सूर्य पर गुरु की दृष्टि हो (एकादश, लग्न या तृतीय भाव से) तो स्त्री विदुषी व श्रेष्ठ पुत्र युक्त, सुलक्षणा होती है।
सूर्य, मंगल की युति के साथ गुरु के साथ हो तो स्त्री उत्तम वक्ता एवं सत्यनिष्ठा होती है।
गुरु, शुक्र व शनि की वृत्ति से स्त्री शिष्ट, धनी, समृद्ध तथा प्रसिद्धि प्राप्त करती हैं।
चंद्र, बुध व गुरु की युति हो तो स्त्री विख्यात, समृद्ध व सुखी तथा पति का भी भाग्योदय करती है।
गुरु और शुक्र की युति से स्त्री प्रतिभाशाली, श्रेष्ठ एवं समृद्ध होती है।
गुरु से केंद्र में चन्द्रमा और शुक्र हो तो ऐसी स्त्री निर्धन के घर जन्म लेकर भी रानी तुल्य सुख प्राप्त करती है।
गुरु के साथ सूर्य व बुध हो तो स्त्री धनी तथा बुद्धिमान तथा कवियित्री होती है।
लग्नस्थ बुध स्त्री को गुणज्ञ बनाता है।
स्त्री की लग्न कुण्डली में बुध व शुक्र लग्न में हो तो ऐसी स्त्री आकर्षक, कलाविज्ञ तथा पतिप्रिया होती है।