AB ब्लड ग्रुप वाले बुजुर्गों का सर्दियों में खास ख्याल रखें: डॉ अर्चिता महाजन

ओ ब्लड ग्रुप वाले सिगरेट शराब न पिए तो ज्यादा सेफ ज्यादा ब्लड क्लोटिंग के कारण हार्ट अटैक का खतरा ज्यादा।ब्लड ग्रुप बदलना हमारे हाथ में नहीं लेकिन सचेत रहा जा सकता है डॉ अर्चिता महाजन न्यूट्रीशन डाइटिशियन एवं चाइल्ड केयर होम्योपैथिक फार्मासिस्ट एवं ट्रेंड योगा टीचर नॉमिनेटेड फॉर पद्मा भूषण राष्ट्रीय पुरस्कार और पंजाब सरकार द्वारा सम्मानित ने बताया कि ब्लड ग्रुप और हार्ट अटैक के कनेक्शन पर पहले भी कई स्टडीज हो चुकी हैं। हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की स्टडी में भी सामने आया था कि A, B और AB ब्लड ग्रुप को दिल की बीमारी का खतरा ज्यादा रहता है। इसमें भी AB ब्लड ग्रुप ज्यादा रिस्की है। यह डेटा 20 साल तक चली रिसर्च के नतीजों पर आधारित था। इसमें सामने आया था कि AB ब्लड ग्रुप को 23 फीसदी तक ज्यादा खतरा रहता है। B वालों को 11 फीसदी और A वालों को 5 फीसदी तक ज्यादा खतरा रहता है। इसलिए बी वर्ल्ड कप वालों को सर्दियों में हाइड्रेट रहना चाहिए जादा पानी पीना चाहिए और तला भुना परांठे पकोड़े खाने से बचना चाहिए।ब्लड ग्रुप बदलना हमारे हाथ में नहीं लेकिन सचेत रहा जा सकता हैएक और अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पूर्वोत्तर ईरान के 30 से 50 साल की उम्र के 50, 000 लोगों पर औसतन सात साल तक नजर रखी। उन्होंने पाया कि वे लोग जिनका ब्लड टाइप O है उनकी मृत्यु किसी भी स्वास्थ्य कारण से पूरे अध्ययन के दौरान 9 फीसदी तक कम दर्ज की गई। इतना ही नहीं उनमें ह्रदय रोगों से मरने का जोखिम भी 15 फीसदी तक कम देखा गया। जबकि अन्य ब्लड टाइप वाले लोगों में ये जोखिम 15 फीसदी अधिक था।अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ में एपिडमियोलॉजिस्ट और अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता डॉ. एरैश एतीमैडी का कहना है कि ये मेरे लिए पता लगाना बेहद ही रोचक था कि O ब्लड टाइप वाले लोगों को अन्य रोगों से मरने का खतरा काफी कम होता है। उन्होंने पाया कि O ब्लड टाइप वाले लोगों में टाइप O रक्त वाले लोगों की तुलना में गैस्ट्रिक कैंसर का खतरा 55 प्रतिशत तक ज्यादा होता है।ओ ब्लड ग्रुप वाले सिगरेट शराब न पिए तो ज्यादा सेफ रहते हैं।

