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उच्चतम न्यायालय ने न्यूज़क्लिक प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को अवैध करार दिया, अविलंब रिहा करने का आदेश

नई दिल्ली, 15 मई : उच्चतम न्यायालय ने ‘न्यूज़क्लिक’ के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तारी और उसके बाद हिरासत (रिमांड) को अवैध घोषित करते हुए उन्हें अविलंब रिहा करने का बुधवार को आदेश दिया।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पुरकायस्थ की ओर से दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया। पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए इस बात पर भी गौर किया कि आरोपी को उनकी गिरफ्तारी के आधार का खुलासा नहीं किया गया था।

शीर्ष अदालत ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि मामले में आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है।

पुरकायस्थ का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने रखा, जबकि दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने किया।

शीर्ष अदालत के आदेश पर श्री राजू ने कहा कि चूंकि गिरफ्तारी को शून्य घोषित कर दिया गया है, इसलिए यह पुलिस को गिरफ्तारी की शक्ति का आगे प्रयोग करने से नहीं रोक सकता है।

इस पर पीठ ने मौखिक रूप से कहा, ‘आपको कानून के तहत जो भी अनुमति है वह कर सकते हैं।’

न्यूज़क्लिक के संस्थापक और प्रधान संपादक पुरकायस्थ और इसके एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती ने आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में अक्टूबर 2023 में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी।

दिल्ली पुलिस ने उन पर चीन में रहने वाले एक व्यक्ति से लगभग 75 करोड़ रुपये प्राप्त करने का आरोप लगाया और ‘इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि देश की अखंडता और स्थिरता से समझौता किया जाए।’

इस मामले में 17 अगस्त 2023 को मुकदमा दर्ज किया गया था, जिसमें पुरकायस्थ कौर और अन्य के अलावा चीन के निवासी नेविल रॉय सिंघम का नाम दर्ज था।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि याचिकाकर्ताओं ने ‘4 अक्टूबर 2023 को जब हिरासत संबंधी आदेश पारित किया गया था, तब प्राथमिकी की एक प्रति की मांग करते हुए एक आवेदन दायर करते समय अवैध हिरासत आदेश के बारे में कोई शिकायत नहीं की थी।’

उच्च न्यायालय ने पंकज बंसल मामले में शीर्ष अदालत के फैसले को भी माना था – गिरफ्तारी के समय प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तारी के आधार बताने के लिए- याचिका में तथ्यों और कानून पर लागू नहीं होता है।

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