ज्यादातर पर्यटक अब इको टूरिज्म को महत्ता देते नजर आ रहे हैं। इको टूरिज्म प्रकृति से जुड़ने का अच्छा विकल्प है। ऐसा ही इको टूरिज्म का एक हिस्सा है राजगढ़ का बोधिसत्व कैम्प। यह जगह आर्किड के फूलों की तरह खूबसूरत है। यहां आने के बाद आपको एडवेंचर के साथ प्रकृति से घुलने मिलने का भी भरपूर समय मिलता है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के छोटे और अनोखे पहाड़ों के शहर राजगढ़ का यह कैम्प अपने आप में बेहद अनोखा है। राजगढ़ आज भी प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में शामिल नहीं हो पाया है जबकि यहां प्राकृतिक दृश्यों का भरपूर खजाना भरा पड़ा है। हरी-भरी घाटियां, घने जंगल और पहाड़ों से आती ताजी हवाओं का आनंद लेने यहां दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। गांव की खूबसूरत जीवनशैली को दर्शाती यह जगह हर सुविधा से परिपूर्ण है। बिजली और ट्रांसपोर्ट की बेहतरीन सुविधा राजगढ़ में देखने को मिलती है। यहां के शांत वातावरण में आप अपने आप को रिलैक्स कर सकते हैं। चुड़धर चोटी पर चढ़ना चुनौतीपूर्ण होता है। 12 हजार फीट की ऊंचाई पर इस चोटी पर जाने के लिए लोग हाइकिंग जैसे साहसिक खेल का सहारा लेते हैं। कैम्प के पास कल-कल बहती नदी मन को शीतल कर देती है। कैम्प के पास प्राकृतिक वरदान के रूप में दो धाराएं साल भर बहती रहती हैं जिससे इस जगह की खूबसूरती और बढ़ जाती है। कैंप के पास ही घाटी इस जगह को हमेशा ठंडा रखती है। दूर तक फैले देवदार के वृक्ष यहां का तापमान सामान्य रखने में मदद करते हैं। कैम्प बोधिसत्व में तरह-तरह की एक्टीविटी आपको हफ्तों तक व्यस्त रख सकती है जैसे हाइकिंग, रॉक क्लाइबिंग, रैंपलिंग वगैरह। आप यहां के प्राकृतिक दृश्यों के बीच बर्ड देखने का मजा ले सकते हैं। यहां की हरियाली में इधर-उधर फुदकती चिड़ियों की कई प्रजातियां हमें लुभाती हैं। कैम्प के पास बहती धारा में पर्यटक स्वीमिंग का मजा लेते हैं। इसे स्प्लैश स्वीमिंग कहते हैं। यहां की घाटियों में छुपे खूबसूरत वाटरफॉल आपको अपने पास से हटने नहीं देंगे। इनकी खूबसूरती देखते बनती है। यहां एक बेहतरीन पिकनिक स्पॉट भी है। इसके अलावा और भी कई चीजें हैं जिसका मजा यहां ले सकते हैं जैसे बैडमिंटन, शतरंज, रोप स्वींग, सांस्कृतिक नृत्य आयोजन वगैरह आपको हर पल व्यस्त रखेंगे। राजगढ़ के पास ऐसी और भी जगहें हैं जिसे आप देख सकते हैं। जैसे ओछघाट की खूबसूरत मोनेस्ट्री, 40 साल पुराने बॉन-पा मोनेस्ट्री जहां महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था है। 40 किलोमीटर दूर बारू-साहब गुरुद्वारा भी दर्शनीय है। यह सिखों का सबसे पुराना पवित्र स्थान है। यहां जाने के लिए सड़क व रेल यातायात का इस्तेमाल कर सकते हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन कालका-चंडीगढ़ है। यहां से राजगढ़ के लिए टैक्सी आसानी से मिल जाती है।
सफर के दौरान इन चीजों का सेवन हो सकता है हानिकारक
लंबी छुट्टियों के दौरान हर कोई पूरे परिवार के साथ कहीं न कहीं घूमने जाने का प्लान बनाता है। गर्मियों की छुट्टी हो या वेकेशन हिल स्टेशन जाने का अपना ही मजा होता है। कई लोग सफर के दौरान गाने सुनते हैं तो कोई किताब पढते हैं तो कोई आराम करते हैं। सफर के समय भूख लगना एक बहुत ही ज़ाहिर सी बात हैं। हम घर से काफी सारी चीजें लेकर जाते हैं सफर के लिए लेकिन सफर में हम और चीजें भी खरीद लेते हैं। जिससे कई लोगों को सफर के दौरान उल्टी, जी मचलने की, सर घूमने की शिकायत रहती है और ऐसा होने पर सफर का मजा फीका पड़ जाता है। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि सफर में कि चिजों का सेवन हानिकार साबित हो सकता है। तला हुआ खाना :- ध्यान रहे कि सफर में कभी भी आप तले हुए खाने का सेवन ना करें ऐसा करने से आपकी सेहत को नुकसान पहुंच सकता हैं। ट्रेन से यात्रा के दौरान कई बार स्टेशन पर समोसे, कटलेट जैसी चीजें मिलती हैं। इन्हें देखकर मन ललचाने लगता है और हम भूख न लगने पर भी इनका सेवन कर लेते हैं। बाहर खुले में बिकने वाली इन चीजों को यात्रा के दौरान खाने की गलती न करें। नॉन वेज :– अगर आप सफर के दौरान नॉन वेज खाते हैं तो वह आपके पेट के लिए सहीं नहीं हैं क्योंकि नॉन वेज काफी हेवी होता हैं और उसे पचने मे काफी समय लगता हैं और सफर में हम सिर्फ बैठे रहते हैं और हम ज्यादा हिल डुल नहीं सकते हैं जिससे नॉन वेज पच नहीं पाता हैं। इसलिए ध्यान रहें कि आप सफर के समय में हल्की चीजों का सेवन करें। दूध अंडा :- दूध और अंडा भी काफी भारी होते हैं हमारे पेट के लिए और इन्हें पचने में काफी समय लगता हैं तो अगली बार जब भी आप सफर करें तो ध्यान रहें कि आप दूध और अंडे का सेवन ना करें ताकी आपकी सेहत को कोई नुकसान ना हों और आपका सफर अच्छे से बीते। केले के चिप्स :– सफर के दौरान आप सूखे केले के चीप्स खा सकते हैं। ये आपको बाजार में आसानी से मिल जाएंगे। इसके अलावा एक मुट्ठी बादाम, भूने हुए चने, पिस्ता, सूखे कॉर्नफ्लैक्स और मूंगफली को हल्का सा सरसों के तेल या ऑलिव ऑयल में फ्राई करके पैक करके रख लें। इनके अलावा आप सेब और केले का सेवन भी कर सकते हैं।
