नई दिल्ली, 09 अगस्त : देश की चुनावी प्रणाली को पारदर्शी और प्रभावी बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए निर्वाचन आयोग ने 334 पंजीकृत अवैमान्य राजनीतिक दलों को अपनी सूची से हटा दिया है. यह कार्रवाई लगातार छह वर्षों तक चुनाव में हिस्सा न लेने और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत निर्धारित नियमों का पालन न करने के आधार पर की गई है. इस कदम से अब देश में पंजीकृत दलों की संख्या 2854 से घटकर 2520 रह गई है. आयोग के अनुसार देश में वर्तमान में छह राष्ट्रीय दल, 67 क्षेत्रीय दल और 2854 अवैमान्य पंजीकृत हैं.

इन दलों को पंजीकरण के समय नाम, पता, पदाधिकारियों के विवरण देने और किसी भी बदलाव की सूचना आयोग को तुरंत देने की बाध्यता होती है. साथ ही दिशा-निर्देशों के तहत यदि कोई दल छह साल तक चुनाव में भाग नहीं लेता, तो उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है. जून 2025 में आयोग ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ) को 345 पंजीकृत की जांच के निर्देश दिए थे. इन दलों को शोकॉज नोटिस जारी कर व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर भी दिया गया.

345 में से 334 दलों ने नियमों का उल्लंघन किया

मुख्य निर्वाचन अधिकारियों की रिपोर्ट के आधार पर 345 में से 334 दलों को नियमों का उल्लंघन करने के लिए डीलिस्ट किया गया, जबकि शेष मामलों को पुनः सत्यापन के लिए भेजा गया है. आयोग ने इस प्रक्रिया को निर्वाचन प्रणाली की सफाई और सुदृढीकरण के लिए अपनी व्यापक रणनीति का हिस्सा बताया. डीलिस्ट किए गए दलों को अब जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29B और 29C, आयकर अधिनियम 1961 और चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश 1968 के तहत कोई लाभ जैसे कर छूट, मुफ्त मतदाता सूची, प्रसारण सुविधाएं या चुनाव चिह्न प्राप्त नहीं होंगे.

प्रभावित दलों को आदेश की तारीख से 30 दिनों के भीतर आयोग में अपील करने का अधिकार दिया गया है. यह कदम राजनीतिक दलों की जवाबदेही बढ़ाने और निष्क्रिय दलों को हटाकर चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की दिशा में है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम उन दलों की संख्या पर अंकुश लगाएगा जो पंजीकरण के लाभ उठाते हुए चुनावी राजनीति में सक्रिय नहीं होते, जिससे वास्तविक प्रतिस्पर्धी दलों को अवसर मिलेगा.

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