सेहत के लिए बहुत जरूरी है आंवले का सेवन…

आंवले का सेवन सेहत के लिए बहुत जरूरी है। इसके नियमित सेवन से न केवल स्वास्थ्य सही रहता है, बल्कि सुंदरता भी बढ़ती है… आवला को यदि गुणों की खान कहा जाए तो गलत न होगा। सर्दी के मौसम में मिलने वाला आंवला बहुत सारे गुणों से भरपूर होता है। इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह पूरे शरीर के लिए फायदेमंद होता है। वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. सतीश चंद्र शुक्ला का कहना है कि अगर जाड़े के मौसम में प्रतिदिन आंवले का सेवन किया जाए तो शरीर पूरी तरह स्वस्थ रहेगा। -आंवला बहुत सारे रोगों से राहत दिलाता है। इसमें कई सारे विटामिन्स और मिनरल्स जैसे विटामिन ए, बी-6, थियामिन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, कैरोटीन, कॉपर, पोटैशियम, मैंग्नीज आदि पाए जाते हैं। इसमें कई शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं। -आंवले को कई प्रकार से खाया जा सकता है। आप चाहें तो इसे कच्चे रूप में खा सकते हैं। इसका जूस भी निकाला जा सकता है। इसकी चटनी बनाने के साथ ही इसका हलुआ भी बनाया जा सकता है। आंवले के लच्छों को मीठा या नमकीन बनाकर खाया जा सकता है। इसका मुरब्बा तो हर मौसम में खाया जाता है। आंवला के रस को शहद या एलोवेरा में मिलाकर लिया जा सकता है। -आयरन और एंटीऑक्सीडेंट्स की मौजूदगी के कारण आंवला बालों की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। इसके सेवन से न केवल बालों की ग्रोथ अच्छी होती, बल्कि उनमें चमक भी आती है और बालों का गिरना भी कम हो जाता है। इसके रस को बालों की जड़ों में लगाने से भी लाभ मिलता है। -विटामिन ए और कैरोटीन से भरपूर होने के कारण आंवला आंखों की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। इसके सेवन से न केवल आंखों की रोशनी सही रहती है, बल्कि वे कई सारी समस्याओं से भी बची रहती हैं। -आंवले में मौजूद कैल्शियम दांतों, नाखूनों, त्वचा और हड्डियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इससे त्वचा में निखार भी आता है। इसमें मिलने वाला प्रोटीन शरीर को पूरी तरह स्वस्थ रखता है। -डाइबिटीज वाले लोग भी आंवले का सेवन कर सकते हैं। इसमें मिलने वाला क्रोमियम ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित रखता है। हां, यह ध्यान रखें कि बगैर शक्कर वाले आंवले का ही सेवन करें। -आंवले में पानी भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसलिए इसके सेवन करने पर पेशाब के साथ शरीर के हानिकारक तत्व जैसे अतिरिक्त पानी, नमक और यूरिक एसिड बाहर हो जाते हैं। यही कारण है कि यह किडनी को स्वस्थ रखने में भी सहायक है। -इसमें फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। फाइबर हमारे पाचन तंत्र अर्थात पेट के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इसके सेवन से कब्ज की शिकायत दूर होती है। साथ ही डायरिया होने का भी खतरा नहीं रहता है। -आंवले में मिलने वाले पोषक तत्व जैसे आयरन और एंटीऑक्सीडेंट्स हृदय को दुरुस्त रखने में बहुत सहायक हैं। आंवले के नियमित सेवन से हृदय में रक्तसंचार सही रूप से होता है। यह कोलेस्ट्राल के स्तर को भी सही रखता है। -पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण आंवला एंटी एजिंग का भी काम करता है। साथ ही विभिन्न प्रकार के संक्रमण से बचाव करता है। यह हमारे इम्यून सिस्टम को सही रखता है। सर्दी-जुकाम से बचाव करने के साथ ही यह एनीमिया होने से भी बचाता है। एक्ने और पिंपल्स से भी बचाव करने में भी यह सहायक है।