चेरापूंजी जहां होती है दुनिया की सबसे ज्यादा बारिश, यहां और भी बहुत कुछ है खास
पहाड़ों पर बरसात का मौसम बहुत ही खूबसूरत और रोमांटिक होता है और फिर चेरापूंजी में तो 12 महीने बरसात होती ही रहती है। ऐसे में यहां के मौसम के तो कहने ही क्या। सबसे ज्यादा बारिश का रिकॉर्ड दर्ज होने की वजह से चेरापूंजी को ”वेटेस्ट प्लेस ऑफ द वर्ड” तथा ”बारिश की राजधानी” भी कहा जाता है। सदाबहार मौसम के कारण ही यहां साल भर टूरिस्ट्स का आना-जाना लगा रहता है। मेघालय की राजधानी शिलांग से चेरापूंजी केवल 56 किमी. दूर है। रास्ते में चढ़ाई है, लेकिन ज्यादा नहीं। ऊंची-नीची पहाडि़यों और टेडे-मेडे रास्तों से गुजरते हुए आप कब चेरापूंजी पहुंच जाएंगे, पता भी नहीं चलेगा। चेरापूंजी के चारों तरफ पहाड़ और घाटियां हैं। यहां फर्न, चीड़ और ऐरोकेरिया के पेड़, कई तरह के लोकल फ्रूट्स, संतरा और अन्नानास बहुत होते हैं। कुछ खास किस्म की घास और फूल भी देखने को मिलते हैं। यहां की खासी जाति का मुख्य व्यवसाय जंगली उपज ही है। ये लोग सौंदर्य प्रेमी होते हैं। कलात्मक कपड़ों, शालों व सजावटी चीज़ों को बनाते हैं और उन्हें बेचते भी हैं। इनके घर बड़े सुंदर होते हैं, जिन्हें ये सजाकर रखते हैं। अपनी धरती, धर्म, समाज और रीति-रिवाज के प्रति ये बहुत ही आस्थावान होते हैं। ‘सोहरा’ नाम है इसका : मेघालय आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के इस पसंदीदा जगह का नाम अब बदल गया है। इसका नाम पहले भी सोहरा था और अब फिर से सोहरा हो गया है। ब्रिटिश शासकों ने सन् 1830 में चेरापूंजी को अपना क्षेत्रीय मुख्यालय बनाया था। अंग्रेजों को इसके तत्कालीन नाम सोहरा के उच्चारण में काफी दिक्कत होती थी। वे लोग इसे चेरा कहने लगे। उसके बाद स्थानीय लोगों ने बादलों के समूह को देखते हुए इस नाम में पूंजो जोड़ दिया जो बाद में चेरापूंजी हो गया, लेकिन चेरापूंजी को उसका असली नाम देने की मांग जोर पकड़ने लगी और जन आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने इसका नाम बदल कर फिर से सोहरा करने का फैसला किया। होती है रिकॉर्ड बारिश : चेरापूंजी या सोहरा के नाम बारिश के कई रिकॅार्ड दर्ज है। गिनीज बुक ऑफ वर्ड रिकॉर्ड के अनुसार यहां एक ही साल में सबसे ज्यादा बारिश 22 हजार 987 मि.मि. एक अगस्त 1860 से जुलाई 1861 के बीच हुई थी। एक महीने में सबसे ज्यादा बारिश भी जुलाई 1861 में 9300 मि.मि. दर्ज की गई। एक दिन में सबसे ज्यादा 61 इंच बारिश का रिकॉर्ड भी सोहरा के नाम ही दर्ज हैं। इन सबके बावजूद पिछले कुछ सालों से यहां बरसात कम होने लगी हैं और मोहसिनराम में यहां से अधिक वर्षा होती है। खैर, बारिश कम हो या ज्यादा, लेकिन होती बहुत खूब हैं। अपनी अद्भुत व आकर्षक नैसर्गिक छटा के कारण ही चेरापूंजी के आसपास स्थित झरने और नेचुरल ब्यूटी टूरिस्ट्स को लुभाती रही है। खूबसूरत झरने : चेरापूंजी की सबसे आकर्षक जगह है नोहकलिकाई जलप्रपात, काफी उंचाई से गिरता यह दूधिया झरना अपने में एक मार्मिक कथा समेटे हुए है। कहते हैं कि लिकाई नाम की एक महिला जब एक दिन अपने काम पर से घर लौटी तो उसने अपने बच्चे के लिए पति से पूछताछ की। पति ने कहा कि बच्चे को काट कर खाने के लिए पका लिया है। सुनते ही लिकाई सदमे से भर गई और इस झरने में कूद पड़ी। तभी से इस झरने का नाम नोहकलिकाई पड़ा । वैसे तो व्यू प्वाइंट से झरने का समग्र स्वरुप देखा जा सकता है, लेकिन ठेठ नीचे तक जाने के लिए सीढि़यां भी बनी हुई हैं। रामकृष्ण मिशन संस्थान : चेरापूंजी में एक सबसे पुराना रामकृष्ण मिशन संस्थान है। यहां के विद्यार्थी हिंदी, अंग्रेजी, खासी, बंगला भाषाओं के ज्ञाता हैं। यहां ऊनी कपड़े, कलात्मक वस्तुएं, जड़ी बूटियों से दवा बनाने आदि का काम होता हैं। पूरा संस्थान अपनी भव्यता, शांति, सफाई और अलग-अलग एक्टिविटीज के लिए मशहूर है। मोसमाई की गुफाएं : चेरापूंजी से 5 किमी. दक्षिण में बसा नोह संगीथियांग प्रपात और मौसमाई प्रपात है। मौसमाई ग्राम के निकट जंगल में गुफाएं प्रकृति की अपनी विशिष्ठ रचना है। यहां चूने के पत्थरों के साथ पानी के मेल से अजीबोगरीब अश्चुताष्म एवं निश्चुताष्म आकृतियां बन गई है, जो पर्यटकों को बेहद आकर्षित करती हैं। गुफा में घुटनों तक पानी भरा होता है। पत्थरों की उंची-नीची, चिकनी और तीखी, कहीं संकरी और कहीं चौड़ी आकृतियों पर चलना, चढ़ना डराता भी है और रोमाचिंत भी करता है। गुफा में जाने के तीन रास्ते हैं। लिविंग ब्रिज : चेरापूंजी के जंगलों में पेड़ की शाखाओं और जड़ों से बने पुल देखे जा सकते हैं। इन्हें ”लिविंग ब्रिज” भी कहा जाता है। यहां