कुछ सामान्य बातें हैं, जिनका ध्यान रखा जाए तो अंदाज लगाया जा सकता है कि आपकी कुंडली में किस ग्रह की क्या स्थिति है। फिर उनके लिए उपाय भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए व्यक्ति की कुंडली में राहु जहां भी होगा, वहां उस भाव से सरोकार रखने वाली चीजें और स्थितियां असुरक्षित होंगी। राहु से सातवें स्थान पर रहने वाला केतु जिस भाव में होता है, उस विशेषताओं से जातक खुद को अलग करना चाहता है।
कुंडली में सूर्य की कमजोर स्थिति आत्म-विश्वास को कमजोर करती है। व्यक्तिे छोटी छोटी बातों में घबराता है। कमजोर चंद्रमा निर्णय को लेने में रुकावट खड़ी करता है। छोटी-छोटी मामूली बातें भी जातक को बुरी तरह परेशान कर देती है। निर्णय लेते समय भूल भटक जाने की स्थिति कमजोर मंगल की ओर संकेत करती है। क्रोध में अच्छे बुरे का ख्याल नहीं रहना भी मंगल के प्रतिककूलता का प्रभाव होता है।
भाई-बहनों से बिगड़े हुए संबंध, त्वचा की परेशानी का होना, निर्णय लेते वक्त कई तरह के मुसीबतों का आना आपके आदि आपके बुध के बुरे हाल की तरफ इशारा करता है। अच्छे सलाहकार का अभाव, पिता अथवा पिता-तुल्य लोगों से मार्ग-दर्शन का न मिलना कमजोर गुरु की तरफ इशारा करता है।
भौतिकदृसुखों में बार-बार बाधा का आना, राग और प्रेम में विफलता शुक्र का पीड़ित बताती है। शनि का नाम भय और आतंक के साथ लिया जाता है। लेकिन यह एक अनुशासित ग्रह है तथा हमारे कर्मों का फल निश्चित और यथाशीघ्र देता भी है। यदि कोई व्यक्ति अपने किए हुए वायदों पर खरा नहीं उतरता है, अपने सेवकों से संबंध ठीक नहीं हैं तो अर्थ है कि शनि कमजोर स्थिति में बैठा है। ग्रहों की स्थिति जानकर अगर हम अपेक्षित दिशा में लगातार सकारात्मक प्रयास करते रहे तो जो भी होगा वह शुभ ही होगा।