विटामिन डी की जरूरत सभी को

विटामिन डी शरीर के लिए बेहद अहम है। धूप के साथ मुफ्त मिलने के बावजूद आज बड़ी संख्या में लोग इसकी कमी की वजह से कई तरह के रोगों का शिकार हो रहे हैं। विटामिन डी से जुड़ी परेशानी, जाड़े की प्यारी धूप के फायदे और कैल्शियम से इनके कनेक्शन के बारे में बता रहे है हम… जोड़ों का दर्द इन दिनों कॉमन प्रॉब्लम बन गया है। हर उम्र के लोग इस दर्द का शिकार बन रहे हैं। अक्सर दर्द की वजह विटामिन डी की कमी होती है। हैरानी की बात है कि शहरों में रहनेवाले करीब 80-90 फीसदी लोग विटामिन डी की कमी से होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं। वजह, अब लोग धूप में ज्यादा नहीं निकलते और न ही पौष्टिक खाना खाते हैं। दिक्कत यह है कि ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं होती या फिर वे जानकर भी इस बात को मानने को तैयार नहीं होते कि धूप न सेंकने की वजह से भी वे बीमार पड़ सकते हैं। बेशक शरीर को मजबूती देने वाली हड्डियों की मजबूती के लिए तो विटामिन डी बड़े काम की चीज है ही, कई दूसरी बीमारियों से भी यह बचाता है। विटामिन डी की सबसे बड़ी खासियत है कि यह शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व भी है और हॉर्मोन भी। इतना ही नहीं यह सूर्य से मिलने वाला इकलौता विटामिन भी है। सूर्य के अलावा यह विटामिन बादाम, अंडा, मछली, आदि में मिलता है। शरीर के लिए जरूरी विटामिन डी का 80 प्रतिशत हिस्सा धूप से मिलता है, जबकि डायट से 20 प्रतिशत। दो तरह के विटामिन डी 1. विटामिन डी-2: शरीर इसे जज्ब नहीं कर पाता। 2. विटामिन डी-3: यह हमारे शरीर में तब बनता है जब हम धूप में होते हैं। इसके अलावा यह एनिमल फैट मसलन, फिश ऑयल, लिवर, एग यॉक, दूध से बने प्रॉडक्ट्स आदि से भी मिलता है, लेकिन सबसे ज्यादा हमें यह विटामिन धूप से ही मिलती है। बड़े काम का विटामिन डी -यह शरीर की इम्युनिटी बढ़ाता है। -नर्व्स और मसल्स के कोऑर्डिनेशन को कंट्रोल करता है। -यह हड्डियों, मसल्स और लिगामेंट्स को मजबूत बनाता है। -यह कैंसर को रोकने में मदद करता है। -कमजोर हड्डी को मजबूत होने में अमूमन 150 दिन लगते हैं, खराब होने में मात्र 20 दिन जवानी में कमाएं, बुढ़ापे में खाएं हड्डियां एक खास उम्र तक ही मजबूत होती हैं। जिन लोगों ने बचपन से लेकर 30 साल की उम्र तक अपनी हड्डियों को बेहतर खान-पान दिया और विटामिन डी को सही रूप से शरीर में जज्ब कराया, अमूमन उम्र बढ़ने के साथ उनकी हड्डियां उतनी कमजोर नहीं होतीं। आप इसे जॉब और पेंशन से भी समझ सकते हैं। जॉब के दौरान सैलरी ज्यादा होगी तो रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी उतना ही अच्छा मिलता है। इसलिए बेहतर होगा कि बचपन से लेकर युवा होने तक विटामिन डी ज्यादा से ज्यादा पाने की कोशिश की जाए। नोट: एक कमजोर हड्डी को मजबूत बनने में अमूमन 150 दिन लगते हैं जबकि उसे खराब होने में मात्र 20 दिन। इसलिए हड्डी खराब होने की आशंका हमेशा ही रहती है। तो बेहतर यह होगा कि शरीर में विटामिन डी की कमी न होने दें। बच्चों में विटामिन डी का मामला -बच्चे के बेहतर