नई दिल्ली, 14 अक्टूबर: दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में कहा गया है कि जेल अधिकारियों की नजरों से दूर पति-पत्नी का मिलन एक ‘मौलिक अधिकार’ है। राष्ट्रीय राजधानी सरकार ने कई देशों द्वारा इस तरह के मिलन की अनुमति दिये जाने की पृष्ठभूमि में दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि जेल महानिदेशक ने कैदियों के जीवनसाथी से ‘मिलन’ के अधिकारों के बारे में राज्य के गृह विभाग को एक प्रस्ताव भेजा है। दिल्ली सरकार ने कहा है कि आवश्यक दिशानिर्देश जारी करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी प्रस्ताव भेजा जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने दिल्ली सरकार को उसकी सिफारिश के बाद के घटनाक्रमों से अवगत कराने के लिए उसे छह सप्ताह का समय दिया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए अगले साल 15 जनवरी की तारीख तय की है। पीठ वकील अमित साहनी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली सरकार और जेल महानिदेशक को कैदियों के जीवनसाथियों की मुलाकात के लिए जेलों में आवश्यक व्यवस्था करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
इससे पहले, उच्च न्यायालय ने मई 2019 में इस जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी किये थे। जनहित याचिका में मांग की गयी है कि अदालत राज्य के जेल नियम को निरस्त करे, जिसके तहत किसी कैदी के अपने जीवनसाथी से मिलते वक्त जेल अधिकारी की उपस्थिति अनिवार्य है। इसने अदालत से कैदी के अपने जीवनसाथी से मुलाकात को ‘मौलिक अधिकार’ घोषित करने का भी आग्रह किया है। हाल ही में हुई एक सुनवाई के दौरान, दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील अनुज अग्रवाल ने कहा कि अपने जीवनसाथी से मिलने की इच्छा रखने वाले कैदियों के इस अधिकार पर ‘उचित विचार-विमर्श के बाद’ जेल महानिदेशक द्वारा एक प्रस्ताव राज्य के गृह विभाग को भेज दिया गया है।