के लोग खास तकनीक से ऐसे पुल बनाते हैं, जो 10-15 साल में बनकर तैयार हो जाते हैं और सैकड़ों सालों तक इस्तेमाल में आते हैं। यहां ऐसी ही एक सबसे पुरानी पुलिया 500 सालों से प्रयोग में ली जा रही है। चेरापूंजी की दूसरी देखने वाली जगहों में मोकडोक डिम्पेप वेली जो शिलांग से चेरापूंजी के रास्ते में आती है, बहुत ही सुंदर और हरी-भरी हैं। यहां डाइन्थलेन वाटरफाल, डोन बोस्को श्राइन, चर्च, डेविड स्कोट मेमोरियल, ग्रीन केन्योन ऑफ चेरापूंजी, ईको पार्क, केर्नरम वाटरफाल आदि भी घूमने लायक है। माउलंग सीम पीक : चेरापूंजी आने वाले यात्रियों के लिए रोमांच, साहस और सौंदर्य से भरा एक और स्थान है माउलंग सीम पीक। यहां दूर से गिरता एक झरना, बादलों का आवरण, बांगलादेश के सिलहट जिले का मैदानी भाग और घने वृक्षों से घिरा जंगल दिखाई देता है। यहां एक सुंदर बगीचा है, जिसमें यात्रियों के बैठने, घूमने और देखने की सुविधा है। बगीचे में तरह-तरह के फूलों की क्यारियां, झूले, फव्वारे और चहलकदमी के लिए बनी सीढि़यां व पगडंडियां है, जिन पर चलते, अठखेलियां करते पर्यटक मस्ती में गाते-गुनगुनाते रहते हैं। इस पूर्वी प्रदेश में शाम जल्दी होती है। इसलिए माउलंग सीम पीक से सीधे शिलांग जा सकते हैं। कैसे जाएं : चेरापूंजी जाने के लिए शिलांग के बड़ा बजार बस स्टेंड से बसें मिल जाती हैं। शिलांग से टैक्सी किराये पर लेकर भी चेरापूंजी की एक दिन की यात्रा की जा सकती हैं। ठहरने के लिये यहां कई हॉलीडे रिजॉर्ट हैं।
ब्रह्मा नगरी के नाम से प्रसिद्ध है पुष्कर, जानें दर्शनीय स्थल
पुष्कर दर्शनीय स्थल : राजस्थान में स्थित पुष्कर एक प्राचीन शहर है और इस जगह पर कई सारे तीर्थ स्थल मौजूद हैं। ब्रह्मा जी का इकलौता मंदिर पुष्कर में ही स्थित है और इस शहर को ब्रह्मा नगरी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में आकर ब्रह्मा जी के दर्शन करने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। पुष्कर दर्शनीय स्थल पुष्कर को एक पवित्र नगरी भी कहा जाता है और इसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक स्थल में गिना जाता है। पुष्कर में कौन-कौन से दर्शनीय स्थल मौजूद हैं उनकी जानकारी इस तरह से है। पुष्कर झील पुष्कर दर्शनीय स्थल में से पुष्कर झील एक है। इस झील में 52 स्नान घाट हैं और इस झील में आकर लोगों द्वारा डुबकी लगाई जाती है। इस झील के पास ही लगभग 500 मंदिर बने हुए हैं और इन सभी मंदिरों को नीले रंग से रंगा हुआ है। इस झील से जुड़ी पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा द्वारा इस झील को बनाया गया था। इस झील में कार्तिक मास के दौरान स्नान करना शुभ माना जाता है। महात्मा गांधी की अस्थियों का विसर्जन पुष्कर झील में ही किया गया था। ब्रह्मा मन्दिर पुष्कर में स्थित ब्रह्मा मन्दिर इस दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां पर ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। इस मंदिर में ब्रह्मा की मूर्ति विराजमान है और हर साल लाखों की संख्या में लोग इस मंदिर में आया करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 14वीं शताब्दी में हुआ था और यह मंदिर 700 वर्ष पुराना है। इस मंदिर के मुख्य द्वार को बनाने के लिए संगमरमर के पत्थरों से का प्रयोग किया गया है। यह मंदिर काफी भव्य हैं और कार्तिक मास के दौरान इस मंदिर में काफी भीड़ होती है। पुष्कर मेला पुष्कर दर्शनीय स्थल में प्रसिद्ध मेला भी लगता हैं। पुष्कर मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा को आयोजन किया जाता है और इस मेले को देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी आते हैं। यह एक पशु मेले होता है और इस मेले में लोग अपने पशुओं को खासकर ऊंटों को लेकर आते हैं। इस मेले का आयोजन काफी भव्य तरीके से किया जाता है। पुष्कर शहर से जुड़ी अन्य जानकारी -पुष्कर शहर को वेद माता गायत्री की जन्मभूमि भी कहा जाता है। -यह जगह भगवान शिव जी के शक्ति पीठ में से एक है और ऐसा कहा जाता है कि चारों धामों की यात्रा करने के बाद पुष्कर झील में डुबकी जरूर लगानी चाहिए। -पुष्कर ‘राजस्थान का गुलाब उद्यान’ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। क्योंकि यहां पर गुलाब की खेती खूब की जाती है और यह फूल अन्य देशों में भेजे जाते हैं। -पुष्कर में कई सारी दुकाने स्थित हैं जहां से आप शॉपिंग भी कर सकते हैं। कैसे पहुंचे अजमेर जिले में स्थित पुष्कर शहर आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह शहर वायु, सड़क और रेलवे मार्ग से जुड़ा हुआ है। इस जगह पर कई सारी धर्मशाला और होटल मौजूद हैं। हालांकि कार्तिक मास के समय आप पहले से ही कमरे बुक करवाकर इस जगह पर पर जाएं। क्योंकि इस महीने के दौरान यहां पर खूब भीड़ होती है। पुष्कर दर्शनीय स्थल जानने के बाद आप इस जगह एक बार जरूर जाएं।