विकास के लिए विटामिन डी की खूब जरूरत होती है। पर्याप्त विटामिन डी लेने पर ही उनकी हड्डियांम जबूत होंगी। -बच्चे अब आउटडोर गेम्स बहुत ज्यादा नहीं खेलते। स्कूल से आते ही वे मोबाइल या टीवी में लग जाते हैं। इसलिए बच्चों में विटामिन डी की कमी की समस्या बहुत बढ़ गई है। -चूंकि पसीना निकालने वाले गेम्स बच्चे खेल नहीं पाते, इसलिए मोटापा भी आ जाता है। एक बार मोटापे ने दस्तक दी तो शरीर की शिथिलता और बढ़ जाती है। फिर विटामिन डी की कमी की परेशानी भी शुरू हो जाती है। -जहां तक दिल्ली, लखनऊ जैसे महानगरों की बात है तो यहां बच्चों की स्थिति इस मामले में और भी खराब है। महानगरों में बिल्डिंग्स इतनी नजदीक बनी होती हैं कि गलियों और घरों तक धूप का पहुंचना नामुमकिन-सा होता है। इसीलिए शहरों में रहने वाले बच्चों में विटामिन डी की कमी के मामले ज्यादा देखे गए हैं, जबकि छोटे शहरों और गांवों में कम। -वैसे, बात नवजात बच्चे की हो या फिर किशोर की, अगर विटामिन डी का स्तर सही रखना है तो उन्हें कम से कम 1 घंटा रोज धूप में रहना होगा या खेलना चाहिए। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस दौरान उनके शरीर का 20 प्रतिशत हिस्सा खुला होना चाहिए। ये जानना भी जरूरी है… -पुरुषों की तुलना में महिलाओं में विटामिन डी की कमी के मामले ज्यादा होते हैं। इसकी बड़ी वजह माहवारी और प्रेग्नेंसी है। -एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक दुनिया में जितने कूल्हे फ्रैक्चर होंगे, उनमें से आधे एशिया में होंगे। कमी के लक्षण -शरीर में लगातार दर्द रहना -ज्यादा थकान रहना -दिनभर सुस्ती रहना -जोड़ों में दर्द होना -खासकर कुल्हों और घुटनों में दर्द का लगातार होना नोट: यहां इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि ऐसे लक्षण दूसरी बीमारियों के भी हो सकते हैं। टेस्ट के बाद ही पता चलता है कि विटामिन डी के बारे में। कमी से होने वालीं दिक्कतें अमूमन लोग यह सोचते हैं कि विटामिन डी की कमी है तो हड्डियां ही कमजोर होंगी और दर्द की समस्या रहेगी जबकि हकीकत यह है कि टीबी, डायबीटीज, हाइपरटेंशन, मंदबुद्धि, कैंसर, कमजोर इम्यूनिटी और कई संक्रामक बीमारियों की वजह भी विटामिन डी की कमी बनती है। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि अगर विटामिन डी की कमी दूर कर दी जाए तो उन्हें काफी आराम मिलता है। -हड्डियों का कमजोर और खोखला होना -जोड़ों, मसल्स का कमजोर होना और दर्द रहना -इम्युनिटी कम होना -बाल झड़ना -बेचैनी और मूड स्विंग्स -इनफर्टिलिटी का बढ़ना -पीरियड्स का अनियमित होना -हड्डियों का खोखला होना और हड्डियों का कमजोर होना -बार-बार फ्रेक्चर होना हड्डियों से जुड़ीं 2 बड़ी समस्याएं ऑस्टियोपोरोसिस: इसमें हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है और ये आसानी से टूटने लगती हैं। हड्डियों में चाय की छलनी की तरह छिद्र बन जाते हैं क्योंकि हड्डियों में जमा हुआ कैल्शियम, मिनरल्स आदि धीमे-धीमे हड्डियों

पीसीओएस कभी-कभी परिवारों में आनुवंशिक चलता है‌ और बांझपन का कारण बनता है : डॉ अर्चिता महाजन

