पटना, 06 नवंबर: बिहार में आम से लेकर खास लोग लोकआस्था के महापर्व छठ की तैयारियों में जुटे हैं। सभी लोग छठ में व्यस्त हैं। सबसे बड़ी बात है कि इस महापर्व पर धर्म पर आस्था भारी दिख रही है। प्रदेश के कई इलाकों में बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोग न केवल छठ घाटों की साफ सफाई में व्यस्त हैं, बल्कि इस समाज की महिलाएं छठ पर्व भी कर रही है।

मुजफ्फरपुर के कालीबाड़ी की रहने वाली मुस्लिम समुदाय की महिला सायरा बेगम ऐसी ही एक महिला हैं जो पिछले आठ साल से छठ पर्व कर रही हैं। ऐसा नहीं की इस पर्व का इंतजार सायरा बेगम को ही रहता है, बल्कि उनके परिवार के अन्य सदस्य भी इस पर्व में उनकी मदद करते हैं।

सायरा बेगम बताती हैं कि वह छठ पर्व पर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित कर अपनी मन्नत को पूरी कर रही है। वे बताती हैं, “मेरे पति अक्सर बीमार रहते थे। 2015 में मैंने छठी मैया से मन्नत मांगी कि अगर उनके शौहर की तबीयत ठीक हो जाएगी तो वह छठ करेंगी। इसके अगले साल ही छठी मैया की कृपा से उनके पति की तबीयत ठीक हो गई। तब से लेकर अब तक मैं प्रति वर्ष पूरे विधान से छठ व्रत कर रही हूं। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि वह जब तक जिंदा रहेंगी तब तक वह यह पर्व करती रहेंगी।

ऐसे ही सीतामढ़ी की बाजितपुर की रहने वाली जैमुन खातून भी पिछले कई वर्षों से पूरे विधिविधान से छठ करती है। यही नहीं इस गांव की रहने वाली कई मुस्लिम महिलाएं भी छठ पर्व करती हैं। इन महिलाओं का दावा है कि उन्हें हिन्दू समुदाय के लोगों का भी सहयोग मिलता है।

बिहार की जेलों में भी मुस्लिम समाज के कैदी इस साल छठ कर रहे हैं। मुजफ्फरपुर के शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में भी इस साल बड़ी संख्या में कैदी छठ व्रत की तैयारी में जुटे हैं। बताया जाता है कि इस जेल के 47 महिला और 49 पुरुष कैदी छठ पर्व कर छठ व्रत कर रहे हैं। इनमे तीन मुस्लिम और एक सिख धर्म को मानने वाले हैं।

छठ करने वाली मुस्लिम महिलाएं बताती हैं कि वह छठ महापर्व पूरी शुद्धता के साथ करती हैं और दशहरा खत्म होने के बाद घर में लहसुन प्याज का इस्तेमाल भी बंद कर दिया जाता है।

कुल मिलाकर कहा जाता है कि लोकआस्था का महापर्व छठ न केवल स्वच्छता का संदेश दे रहा है, बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी पेश कर रहा है।

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