परिवार के साथ महाकुंभ मेले में घूमने का बना रहे प्लान तो इन बातों का रखें खास ख्याल
महाकुंभ मेले का आयोजन 12 साल में एक बार किया जाता है। महाकुंभ एक महीने के लिए लगता है, जिसकी तैयारियां और सुरक्षा के इंतजाम महीनों पहले से कर लिए जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस मेले का हिस्सा बनने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। तो वहीं लोग यहां पर परिवार के सदस्यों के साथ भी आते हैं। अक्सर ऐसा सुनने को मिलता है कि मेले में बच्चे ज्यादा खोते हैं। इसलिए जरूरी है कि बच्चों को महाकुंभ घुमाने के साथ-साथ आप उनकी सुरक्षा का भी ध्यान रखें। इससे आप और आपका परिवार महाकुंभ मेले का अच्छे से आनंद ले पाएंगे। ऐसे में अगर आप भी महाकुंभ मेले में परिवार और बच्चों के साथ आ रहे हैं, तो हम इस आर्टिकल के जरिए आपको बताने जा रहे हैं कि आपको इस दौरान किन-किन बातों का खास ख्याल रखना चाहिए। हाथ या गले पर डालें पहचान वाली पट्टी बता दें कि महाकुंभ मेले में अधिक भीड़ है और धक्का-मुक्की में कोई खो सकता है। इसलिए आपको अपने बच्चे के गले या फिर हाथ में पहचान वाली पट्टी जरूर डालें। इसके लिए आप किसी डार्क कपड़े का भी यूज कर सकते हैं। इसका एक हिस्सा बच्चे के हाथ या गले में डाल दें और दूसरा हिस्सा अपने पास रखें। इसके अलावा आप बच्चों के पॉकेट में पेरेंट्स का फोन नंबर की पर्ची जरूर डाल दें। इससे बच्चा आपको आसानी से मिल जाएगा और पुलिस भी आपको आसानी से खोज पाएगी। साथ ही ऐसा करने से आपको महाकुंभ की यात्रा में कोई दिक्कत भी नहीं आएगी। बच्चों को जरूर बताएं सुरक्षा के नियम अगर आपका बच्चा 10-12 साल का है, तो आपको इन्हें सुरक्षा के नियमों के बारे में जरूर बताना चाहिए। जिससे कि अगर कुंभ मेले में बच्चे का हाथ आपसे छूट जाए, तो वह नियमों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षाकर्मी के पास जा सकें। बता दें कि पोल पर कुछ नंबर लिखे जाते हैं, उनका भी ध्यान रख सकते हैं। इससे आपको यात्रा में किसी तरह की परेशानी नहीं आएगी और भीड़ में खोने वाला बच्चा भी आसानी से आपको मिल जाएगा। बच्चे को कंधे पर बिठाकर घूमाएं मेला अगर आपका बच्चा छोटा है और आप महाकुंभ मेला घूमने जा रहे हैं। तो बच्चे को कंधे पर बैठाकर मेले का आनंद दिलाएं। क्योंकि अधिक भीड़ होने की वजह बच्चा नीचे कुछ देख नहीं पाएगा और उसका सारा समय परेशान होने या रोने में निकल जाएगा। साथ ही बच्चे के परेशान होने पर आप भी परेशान होंगे। वहीं जब आप बच्चे को कंधे पर बिठा लेंगे, तो आप भी अच्छे से घूम पाएंगे और बच्चा भी अच्छे से मेला देख पाएगा। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से इस बार के महाकुंभ मेले के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखा गया है। इससे सुरक्षा में किसी तरह की कोई ढील नहीं होगी और समय पर सारे कार्य होते रहेंगे। लोगों को मेले में घूमने में किसी तरह की कोई दिक्कत न हो, इस बात का भी खास ख्याल रखा जाएगा।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरा खूबसूरत वादियों का शहर है ऊटी
गर्मी का मौसम आते ही सभी का मन हिल स्टेशंस पर जाने का करता है। अगर आपकी भी यही प्लानिंग है, तो इस बार आप ऊटी जाने के बारे में सोच सकते हैं। तमिलनाडु के इस हिल स्टेशन के नजारे आपको पूरे सीजन फ्रेश रखेंगे… नीलगिरी की पहाड़ियों में समुद्रतल से करीब 7,350 फीट की ऊंचाई पर बसा है ऊटी। घाटी में चारों ओर पसरी हरियाली, प्रकृति के खूबसूरत नजारे, ऊंचे बुलंद पहाड़, आसमान को छूते देवदार व चीड़ के पेड़ और सीढ़ीनुमा खेत, बेशक नेचर लवर्स को ये नजारे खूब लुभाते हैं। यही नहीं, चाय-कॉफी के बागानों की महक भी यहां आने वालों को तरोताजा कर देती है। गौरतलब है कि ऊटी का तापमान हमेशा 5 से 25 डिग्री सेल्सियस रहता है। यानी यहां आपको हमेशा खुशगवार मौसम मिलेगा। क्या देखें बॉटेनिकल गार्डन 1848 में बनाया गया बॉटेनिकल गार्डन आज भी ऊटी का बड़ा आकर्षण है। 22 हेक्टेयर में फैले इस गार्डन में छोटी-बड़ी क्यारियों में अलग-अलग प्रजाति के पेड़-पौधों की 650 से ज्यादा वैराइटी रखी गई है। यहां आप एक अच्छी वॉक का मजा ले सकते हैं। थक जाएं, तो छतरी के नीचे लगे बेंच पर बैठकर सुस्ताएं। बेशक यह आपको एक अलग ही मजा देगा। ऊटी लेक शहर से 3 किलोमीटर दूर ऊटी लेक टूरिस्ट्स में खासी पॉप्युलर है। इस आर्टिफिशल लेक का निर्माण 1825 में कोयम्बटूर के कलेक्टर जॉन सुलीवन ने करवाया था। बाद में इसी लेक के नाम पर शहर का नाम रखा गया। यहां आप बोटिंग और परमिशन मिलने पर फिशिंग भी कर सकते हैं। लेक परिसर के बाहर घुड़सवारी का भी आनंद उठा सकते हैं। चिल्ड्रन पार्क लेक परिसर में बना चिल्ड्रन पार्क बच्चों को नहीं, बड़ों को भी खूब पसंद आता है। यहां लगे झूलों का तो बच्चों में खासा क्रेज रहता है। छोटे-छोटे डिब्बों वाली टॉय ट्रेन