यदि माँ, बहन या चाची को PCOS है, तो जोखिम बढ़ जाता है। PCOS का आनुवंशिक संबंध है सही समय पर योग और डाइट ही एकमात्र बचाव का साधन डॉ अर्चिता महाजन न्यूट्रीशन डाइटिशियन एवं चाइल्ड केयर होम्योपैथिक फार्मासिस्ट एवं ट्रेंड योगा टीचर नॉमिनेटेड फॉर पद्मा भूषण राष्ट्रीय पुरस्कार और पंजाब सरकार द्वारा सम्मानित ने बताया किpcos के लक्षणों में अनियमित मासिक धर्म, वज़न बढ़ना, मुंहासे और तैलीय त्वचा, चेहरे और शरीर पर ज़्यादा बाल, और प्रजनन संबंधी समस्याएं शामिल हैं. पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम लगभग 5 से 10% महिलाओं को प्रभावित करता है। अमेरिका में, यह बांझपन का सबसे आम कारण है। पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम को इसका नाम तरल पदार्थ से भरे कई थैलों (सिस्ट) से मिलता है जो अक्सर अंडाशय में विकसित होते हैं, जिनके कारण वे बड़े हो जाते हैं।  पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे अंडाशय अलग तरह से काम करते हैं और एंड्रोजन (पुरुष हार्मोन) का स्तर बढ़ जाता है. पीसीओएस के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर दवाइयों की सलाह दे सकते हैं. वज़न कम करने से पीसीओएस के लक्षणों में सुधार हो सकता। स्वीडिश शोधकर्ता एलिसाबेट स्टेनर-विक्टोरिन ने बताया कि”जबकि पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं की 70 प्रतिशत बेटियों में भी यह बीमारी विकसित होती है, आनुवंशिक भिन्नता परिवारों में उच्च घटनाओं की पूरी तरह से व्याख्या नहीं करती है। पीसीओएस संवेदनशीलता के कुछ जीनोम-वाइड एसोसिएशन अध्ययनों का मानना है कि आनुवंशिकी इस स्थिति की आनुवंशिकता के 10 प्रतिशत से भी कम की व्याख्या करती है। इससे वैज्ञानिकों को संदेह है कि अन्य कारक, जैसे कि एपिजेनेटिक तंत्र, इस स्थिति को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने में भूमिका निभा सकते हैं। संक्षेप में, इस बात के पुख्ता सबूत मिल रहे हैं कि पीसीओएस के कम से कम कुछ आनुवंशिक कारण हैं।यदि आपको PCOS है, तो आपके शिशु के गर्भावधि उम्र के हिसाब से आकार में बड़ा होने की संभावना अधिक होती है। इससे सिजेरियन डिलीवरी की आवश्यकता होने की संभावना बढ़ जाती है।

पोटैशियम की कमी से नहीं आ रही नींद

आज की जेनेरेशन को रात में देर तक जागने की आदत है। मगर इसका खामियाजा यह होता है कि उन्हें दिनभर सुस्ती, थकान, और कमजोरी महसूस होती रहती है। आपके आसपास भी किसी को ऐसा हो रहा है, तो इसके लिए वॉट्सएप, फेसबुक या स्मार्टफोन को दोष देने से पहले पोटाशियम का स्तर जरूर चेक करवा लें। अक्सर शरीर में पोटाशियम की कमी से इस तरह की समस्याएं होने लगती हैं। शरीर में पोटैशियम की कमी को हाइपोक्लेमिया कहा जाता है। स्वस्थ रहने और बीमारियों से बचने के लिए हर किसी के शरीर को रोजाना 47000 मिलीग्राम पोटैशियम की जरूरत होती है। क्योंकि पोटैशियम दिल, दिमाग और मांसपेशियों की कार्यप्रणाली को सुचारू ढ़ग से चलाने में मदद करता है। शरीर में पोटैशियम की कमी से हाइपोकैलीमिया और मानसिक रोग होने का खतरा सबसे ज्यादा बढ़ जाता है। आज हम आपको इसकी कमी के कुछ संकेत बता रहे हैं, जिनकी कमी से होने वाली समस्याओं को आप आसानी से पहचान सकते हैं। पोटैशियम की कमी के लक्षण अनिद्रा की समस्या अगर आपके शरीर में भी पोटैशियम की कमी है तो आपको नींद न आने की समस्या हो सकती है। ऐसे में अनिद्रा की समस्या होने पर डॉक्टर से चेकअप करवाएं। तनाव अधिक तनाव या डिप्रैशन का होना भी पोटैशियम की कमी का संकेत होता है। इतना ही नहीं, पोटैशियम की कमी से होने वाला तनाव मानसिक समस्याओं का कारण भी बन सकता है। मूड स्विंग जब शरीर में इसकी मात्रा कम होने लगती है तो ये दिमाग के काम करने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। इससे आपको मूड स्विंग यानि विचारों में अजीब बदलाव होने लगते हैं। अपने मानसिक स्वावस्य्रो के लिए आज से ही अपनाएं ये चीजें हमेशा रहती है थकान लगातार थकान बनी रहना शरीर में पोटैशियम की कमी का एक बड़ा लक्षण थकान भी होता है। इसकी कमी के कारण आप थोड़ा करने के बाद या चलने के बाद थक जाते हैं। दरअसल, शरीर में मौजूद कोशिका को काम करने के लिए पोटैशियम और खनिज लवणों की जरूरत होती है लेकिन इसकी पूर्ति न हो पाने पर शरीर में थकान होने लगती है। एसिड बढ़ना पोटैशियम की कमी से शरीर में एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे शरीर में सुस्ती, थकान और कमजोरी महसूस होने लगती है। ब्लड प्रेशर अनियंत्रित होना पोटैशियम दिल को स्वस्थ रखने में मदद करता है। इसके साथ ही ये शरीर में सोडियम की मात्रा को कम बनाए रखने के साथ-साथ ब्लड प्रैशर को भी कंट्रोल करता है। ऐसे में इसकी कमी होने पर ब्लड प्रैशर का बढ़ना या कम होने जैसी प्रॉब्लम हो सकती है। त्वचा में बदलाव इसकी कमी का असर त्वचा पर दिखाई देती है। इसलिए पोटैशियम की कमी होने पर त्वचा रूखी और खुश्क हो जाती है और आपको पसीना भी अधिक आने लगता है। उल्टी और दस्त शरीर में पोटैशियम की कमी होने पर उल्टी और दस्त की समस्या भी हो सकती है। क्योंकि इसकी कमी होने पर पाचन तंत्र में गड़बड़ी हो जाती है, जिससे उल्टी और दस्त होने लगते हैं। इनमें मिलता है पोटैशियम पोटैशियम की कमी को पूरा करने के लिए आप सब्जियों जैसे पालक, ब्रोकली, आलू, गाजर आदि का सेवन करें। इसके अलावा बींस, कद्दू के बीज, साबुत अनाज, डेयरी उत्पाद, मांस, मछली में भी पोटैशियम की भरपूर मात्रा होती है। केला, संतरा, एप्रिकॉट, अवोकेडो और स्ट्राबेरी जैसे फूट्स भी शरीर में पौटेशियम की कमी को पूरा करते हैं।

