नई दिल्ली, 29 जुलाई: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रतिभा की बजाय भाषा के आधार पर युवाओं के मूल्यांकन को सबसे बड़ा अन्याय बताया और कहा कि अधिकांश विकसित देशों ने अपनी मूल भाषाओं के आधार पर प्रगति की है।
प्रधानमंत्री शनिवार को ‘भारत मंडपम’ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय शिक्षा समागम के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। इससे पहले प्रधानमंत्री ने रिमोट का बटन दबाकर ‘पीएम श्री’ योजना के तहत राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, केन्द्रीय विद्यालय संगठन और नवोदय समिति के चयनित 6207 स्कूलों को प्रथम चरण की प्रथम किस्त के रूप में 630 करोड़ रुपये से अधिक की केन्द्रीय राशि हस्तांतरित की। इसके अलावा उन्होंने 12 भारतीय भाषाओं में अनुवादित शिक्षा और कौशल पाठ्यक्रम की पुस्तकों का भी विमोचन किया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं पर विशेष जोर का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी भी छात्र के साथ सबसे बड़ा अन्याय उनकी क्षमताओं की बजाय उनकी भाषा के आधार पर उनका मूल्यांकन करना है। उन्होंने कहा, “मातृभाषा में शिक्षा भारत में छात्रों के लिए न्याय के एक नए रूप की शुरुआत कर रही है। यह सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक बहुत महत्वपूर्ण कदम है।” दुनिया में भाषाओं की बहुलता और उनके महत्व को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि दुनिया के कई विकसित देशों को उनकी स्थानीय भाषा के कारण बढ़त मिली है। प्रधानमंत्री ने यूरोप की मिसाल देते हुए कहा कि ज्यादातर देश अपनी मूल भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि भले ही भारत में कई स्थापित भाषाएं हैं, फिर भी उन्हें पिछड़ेपन के संकेत के रूप में प्रस्तुत किया गया। जो लोग अंग्रेजी नहीं बोल सकते थे, उन्हें उपेक्षित किया गया और उनकी प्रतिभा को मान्यता नहीं दी गई।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण इलाकों के बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हुए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आगमन के साथ देश ने अब इस धारणा को छोड़ना शुरू कर दिया है। मोदी ने कहा, “यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र में भी, मैं भारतीय भाषा में बोलता हूं।” प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि सामाजिक विज्ञान से लेकर इंजीनियरिंग तक के विषय अब भारतीय भाषाओं में पढ़ाए जाएंगे। मोदी ने कहा, “जब छात्र किसी भाषा में आत्मविश्वास रखते हैं, तो उनका कौशल और प्रतिभा बिना किसी प्रतिबंध के सामने आएगी।”
भाषा को लेकर राजनीति करने वालों को कड़ा संदेश देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जो लोग स्वार्थ के लिए भाषा का राजनीतिकरण करने की कोशिश करते हैं, उन्हें अब अपनी दुकानें बंद करनी होंगी। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश की हर भाषा को उचित सम्मान और श्रेय देगी।”
प्रधानमंत्री ने उन कारकों में शिक्षा की प्रधानता को रेखांकित किया, जो राष्ट्र की नियति को बदल सकते हैं। उन्होंने कहा, “21वीं सदी का भारत जिन लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ रहा है, उनमें हमारी शिक्षा प्रणाली की बहुत बड़ी भूमिका है।” अखिल भारतीय शिक्षा समागम के महत्व पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षा के लिए चर्चा और संवाद महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने पिछले अखिल भारतीय शिक्षा समागम के वाराणसी के नवनिर्मित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में होने और इस वर्ष के अखिल भारतीय शिक्षा समागम के बिल्कुल नए भारत मंडपम में होने के संयोग का उल्लेख किया। उल्लेखनीय है कि औपचारिक उद्घाटन के बाद मंडपम में यह पहला कार्यक्रम था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी के रुद्राक्ष से