में बच्चे ही नहीं, बड़े भी सैर करते हैं। यही नहीं, यहां जादू का खेल भी दिखाया जाता है। रोज गार्डन ऊटी के चेरिंग क्रॉस के पास 10 एकड़ में फैला रोज गार्डन पर्यटकों को खूब लुभाता है। गार्डन में गुलाब की 1000 से अधिक किस्में देखने को मिलती हैं। यहां सजाए गए डेकोरेटिव प्लांट्स भी सभी को बहुत पसंद आते हैं। ऊटी म्यूजियम मैसूर रोड पर 1989 में बनाया गया ऊटी का म्यूजियम भी देखने लायक है। यहां जहां एक ओर आदिवासी वस्तुओं और कपड़ों को प्रदर्शित किया गया है, वहीं दुनिया भर में मशहूर तमिलनाडु की मूर्तिकला, चित्रकला, सैंडलवुड से बनी अनेक वस्तुओं, मैसूर सिल्क और साउथ कॉटन के कपड़ों को भी दिखाया गया है। यहां आपको ऊटी से जुड़ी तमाम जानकारी भी मिलेगी। चेरिंग क्रॉस इसे ऊटी का दिल कहा जा सकता है। मूलत यह एक चैराहा है, जिसके चारों ओर कमर्शल रोड है। चैराहे के बीचोंबीच चारों दिशाओं की ओर मुंह एंजेल बच्चों वाला एक फाउंटेन है, जो आपका ध्यान बरबस ही खींच लेगा। रात के समय फव्वारे के बहते पानी पर पड़ने वाली रंग-बिरंगी लाइट की बदौलत इसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है। चेरिंग क्रॉस में तकरीबन हर दूसरी दुकान पर ऊटी में बनी चाय पत्ती, होममेड चॉकलेट और मसालों की पचासों वराइटी मिल जाती है। इनके अलावा, आप यहां से हैंडीक्राफ्ट आइटम या फिर हाथ से बनी वूलन शॉल ले सकते हैं। टॉय ट्रेन ऊटी से कुन्नूर के बीच चलने वाली टॉय ट्रेन में जाने का अलग ही मजा है। तीन डिब्बों वाली यह टॉय ट्रेन स्टीम इंजन से चलती है। इस ट्रेन के रास्ते में 16 सुरंगे और करीब 250 पुल आते हैं। तकरीबन एक घंटे के इस सफर में आपको नीलगिरी की पहाड़ियों को नजदीक से देखने का मौका मिलता है। मात्र 3 रुपये का टिकट लेकर आप इंजॉय कर सकते हैं। ऊटी के आसपास ऊटी की सैर पर निकले हैं, तो इसके आसपास भी कई दिलचस्प जगहें हैं। इसलिए यहां इंजॉय करना भी अपने टूर में शामिल कर लें। दोड्डाबेट्टा यह पहाड़ी सागर तल से 2,623 मीटर की ऊंचाई पर है और ऊटी से यह 10 किलोमीटर की दूरी पर है। यह जगह प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज है, जिससे आप अभिभूत हुए बिना नहीं रह पाएंगे। यहां लगी दूरबीन से नीलगिरी की छोटी-बड़ी पहाड़ियों, घाटियों और पठारों के सुंदर दृश्य निहारना कभी न भूलने वाला अनुभव है। इस दूरबीन से आप ऊटी का बस स्टैंड और पूरे शहर का नजारा सकते हैं। दोड्डाबेट्टा चाय फैक्ट्री दोड्डाबेट्टा से करीब 4 किमी दूर इस फैक्ट्री को देखने भी टूरिस्ट खूब जाते हैं। आप इस चाय फैक्टरी में न केवल चाय तैयार होते देख सकते हैं, बल्कि अलग-अलग जायकों की चाय का भी मजा ले सकते हैं। यहां काम करने वाले आपको चाय की पत्तियां तोड़ने से लेकर पैक करने तक का पूरा प्रोसेस समझाएंगे। वैसे, आप यहां से डिफरेंट फ्लेचर की चाय खरीद भी सकते हैं। होममेड चॉकलेट स्टोर चाय फैक्ट्री के साथ बना होममेड चॉकलेट स्टोर भी पर्यटकों को लुभाता है। यहां के बेसमेंट में स्टोर के वर्कर्स को चॉकलेट बनाते हुए देख भी सकते हैं। तमाम फ्लेवर्स वाली इन चॉकलेट्स को वराइटी के हिसाब से 30 रुपये से 70 रुपये प्रति 100 ग्राम के हिसाब से ले सकते हैं। कुन्नूर ऊटी से करीब 20 किमी दूर कुन्नूर हिल स्टेशन वाकई घूमने लायक जगह है। यह समुद्र तल से 2,000 फुट ऊपर है। रास्ते में कालाहट्टी वॉटर फॉल्स देखने लायक हैं। तकरीबन 36 मीटर की ऊंचाई से गिरता यह खूबसूरत झरना पर्यटकों को मोह लेता है। कुन्नूर में सिम डॉल्फिन नोज और कोतागिरी पॉप्युलर पिकनिक स्पॉट्स हैं। मुदुमलाय सेंचुरी वाइल्डलाइफ में इंटरेस्ट रखते हैं, तो यहां जा सकते हैं। इसके लिए आपको सड़क मार्ग से ऊटी से मैसूर जाना पड़ेगा। यहां आप जंगल सफारी का मजा ले सकते हैं। यहां पर्यटकों के ठहरने की व्यवस्था भी की गई है। कब जाएं ऊटी जाने का सबसे बेस्ट टाइम अप्रैल से जून और सितंबर से अक्टूबर के बीच का है। कहां ठहरें ऊटी में आपको कई मंहगे-सस्ते होटल और रिजॉर्ट मिल जाएंगे। आप अपने बजट के हिसाब से होटल ले सकते हैं। कैसे पहुंचें ऊटी का सबसे निकटतम हवाई अड्डा कोयंबटूर है। यहां से टैक्सी करके आप ऊटी आ सकते हैं। वैसे, ऊटी देश के प्रमुख रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।
प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है भारत का आखिरी गांव माणा, कहते है इसी रास्ते पांडव गए थे अलकापुरी