बीमारियों का घर बढ़ती तोंद

बढ़ती तोंद शरीर को बेडौल तो बना ही देती है, अब नए अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि इससे उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों के शिकार होने का खतरा भी बढ़ रहा है। हमारे देश में ज्यादातर लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते कि उनकी तोंद बढ़ रही है। शायद वे इस बात से भी अनजान हैं कि कमर का बढ़ता आकार उनके स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है। देश और दुनिया के स्तर पर हुए कई शोध साफ तौर पर यह कहते हैं कि पेट के उभार का सीधा संबंध उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी बीमारियों और मधुमेह से है। दुनिया भर में हुए शोधों में यह सामने आया है कि पुरुषों में तोंद ज्यादा होती है। वहीं महिलाओं में कूल्हे के आसपास अधिक मांस होता है। भारत में यह आंकड़ा कुछ उल्टा है। यहां छह राज्यों (ग्रामीण व शहरी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, महाराष्ट्र और कर्नाटक) में 7,000 लोगों पर किए गए शोध से सामने आया है कि भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की तोंद अधिक है। पेट पर उभरा यह मांस 50 वर्ष की आयु के बाद हर चार में से एक महिला के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रहा है। ऑनलाइन जर्नल बीएमजी ओपन में दो सप्ताह पहले इस अध्ययन की रिपोर्ट छापी गई है। इसके अनुसार अध्ययन में शामिल लोगों में से 14 प्रतिशत ओवरवेट यानी तय सीमा से अधिक वजन वाले लोग थे। इनमें हर तीन में से एक की तोंद (35.4 इंच से अधिक कमर पुरुषों में, 31.4 इंच से अधिक कमर महिलाओं में) थी। लगभग दो तिहाई (69 फीसदी) तोंद वाली महिलाएं अमीर परिवारों की थीं, जबकि करीबन आधी यानी 46 प्रतिशत महिलाएं मध्यमवर्गीय व निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थीं। बीमारियों से संबंध:- ज्यादा परेशान करने वाले तथ्य उस अध्ययन से पता चलते हैं, जो अब तक प्रकाशित नहीं हुआ है। यह अध्ययन ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज यानी एम्स, दिल्ली ने किया है। यह 20 से 60 साल के आयु वर्ग के 500 से अधिक लोगों पर किया गया। इस अध्ययन में सामने आया कि पेट पर बढ़ता मांस महिलाओं के लिए कई बीमारियों की जद में आने का खतरा बन सकता है। इस अध्ययन में शामिल रहे एम्स में अतिरिक्त प्रोफेसर डॉक्टर नवल विक्रम कहते हैं, हमने इस अध्ययन में पाया कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियां होने का खतरा बढ़ी तोंद वाले पुरुषों में 12 गुना व महिलाओं में 20 गुना अधिक हो जाता है। पेट पर जो मांस जमा है, उसके स्वरूप से भी बीमारियों के खतरे से आगाह किया जा सकता है। गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में क्लिनिकल एवं प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी के अध्यक्ष डॉक्टर आर आर कासलीवाल कहते हैं, आन्त्र से निकलता फैट, खून में फैटी एसिड्स रिलीज करता है। यह एसिड्स हार्मोंस के साथ मिल कर सूजन, बैड कोलेस्ट्रॉल, क्रिगलीसेरेड्स, रक्त ग्लूकोज और रक्तचाप को बढ़ाते हैं। ये न केवल हृदय संबंधी बीमारियों और हृदयाघात के खतरे को बढ़ाते हैं, बल्कि कुछ एस्ट्रोजन सेंसिटिव कैंसर जैसे रजोनिवृत्ति के बाद ब्रेस्ट और गर्भाश्य के कैंसर के खतरे को बढ़ा देते हैं। कैसे बढ़ी समस्या:- फोर्टिस सी-डॉक के अध्यक्ष डॉक्टर अनूप मिश्रा (जिन्होंने एम्स में अपने कार्यकाल के दौरान अध्ययन करने वाले दल की अध्यक्षता की थी) के अनुसार, भारत में हमने जो अध्ययन किया, उसमें पुरुषों के कमर का साइज 78 सेमी निर्धारित किया था और महिलाओं के लिए 72 सेमी। जो भी इससे अधिक कमर वाले पाए गए, वे अच्छा वजन होने के बावजूद भी कम से कम एक मेटाबॉलिक बीमारी की जद में आने के खतरे में थे। कई अन्य अंतरराष्ट्रीय अध्ययन भी बढ़ती कमर और हृदय संबंधी बीमारियों व मधुमेह के संबंध को स्वीकार करते हैं। अमेरिका में हुए एक अध्ययन में 45,000 महिलाओं का 16 साल के लिए अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि बढ़ी कमर वाली महिलाएं (35 इंच या इससे अधिक कमर) हृदयाघात से मरने के दोगुने खतरे में थीं, बनिस्पत उन महिलाओं के, जिनकी कमर 28 इंच से कम थी। यह शोध नर्सेज हेल्थ स्टडी में छपा था। डॉक्टर विक्रम कहते हैं, जब हमारा शरीर फैट एकत्रित करता है तो उसके कई कारण हो सकते हैं। यह आनुवंशिक हो सकता है या फिर हार्मोन के कारण भी। हालांकि सबसे प्रमुख कारण खान-पान पर नियंत्रण है। अच्छे वजन वाले फिट लोगों की भी तोंद हो सकती है, इसलिए पैकेट वाले भोजन से बचना चाहिए और शारीरिक तौर पर अधिक परिश्रमी होना चाहिए, ताकि शरीर शेप में रहे। तनाव पर नियंत्रण और पूरी नींद भी इसमें अहम रोल अदा करती है। डॉक्टर कासलीवाल कहते हैं, कुल मिला कर सब कुछ स्वस्थ जीवनशैली पर निर्भर करता है। जिस तरह से आप जीते हैं, वह आपके स्वास्थ्य पर भी झलकता है। इसलिए जितना जल्दी आप तनावमुक्त जीवन जीना आरंभ करेंगे, उतनी जल्दी आपका शरीर सही आकार में आ जाएगा। परेशान होने का समय… -अगर आपके शरीर में अतिरिक्त फैट है -अगर आप प्रतिदिन 6 से 7 घंटे की नींद नहीं ले रहे हैं -ट्रांस फैट वाला भोजन, पैकेट वाला खाना, प्रिजरवेटिव वाला भोजन अधिक मात्रा में कर रहे हैं -फल और सब्जियों का पर्याप्त मात्रा में सेवन नहीं कर रहे -दिन में दो गिलास शराब से अधिक पी रहे हैं -अत्यधिक तनाव में हैं और शारीरिक श्रम नहीं कर रहे -फैटी लिवर है तोंद है या पेट के आसपास सूजन है बढ़ता खतरा:- आन्त्र द्वारा निकला फैट शरीर के भीतर ही जमा होता जाता है। पेट के भीतर यह लिवर, किडनी और आंत के आसपास जमा हो जाता है। इसके कारण मेटाबॉलिक बदलाव होते हैं, जो टोटल कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा देते हैं। इसके साथ एलडीएल यानी बैड कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है और एचडीएल यानी अच्छा कोलेस्ट्रॉल कम हो जाता है। इससे रक्तचाप बढ़ता है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। पांच तरीके फ्लैट पेट के लिए:- पर्सनल ट्रेनर शालिनी भार्गव कहती हैं कि पेट को फ्लैट करने में समय लगता है। इसके लिए आपको वचनबद्ध, एकाग्र और धैर्यवान बनना होगा। इसके लिए ये उपाय अपनाएं… -पेट की चर्बी कम करने में सबसे कारगर है एरोबिक व्यायाम। पेट के व्यायाम करें। –स्टेबिलिटी बॉल और डंबल्स की मदद से क्रंचेज करें। -पेट