आधुनिक भारत मंडपम तक अखिल भारतीय शिक्षा समागम की यात्रा में प्राचीन और आधुनिक के सम्मिश्रण का संदेश छिपा है। उन्होंने कहा कि एक ओर भारत की शिक्षा प्रणाली यहां की प्राचीन परंपराओं को संरक्षित कर रही है, वहीं दूसरी ओर देश विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है। उन्होंने देश में शिक्षा और स्कूली शिक्षा के बदलते स्वरूप का उल्लेख किया, जहां छोटे बच्चे खेल-खेल में अनुभवों के माध्यम से सीख रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि युगांतकारी बदलावों में कुछ समय लगता है। उन्होंने कहा कि एनईपी में पारंपरिक ज्ञान और भविष्य की प्रौद्योगिकियों को समान महत्व दिया गया है। उन्होंने कहा कि छात्र अब समझ गए हैं कि 10 2 प्रणाली के स्थान पर अब 5 3 3 4 प्रणाली चल रही है। पूरे देश में एकरूपता लाते हुए 3 साल की उम्र से शिक्षा शुरू होगी। उन्होंने यह भी बताया कि कैबिनेट ने नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बिल को संसद में पेश करने को मंजूरी दे दी है। एनईपी के तहत राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा जल्द ही आएगी। तीन से आठ साल के छात्रों के लिए रूपरेखा तैयार है। पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम होगा और एनसीईआरटी इसके लिए नए पाठ्यक्रम की किताबें तैयार कर रहा है। प्रधानमंत्री ने बताया कि क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा दिए जाने के परिणामस्वरूप कक्षा 3 से 12 तक 22 विभिन्न भाषाओं में लगभग 130 विभिन्न विषयों की नई किताबें आ रही हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें अमृत काल के अगले 25 वर्षों में एक ऊर्जावान नई पीढ़ी तैयार करनी है। गुलामी की मानसिकता से मुक्त, नवाचारों के लिए उत्सुक, विज्ञान से लेकर खेल तक के क्षेत्र में परचम लहराने को तैयार, 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप खुद को हुनरमंद बनाने की इच्छुक, कर्तव्य की भावना से भरी हुई पीढ़ी। उन्होंने कहा, एनईपी इसमें बड़ी भूमिका निभाएगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के विभिन्न मापदंडों में से भारत का बड़ा प्रयास समानता के लिए है। उन्होंने कहा, एनईपी की प्राथमिकता है कि भारत के प्रत्येक युवा को समान शिक्षा और शिक्षा के समान अवसर मिले। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह स्कूल खोलने तक सीमित नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा के साथ-साथ संसाधनों में भी समानता लायी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि हर बच्चे को पसंद और क्षमता के अनुसार विकल्प मिलना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने व्यावसायिक शिक्षा को सामान्य शिक्षा के साथ एकीकृत करने के कदमों और शिक्षा को अधिक रोचक और इंटरैक्टिव बनाने के तरीकों पर प्रकाश डाला। यह बताते हुए कि लैब और प्रैक्टिकल की सुविधा पहले कुछ मुट्ठी भर स्कूलों तक ही सीमित थी। प्रधानमंत्री ने अटल टिंकरिंग लैब्स पर प्रकाश डाला, जहां 75 लाख से अधिक छात्र विज्ञान और नवाचार के बारे में सीख रहे हैं।
मोदी ने कहा कि दुनिया भारत को नई संभावनाओं की नर्सरी के रूप में देख रही है। प्रधानमंत्री ने सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी और स्पेस टेक का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत की क्षमता से मुकाबला करना आसान नहीं है। रक्षा प्रौद्योगिकी का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का ‘कम लागत’ और ‘सर्वोत्तम गुणवत्ता’ मॉडल हिट होना निश्चित है। उन्होंने कहा कि सभी वैश्विक रैंकिंग में भारतीय संस्थानों की संख्या बढ़ रही है और ज़ांज़ीबार और अबू धाबी में दो आईआईटी परिसर खुल रहे हैं। उन्होंने कहा, “कई अन्य देश भी हमसे अपने यहां आईआईटी कैंपस खोलने का आग्रह कर रहे हैं।” उन्होंने बताया कि ऑस्ट्रेलिया के दो विश्वविद्यालय गुजरात की गिफ्ट सिटी में अपने कैंपस खोलने वाले हैं।