पांडव इसी प्राकृतिक सौन्दर्य से पूर्ण मार्ग से होते हुए अलकापुरी गए थे।कहते हैं कि अब भी कुछ लोग इस स्थान को स्वर्ग जाने का रास्ता मानकर चुपके से चले जाते हैं। हिमालय में बद्रीनाथ से तीन किमी आगे समुद्र तल से 18,000 फुट की ऊंचाई पर बसा है भारत का अंतिम गांव माणा। भारत-तिब्बत सीमा से लगे इस गांव की सांस्कृतिक विरासत तो महत्त्वपूर्ण है ही, यह अपनी अनूठी परम्पराओं के लिए भी खासा मशहूर है। यहां रडंपा जनजाति के लोग निवास करते हैं। पहले बद्रीनाथ से कुछ ही दूर गुप्त गंगा और अलकनंदा के संगम पर स्थित इस गांव के बारे में लोग बहुत कम जानते थे लेकिन अब सरकार ने यहां तक पक्की सड़क बना दी है। इससे यहां पर्यटक आसानी से आ जा सकते हैं, और इनकी संख्या भी पहले की तुलना में अब काफी बढ़ गई है। भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित इस गांव के आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें व्यास गुफा, गणेश गुफा, सरस्वती मन्दिर, भीम पुल, वसुधारा आदि मुख्य हैं। बहुत कठिन है जीवन माणा में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। छह महीने तक यह क्षेत्र केवल बर्फ से ही ढका रहता है। यही कारण है कि यहां कि पर्वत चोटियां बिल्कुल खड़ी और खुश्क हैं। सर्दियां शुरु होने से पहले यहां रहने वाले ग्रामीण नीचे स्थित चमोली जिले के गांवों में अपना बसेरा करते हैं। आपको जानकर हैरत होगी कि यहां का एकमात्र इंटर कॉलेज छह महीने माणा में और छह महीने चमोली में चलाया जाता है। हालांकि यह पूरा क्षेत्र सालभर ठंडा रहता है लेकिन यहां की जमीन को बंजर नहीं कहा जा सकता। अप्रैल-मई में जब यहां बर्फ पिघलती है, तब यहां की हरियाली देखने लायक होती है। यहां की मिट्टी आलू की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। जौ और थापर (इसका आटा बनता है) भी अन्य प्रमुख फसलों में हैं। इनके अलावा यहां भोजपत्र भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जिन पर हमारे महापुरुषों ने अपने ग्रंथों की रचना की थी। बद्रीनाथ में तो ये बिकते भी हैं। खेत जोतने के लिए यहां के लोग पशु-पालन भी करते हैं। पहले भेड़-बकरियां काफी संख्या में पाली जाती थीं लेकिन जाड़ों में उन्हें निचले क्षेत्रों में ले जाने वाली परेशानी को देखते हुए उनकी संख्या काफी कम हो गई है। मिलती हैं जड़ी-बूटियां हिमालय क्षेत्र में मिलने वाली अचूक जड़ी-बूटियों के लिए भी माणा गांव बहुत प्रसिद्ध है। हालांकि यहां के बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है। यहां मिलने वाली कुछ उपयोगी जड़ी-बूटियों में बालछड़ी है जो बालों में रूसी खतम करने और उन्हें स्वस्थ रखने के काम आती है। इसके अलावा खोया है जिसकी पत्तियों से सब्जी बना कर खाने से पेट बिल्कुल साफ हो जाता है। यहां मिलने वाली पीपी की जड़ भी काफी प्रसिद्ध है, इसकी जड़ को पानी में उबाल कर पीने से भी पेट साफ होता है और कब्ज की शिकायत नहीं रहती। पाखान जड़ी भी अपने आप में बहुत कारगर है, इसको नमक और घी के साथ चाय बनाकर पीने से पथरी की समस्या कभी नहीं होती और पथरी के इलाज में भी ये बहुत कारगर साबित होती है। चावल की शराब और गलीचे माणा गांव की आबादी चार सौ के करीब है और यहां केवल 60 घर हैं। ज्यादातर घर दो मंजिलों पर बने हुए हैं और इन्हें बनाने में लकड़ी का ज्यादा प्रयोग हुआ है। छत पत्थर के पटालों की बनी है। इन घरों की खूबी ये है कि इस तरह के मकान भूकम्प के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं। इन मकानों में ऊपर की मंजिल में घर के लोग रहते हैं जबकि नीचे पशुओं को रखा जाता है। शराब के बाद चाय यहां के लोगों का प्रमुख पेय पदार्थ है। यहां चावल से शराब बनाई जाती है और यह घर-घर में बनती है। बद्रीनाथ धाम के पास शराब का यह बढ़ता प्रचलन मन को झिंझोड़ता और कचोटता जरूर है लेकिन हिमालयी क्षेत्र और जनजाति होने के कारण सरकार ने इन्हें शराब बनाने की छूट दे रखी है। दर्शनीय स्थल माणा गांव से लगे कई ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल हैं। गांव से कुछ ऊपर चढ़ाई पर चढ़ें तो पहले नजर आती है गणेश गुफा और उसके बाद व्यास गुफा। व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी और वेदों को चार भागों में बांटा था।व्यास गुफा और गणेश गुफा यहां होने से इस पौराणिक कथा को सिद्ध करते हैं कि महाभारत और पुराणों का लेखन करते समय व्यासजी ने बोला और गणेशजी ने लिखा था। व्यास गुफा, गणेश गुफा से बड़ी है। गुफा में प्रवेश करते ही किसी की भी नजर एक छोटी सी शिला पर पड़ती है। इस शिला पर प्राकृत भाषा में वेदों का अर्थ लिखा गया है। इसके पास ही है भीमपुल पांडव इसी मार्ग से होते हुए अलकापुरी गए थे।कहते हैं कि अब भी कुछ लोग इस स्थान को स्वर्ग जाने का रास्ता मानकर चुपके से चले जाते हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ भीम पुल से एक रोचक लोक मान्यता भी जुड़ी हुई है।जब पांडव इस मार्ग से गुजरे थे। तब वहां दो पहाड़ियों के बीच गहरी खाई थी, जिसे पार करना आसान नहीं था। तब कुंतीपुत्र भीम ने एक भारी-भरकम चट्टान उठाकर फेंकी और खाई को पाटकर पुल के रूप में परिवर्तित कर दिया। बगल में स्थानीय लोगों ने भीम का मंदिर भी बना रखा है। वसुधारा– इसी रास्ते से आगे बढ़ें तो पांच किमी. का पैदल सफर तय कर पर्यटक पहुंचते हैं वसुधारा. लगभग 400 फीट ऊंचाई से गिरता इस जल-प्रपात का पानी मोतियों की बौछार करता हुआ-सा प्रतीत होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पानी की बूंदें पापियों के तन पर नहीं पड़तीं। यह झरना इतना ऊंचा है कि पर्वत के मूल से पर्वत शिखर तक पूरा प्रपात एक नजर में नहीं देखा जा सकता।
