Headline
नागरिकों में ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना पैदा करना जरूरी : मुर्मू
योगी ने की मां पाटेश्वरी देवी की पूजा-अर्चना
राष्ट्रपति मुर्मू ने स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य में ‘उत्कल केशरी’ महताब के योगदान की सराहना की
गुरु संसार नहीं भ्रम छुड़ाता है : राजेश्वरानंद
हर बच्चे को वर्ल्ड क्लास शिक्षा देना हमारा मकसद : सीएम
बिभव कुमार बने पंजाब सीएम के मुख्य सलाहकार, स्वाति मालीवाल ने पूछा- “पंजाब की महिलाएं सुरक्षित कैसे रहेंगी?”
फ़्रेंच फ़्राइज़ बच्चों के लिए धीमा जहर है: डॉ अर्चिता महाजन
गौतम अडानी, सहयोगियों पर रिश्वतखोरी के आरोप में अडानी पर अमेरिका में मुकदमा, शेयरों में गिरावट
जेम्स एंड ज्वेलरी इंडस्ट्री में महिलाओं के पास अपार संभावनाएं : स्मृति ईरानी

दिल्ली सर्विस बिल: एलजी के पास ही रहेगी अंतिम निर्णय की शक्ति, पढ़िये क्या कहती हैं पार्टियां…

नई दिल्ली, 12 अगस्त : संसद के दोनों सदनों से पास दिल्ली सर्विस बिल पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर करते ही ब्यूरोक्रेसी एलजी के अधीन हो गई है। दिल्ली का राजकाज चलाने के लिए नया कानून बन गया है। इसका दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने स्वागत किया है। आम आदमी पार्टी या कांग्रेस की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

दिल्ली सरकार के पूर्व मुख्य सचिव ओमेश सहलग बताते हैं कि इस कानून के बनने के बाद दिल्ली सरकार में प्रशासनिक फैसलों को लेकर बड़ा बदलाव नजर आएगा। दिल्ली की चुनी हुई सरकार को फैसला लेने का अधिकार तो होगा, लेकिन उस पर अंतिम मंजूरी उपराज्यपाल की होगी। अधिकारियों के तबादले से लेकर उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई पर नए कानून के मुताबिक सिविल सर्विसेज प्राधिकरण फैसला करेगा। वहीं, अब विधानसभा सत्र बुलाने के लिए भी सरकार को उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी।

नए कानून के अनुसार दिल्ली सरकार में अधिकारियों की तैनाती से लेकर तबादले और उन पर किसी भी तरह की सतर्कता जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई का फैसला इस कानून के तहत राष्ट्रीय राजधानी सिविल सर्विसेज प्राधिकरण करेगा। तीन सदस्यों वाली इस समिति के चेयरमैन मुख्यमंत्री होंगे। दो अन्य सदस्य मुख्य सचिव और प्रधान सचिव (गृह विभाग) होंगे। फैसला वोटिंग के आधार पर होगा। मुख्यमंत्री का मत अगर अधिकारियों से अलग होता है तो बहुमत के आधार पर अधिकारियों का फैसला ही मान्य होगा। इस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अपनी आपत्ति पहले ही दर्ज कर चुके हैं।

इस कानून के बन जाने से अब सरकार के मंत्री का कोई फैसला अगर सेक्रेटरी को नियमानुसार नहीं लगता है तो वह आपत्ति जताकर उसे बारे में मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल को अपनी रिपोर्ट भेज सकते हैं और फाइल को रोक सकते हैं। इस तरह नए कानून बन जाने के बाद दिल्ली विधानसभा सत्र बुलाने के लिए भी अब उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी। सरकार को अपने सभी फैसलों के लिए उपराज्यपाल से मंजूरी लेना अब अनिवार्य होगा।

संविधान विशेषज्ञ एस के शर्मा का कहना है कि दिल्ली में हमेशा से पुलिस, कानून व्यवस्था, जमीन और सेवा विभाग उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में रहा है। मुख्यमंत्री यहां सिर्फ जनता के मुद्दे उठाने और उनकी बात कहने के लिए हैं। प्रशासन हमेशा राष्ट्रपति के तहत काम करता है। 19 मई को केंद्र सरकार द्वारा जारी अध्यादेश अब कानून बन गया है। पहले सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार ने अध्यादेश को चुनौती दी थी, अब अगर दिल्ली सरकार इस कानून को चुनौती देगी तो उसे संशोधित कानून को चुनौती देना होगा।

वहीं भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने ट्वीट कर लिखा कि बधाई दिल्ली ! केजरीवाल के लूट और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने वाला दिल्ली सेवा बिल को राष्ट्रपति जी की मंजूरी मिल गई है। अब बंद कमरों में नहीं पीटे जाएंगे आईएस अधिकारी, अब नहीं छिपायी जायेंगी घोटालों की फाइलें, अब नहीं सताये जाएंगे ईमानदार अफसर।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top