सुपर फूड जैसा है अंकुरित भोजन

शरीर में प्रोटीन की कमी होने पर थकान महसूस होती हैं। ऐसे में लोग सप्लीमेंट के तौर पर प्रोटीन लेना शुरू करते हैं। नतीजा हमारे स्वास्थ्य पर उनका बुरा प्रभाव पड़ता है। जबकि प्रोटीन का भी विकल्प मौजूद है। दरअसल, स्प्राउट्स ऐसी चीज है, जिसके खाने से कभी परेशानी नहीं होती। यह प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व व प्रोटीन से भरा है। नट्स, अनाज और फलियों को जब पानी में डाला जाता है तो इनमें मौजूद फाइटेट्स खत्म हो जाते हैं। जिससे इसे पचाने में बेहद आसानी होती है। किसी भी अनाज को जब अंकुरित किया जाता है, तो उसमें मिनरल्स, प्रोटीन, विटामिन और अन्य पोषक तत्व अच्छी तरह अवशोषित हो जाते हैं। जहां तक एंटी-आक्सीडेंट की बात है तो स्पाउट्स में प्रचुर मात्रा में एंटी-आक्सीडेंट पाए जाते हैं। एंटी-आक्सीडेंट शरीर की प्रक्रिया के सही ढंग से चलाने में सहायक होते हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हम मंहगी से महंगी दवाइयां खरीद लेते हैं पर अपना देसी और सस्ता इलाज भूल जाते हैं। जबकि स्प्राउट्स सबसे बढ़िया व सस्ता विकल्प हैं अपने आप को स्वस्थ रखने का चना, मूंग, राजमा और मटर को रात भर पानी में डाल कर रखें और अगले दिन इसे सब्जी के साथ पका कर या फिर अंकुरित कर खा सकते हैं। स्प्राउट्स बनाने की विधि कच्चे अनाज को सुपर फूड बना देती है। उनमें प्रोटीन, फाइबर और विटामिन की मात्रा काफी बढ़ जाती है। लंबे समय तक स्वस्थ रहने का सबसे अचछा तरीका है स्प्राउट्स। यह हमें कई तरह की बीमारियों और लाइफस्टाइल संबंधी परेशानी से बचाती है। स्प्राउट्स को पोषक तत्वों का बंडल भी कहा जाता है। अनाज जैसे गेहूं, मक्का रागी, बार्ली और बाजरे को 12 घंटे पानी में भिगोकर मिट्टी में डाल दिया जाता हैं। इनके नन्हें पौधे 10-12 दिनों में तैयार हो जाते हैं। इनका जूस सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होता है। तिल, मूली और मेथी के बीज खाने में तो कड़वे होते हैं, पर इन्हें स्प्राउट्स के साथ मिलाकर खाया जा सकता हैं। हरे और काले चने, के स्प्राउट्स के साथ-साथ ओट्स, बकवीट में उच्च मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। अलफा अलफा को स्प्राउट्स का राजा कहा जाता है। इसमें मैंग्नीज की उच्च मात्रा पाई जाती हैं और साथ में विटामिन ए, बी, सी, ई और के की प्रचुर मात्रा भी होते हैं। इसमें एमिनो एसिड और दूध से काफी ज्यादा कैल्शियम पाया जाता है। स्प्राउट्स में प्रोटीन, कैल्शियम, पोटाशियम, सोडियम, आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए, थाइमिन या विटामिन बी-1, बी-2, बी-3, विटामिन सी मौजूद होते हैं, जो हमारे शरीर की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करते हैं। यह क्लोरोफिल का अच्छा स्रोत है और इसमें एंटीबैक्टेरियल व एंटीइनफ्लैमेटरी गुण मौजूद होते हैं। अगर आप अपना वजन कम करना चाहते हैं तो स्प्राउट्स से बेहतर कुछ नहीं। इसे खाने से पेट भरा-भरा सा रहता है और काफी दूर तक भूख नहीं लगती। स्प्राउट्स खाना सबसे सुरक्षित है। इसमें सही मात्रा में मौजूद पोषक तत्व आप को स्वस्थ रखते हैं।

संतरे का छिलका बर्न करता है फैट

विटामिन सी और कई दूसरे पोषक तत्वों से भरपूर संतरा तो वजन कम करने में मददगार है ही, उसका छिलका भी अपने कई गुणों के कारण फैट को बर्न करता है. संतरे के छिलके में विटामिन बी6, कैल्शियम, फॉलेट के अलावा पॉलिफेनॉल्स भी पाया जाता है जो डायबिटीज के साथ अल्जाइमर और मोटापा जैसी दिक्कतों को भी दूर करने में मदद करता है. संतरे के फल की तुलना में उसके छिलके में 4 गुना अधिक फाइबर होता है. इसलिए इसके सेवन के बाद देर तक भूख नहीं लगती. छिलके में मौजूद विटामिन सी फैट को बर्न करने में मदद करता है. संतरे में कैलरीज की मात्रा बेहद कम होती है. साथ ही संतरे में पानी की मात्रा अधिक होती है. एक संतरे में आमतौर पर करीब 87 प्रतिशत पानी होता है जिससे यह सर्दी के मौसम में आपको हाइड्रेटेड रखने में मदद करता है. संतरे में मौजूद फाइबर के कारण इसे खाने के बाद पेट भरा हुआ महसूस होता है. पाचन तंत्र भी सही बना रहता है और कब्ज की दिक्कत भी नहीं होती. एक स्टडी के मुताबिक, संतरे में पाया जाने वाला वाटर-साल्यूबल यानि पानी में घुलनशील विटामिन मोटापे से लड़ने और वेट को मैनेज करने में मदद करता है. यह शरीर के फैट बर्निंग प्रोसेस को भी तेज करता है.