गुजरात की सीमा से सटा माउंट आबू राजस्थान का स्वर्ग
माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। दक्षिणी राजस्थान के सिरोही जिले में गुजरात की सीमा से सटा और अरावली की पहाड़ियों पर बसे हुए इस हिल स्टेशन की सुंदरता देखते ही बनती है। समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माउंट आबू को राजस्थान का स्व।र्ग भी माना जाता है। माउंट आबू ऐसा ही एक अनुपम दर्शनीय स्थल है जो कि न केवल डेजर्ट-स्टेट कहे जाने वाले राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है, बल्कि गुजरात के लिए भी हिल स्टेशन की कमी को पूरा करने वाला सांझा पर्वतीय स्थल है जो प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करता है। माउंट आबू कभी राजस्थान की जबरदस्त गर्मी से परेशान पूर्व राजघरानों के सदस्यों का समर-रिसोर्ट यानि गर्मियों का स्वास्थ्यवर्धक पर्वतीय स्थल हुआ करता था। बाद में यह हिल ऑफ विजडम भी कहा जाने लगा क्योंकि इससे जुड़ी कई धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं ने इसे एक धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी विख्यात कर दिया। यूं तो यहां पूरे वर्ष ही मौसम सुहावना रहताफै पर जाने के लिये पर सितम्बर मध्य से भी बेहद अनुकूल है माउंट आबू से बहुत-सी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वही स्थल है, जहां महान ऋषि वशिष्ठ रहा करते थे। इसे ऋषियों-मुनियों का आवास स्थल माना जाता है। माउंट आबू हिल स्टेशन होने के साथ-साथ हिंदू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल भी है। यहां के मंदिर और प्राकृतिक खूबसूरती पर्यटकों को बेहद भाते हैं. माउंट आबू की प्राकृतिक सुंदरता किसी को भी तरोताजा कर ही देती है। माउंट आबू के दर्शनीय स्थल हैं- दिलवाड़ा जैन मंदिर:- दिलवाड़ा जैन मंदिर पांच मंदिरों का एक समूह है और सभी पांच मंदिर एक दूसरे से भिन्न हैं, दिलवारा के जैन मंदिर माउंट आबू से ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। सफेद संगमरमर से निर्मित खूबसूरती और नक्काशी के बेमिसाल नमूने ये मंदिर स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। ये शानदार मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं, यहां एक ही जगह कई तीर्थंकरों के दर्शन होते हैं और उनके जीवन से जुड़ी बाते जानने को मिलती है। माउंट आबू की सैर इन शानदार मंदिर को देखे बिना अधूरी है। यहां वर्ष भर जैन धर्मावलंबियों के अलावा अन्य धर्मालुओं का आना-जाना लगा रहता है। ये पांच मंदिर हैं:– विमल वसाही मंदिर (विमल वसाही यहां का सबसे पुराना मंदिर है, जिसे प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित किया गया है। विमल शाह, गुजरात के सोलंकी शासकों के मंत्री थे, जिन्होंमने वर्ष 1031 ए. डी. में इसका निर्माण कराया था), लुना वसाही मंदिर (यह मंदिर 22 वें जैन तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का है, पीथालहर मंदिर (यह मंदिर प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव या आदिनाथ भगवान को समर्पित है), खरतार वसाही मंदिर (जैन धर्म के 2३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित इस तीन मंजिले और दिलवारा में सबसे ऊंचे मंदिर को सन 1458-59 में मंडलिक और उनके परिवार ने बनाया था) और श्री महावीर स्वामी मंदिर (जैन धर्म के 2४वें और अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी को समर्पित यह मंदिर सन 1582 में बनाया गया था) अधर देवी का मंदिर:- शहर से लगभग 3 किलोमीटर उत्तर में विशाल चट्टान को काट कर बनाया गया है। करीबन 365 सीढ़ियां चढ़कर जाने के बाद आपको मंदिर के सबसे छोटे निचले द्वार से जाने के लिए झुक कर गुजरना पड़ता है। यह पर्यटकों का प्रिय स्थल है। रघुनाथ मंदिर:– नक्की झील के पास रघुनाथ जी का मंदिर है। इसमें रघुनाथ जी की खूबसूरत प्रतिमा है। यह 14वीं शताब्दी में हिंदुओं के जाने-माने प्रचारक श्री रामानंद द्वारा प्रतिष्ठित की गई थी। अचलगढ़ किला और मंदिर:– अचलगढ़ किला मेवाड़ के राजा राणा कुंभ ने एक पहाड़ी के ऊपर बनवाया था. किले के पास ही अचलेश्वर मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के पैरों के निशान हैं. गुरु शिखर:- गुरु शिखर अरावली पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी है। इस श्रृंखला की सुंदरता देखते ही बनती है। श्रृंखला पर बना मंदिर भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय को समर्पित है। मंदिर में जाकर आपको जो शांति मिलेगी उसे शायद ही आप कभी भूल पाएं.