प्रयागराज, 13 दिसंबर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को प्रयागराज पहुंचे। पीएम मोदी ने कहा कि यहां दिन-रात काम कर रहे कर्मचारियों और सफाई कर्मियों का अभिनंदन करता हूं। विश्व का इतना बड़ा आयोजन, हर रोज लाखों श्रद्धालुओं के स्वागत और सेवा की तैयारी, लगातार 45 दिनों तक चलने वाला महायज्ञ, एक नया महानगर बसाने का महाभियान प्रयागराज की धरती पर नया इतिहास रचा जा रहा है। उन्होंने महाकुंभ को लेकर कहा कि यह एकता का ऐसा महायज्ञ होगा, जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ 2025 के लिए शुक्रवार को प्रयागराज में 5,500 करोड़ की 167 विकास परियोजनाओं का लोकार्पण किया। इसमें प्रयागराज में बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने और निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए 10 नए रोड ओवर ब्रिज या फ्लाईओवर, स्थायी घाट और रिवरफ्रंट सड़क जैसी विभिन्न रेल और सड़क परियोजनाएं शामिल हैं।
इस दौरान पीएम मोदी एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, “यह एकता का ऐसा महायज्ञ होगा, जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में होगी। मैं इस आयोजन की भव्य और दिव्य सफलता की आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं। हमारा भारत पवित्र स्थलों और तीर्थों का देश है।”
पीएम मोदी ने कहा कि यह गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी और नर्मदा जैसी अनगिनत पवित्र नदियों का देश है। इन नदियों के प्रवाह की जो पवित्रता है, इन अनेकानेक तीर्थों का जो महत्व है, जो महात्म्य है, उनका संगम, उनका समुच्चय, उनका योग, उनका संयोग, उनका प्रभाव, उनका प्रताप ये प्रयाग है।
उन्होंने कहा कि प्रयाग वो है, जहां पग-पग पर पवित्र स्थान हैं, जहां पग-पग पर पुण्य क्षेत्र हैं। केवल तीन पवित्र नदियों का ही संगम नहीं है। प्रयाग के बारे में कहा गया है : ‘माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई।’
अर्थात जब सूर्य मकर में प्रवेश करते हैं, सभी दैवीय शक्तियां, सभी तीर्थ, सभी ऋषि, महाऋषि प्रयाग में आ जाते हैं। यह वो स्थान है जिसके प्रभाव के बिना पुराण पूरे नहीं होते।
पीएम मोदी ने कहा कि प्रयागराज वो स्थान है, जिसकी प्रशंसा वेद की ऋचाओं में की गई है। महाकुंभ हजारों वर्ष पहले से चली आ रही हमारे देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक यात्रा का पुण्य और जीवंत प्रतीक है। यह एक ऐसा आयोजन है जहां हर बार धर्म, ज्ञान, भक्ति और कला का दिव्य समागम होता है। किसी बाहरी व्यवस्था के बजाय कुंभ, मनुष्य के अंतर्मन की चेतना का नाम है।
उन्होंने कहा कि यह चेतना स्वतः जागृत होती है। यही चेतना भारत के कोने-कोने से लोगों को संगम के तट तक खींच लाती है। गांवों, कस्बों, शहरों से लोग प्रयागराज की ओर निकल पड़ते हैं। सामुहिकता की ऐसी शक्ति, ऐसा समागम शायद ही कहीं ओर देखने को मिले। यहां आकर संत-महंत, ऋषि-मुनि, ज्ञानी-विद्वान, सामान्य मानव सब एक हो जाते हैं, सब एक साथ त्रिवेणी में डुबकी लगाते हैं। यहां जातियों का भेद खत्म हो जाता है, सम्प्रदायों का टकराव मिट जाता है। करोड़ों लोग एक ध्येय, एक विचार से जुड़ जाते हैं।