पैरासिटामोल के कारण वृद्ध लोगों में पाचन तंत्र, हृदय और गुर्दे पर पड़ता दुष्प्रभाव : अध्ययन

नई दिल्ली, 14 दिसंबर: चिकित्सक की पर्ची के बिना मिलने वाली दवाओं में शामिल पैरासिटामोल 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों में आंत, हृदय और गुर्दे से संबंधित बीमारियों का जोखिम बढ़ा सकती है। एक नये अध्ययन में यह दावा किया गया है। हल्के से मध्यम बुखार के दौरान आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली पैरासिटामोल, अस्थियों से जुड़ी बीमारियों के उपचार के लिए भी चिकित्सक द्वारा परामर्श दी जाने वाली पहली दवा है क्योंकि इसे प्रभावी, अपेक्षाकृत सुरक्षित और सुलभ माना जाता है। हालांकि, दर्द निवारण में पैरासिटामोल की प्रभावशीलता पर कुछ अध्ययनों में सवाल उठाये गए हैं, जबकि अन्य अध्ययनों ने लंबे समय तक इसके उपयोग से पाचन तंत्र संबंधी दुष्प्रभावों, जैसे अल्सर और रक्तस्राव, के बढ़ते जोखिम को रेखांकित किया है। ब्रिटेन के नॉटिंघम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए नवीनतम अध्ययन में पाया गया कि पैरासिटामोल के उपयोग से पेप्टिक अल्सर रक्तस्राव (पाचन तंत्र में अल्सर के कारण रक्तस्राव) के जोखिम में क्रमशः 24 प्रतिशत और 36 प्रतिशत की वृद्धि होती है और आंत संबंधी रक्तस्राव में कमी आती है। अध्ययन के मुताबिक, पैरासिटामोल के सेवन से गुर्दे के गंभीर रोग का खतरा 19 प्रतिशत, दिल का दौरा पड़ने का खतरा नौ प्रतिशत तथा उच्च रक्तचाप का खतरा सात प्रतिशत बढ़ सकता है। आर्थराइटिस केयर एंड रिसर्च पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, ‘‘यह अध्ययन वृद्ध लोगों में गुर्दा, हृदय और आंत संबंधी दुष्प्रभावों को दर्शाता है।’’ नॉटिंघम विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रमुख अनुसंधानकर्ता वेया झांग ने कहा, ‘‘कथित तौर पर सुरक्षित होने की वजह से पैरासिटामोल को अस्थियों से जुड़े रोगों के लिए कई उपचार दिशानिर्देशों में प्राथमिक दवा के रूप में अनुशंसित किया गया है, विशेष रूप से वृद्ध लोगों में, जिनमें दवा से उत्पन्न जटिलताओं का उच्च जोखिम होता है।’’ शोधकर्ताओं ने इन नतीजों पर पहुंचने के लिए 1,80,483 लोगों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड का विश्लेषण किया, जिन्हें बार-बार पैरासिटामोल दी गई थी। शोधकर्ताओं ने इसके बाद इन स्वास्थ्य रिपोर्ट की तुलना उसी आयु के 4,02,478 (4.02 लाख) लोगों से की, जिन्हें कभी भी बार-बार पैरासिटामोल नहीं दी गई थी।

बर्गर आपकी जिंदगी के 9 मिनट और कोक आपकी जिंदगी के 12 मिनट खा जाता है: डॉ अर्चिता महाजन

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में यह चौंकाने वाला खुलासा किया है. अब तो विश्वास कर लो। बनाने वाले बेचने वाले खुद कह रहे हैं कि जहर है डॉ अर्चिता महाजन न्यूट्रीशन डाइटिशियन एवं चाइल्ड केयर होम्योपैथिक फार्मासिस्ट एवं ट्रेंड योगा टीचर नॉमिनेटेड फॉर पद्मा भूषण राष्ट्रीय पुरस्कार और पंजाब सरकार द्वारा सम्मानित ने बताया कि मैं तो पिछले कुछ सालों से लगातार कह रही हूं कि यह बर्गर पिज़्ज़ा फास्ट फूड और विशेष करके कोक हमारा जीवन को खा रही है। परंतु मेरा आर्टिकल पढ़ कर लोगों ने विश्वास नहीं किया पर अब अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में यह चौंकाने वाला खुलासा किया है. की बर्गर खाने से जिंदगी के 9 मिनट और कोक पीने से जिंदगी के 12 मिनट कम हो जाते हैं। अमेरिका की मिशीगन यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में पाया गया है कि कोक और बर्गर जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ हमारी जिंदगी को कम कर सकते हैं। इन खाद्य पदार्थों में उच्च मात्रा में चीनी, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा होती है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं।इस अध्ययन में पाया गया है कि जो लोग नियमित रूप से कोक और बर्गर जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, उनमें मृत्यु दर अधिक होती है। इसके अलावा, इन खाद्य पदार्थों का सेवन करने से हमारे शरीर में कई प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, जैसे कि मधुमेह, हृदय रोग और मोटापा।हम अपने आहार में स्वस्थ और पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल करें, जैसे कि फल, सब्जियां, साबुत अनाज और लीन प्रोटीन।