शहर से 15 किलोमीटर दूर राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन की यह सबसे ऊंची चोटी है। गुरु शिखर समुद्र स्तर से लगभग 1722 मीटर ऊपर बसा हुआ है। इस चोटी पर चढ़ने का और वहां से नजारे देखने का अपना ही लुत्फ है। गौमुख मंदिर:– यहां के गौमुख मंदिर तक पहुंचने के लिए घाटी में 750 सीढ़ियां चढ़नी नहीं बल्कि नीचे उतरनी पड़ती हैं। माउंट आबू के नीचे आबू रोड की तरफ संगमरमर की गाय के मुंह से एक छोटी नदी बाहर आती है कहा जाता है कि ऋषि वशिष्ठ ने धरती को राक्षसों से बचाने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया था और उस यज्ञ के हवन-कुंड में से चार अग्निकुल राजपूत उत्पन्न किए थे। इस यज्ञ का आयोजन आबू के नीचे एक प्राकृतिक झरने के पास किया गया था, यह झरना गाय के सिर के आकार की एक चट्टान से निकल रहा था, इसलिए इस स्थान को गोमुख कहा जाता है। वहां शिव के वाहन नंदी बैल की संगमरमर की एक प्रतिमा भी है।वशिष्ठ की मूर्ति के एक तरफ राम, तो दूसरी तरफ कृष्ण की प्रतिमा है। ब्रह्म कुमारी शांति पार्क:– यह उद्यान बहुत ही शांत और खूबसूरत है। इसके प्राकृतिक वातावरण में शांति और मनोरंजन दोनों का एक साथ आनंद लिया जा सकता है। शांति पार्क अरावली पर्वत की 2 विख्यात चोटियों के बीच बना हुआ है। यह पार्क माउंट आबू में ब्रह्म कुमारी मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थल है। नक्की झील:- कहा जाता है कि एक हिंदू देवता ने अपने नाखूनों से खोदकर ये झील बनाई थी, जिसके बाद इस झील का नाम नक्की पड़ गया. नक्की झील से पहाड़ियों का बेहद सुंदर नजारा देखा जा सकता है। पिकनिक मनाने के लिए नक्की झील एकदम सही जगह है। यहां पर बोटिंग करने का मजा भी आप उठा सकते हैं सनसेट प्वाइंट:- नक्की झील से कुछ ही दूरी पर बहुत लोकप्रिय सनसेट प्वांइट है। सनसेट प्वांइट से डूबते हुए
देश का दिल और संस्कृतियों का संगम है कोलकाता
यदि भारत को सांस्कारिक रूप से मजबूत और इसकी जडें पारंपरिक रूप से गहरी मानी जाती हैं तो पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता को देश का दिल माना जाता है। इस शहर को पहले कलकत्ता के नाम से जाना जाता था जो अंग्रेजों के जमाने से ही हमारे देश का सांस्कृतिक केंद्र रहा है। कोलकाता के लोगों को कई दशकों से साहित्य और कला प्रदर्शन के लिए सराहा जाता रहा है। दुर्गा पूजा, दीवाली और दशहरे के कुछ ही दिनों पहले मनाई जाने वाली काली पूजा जैसे त्योहारों को मनाने के तरीके और उनके द्वारा अपने घरों को सजाने के तरीके से उनके कला प्रेम के स्पष्ट सबूत मिलते हैं। यदि भारत को सांस्कारिक रूप से मजबूत और इसकी जडें पारंपरिक रूप से गहरी मानी जाती हैं तो पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता को देश का दिल माना जाता है। इस शहर को पहले कलकत्ता के नाम से जाना जाता था जो अंग्रेजों के जमाने से ही हमारे देश का सांस्कृतिक केंद्र रहा है। कोलकाता के लोगों को कई दशकों से साहित्य और कला प्रदर्शन के लिए सराहा जाता रहा है। दुर्गा पूजा, दीवाली और दशहरे के कुछ ही दिनों पहले मनाई जाने वाली काली पूजा जैसे त्योहारों को मनाने के तरीके और उनके द्वारा अपने घरों को सजाने के तरीके से उनके कला प्रेम के स्पष्ट सबूत मिलते हैं। कोलकाता के स्थानीय लोगों के द्वारा प्रदर्शित किये गए नाट्य और नाटिकाओं को विश्व मंच पर ख्याति प्राप्त हो चुकी है। कोलकाता अपने हस्तशिल्प के लिए भी पहचाना जाता है जिसने आसपास के पड़ोसी शहरों से लोगों को यहां आने के लिए मजबूर किया। इनकी कला को मजदूर शक्ति की सराहना और मानव अधिकार समूह के लोगों की आलोचना दोनों से प्राप्त हुई है। लोग यहां फेरी से आना पसंद करते हैं। परिवहन के अन्य साधनों में पुरानी बूढ़ी पीली टैक्सियां और स्थानीय बसें हैं जो हमेशा भरी रहती हैं। रिक्शा, शहर में घूमने का दूसरा माध्यम है। पढ़ने के शौकीन लोगों को कॉलेज स्ट्रीट जरूर जाना चाहिए। सबसे अधिक बिकने वाली और महंगी पुस्तकों को मोलभाव के बाद खरीदने के लिए, स्टेंड पर यह सबसे अच्छी जगह है। कोलकाता के आस-पास के पर्यटन स्थल कोलकाता और उसके आसपास बहुत से पर्यटक आकर्षण हैं जैसे विक्टोरिया मैमोरियल, इंडियन म्यूजियम, ईडेन गार्डन, साइंस सिटी और भी बहुत कुछ। यहां बहुत सी एतिहासिक इमारतें हैं जैसे जीपीओ और कलकत्ता हाईकोर्ट, जो पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। खानपान बंगाली, चावल और दाल की करी के साथ मिलाकर बनाई गई स्वादिष्ट मछली के लिए जाने जाते हैं। शहर में हर जगह बहुत कम कीमत पर स्थानीय भोजन परोसने वाले रेस्त्रां और भोजनालय हैं। यदि आप कोलकाता जाएं तो शहर में स्थानीय खाद्य दुकानों पर जाना न भूलें। बंगाली मिठाइयां पूरे देश में लोकप्रिय हैं, संदेश, मिष्ठी दोई (मीठा दही) और बहुत प्रसिद्ध रस मलाई का स्वाद जरूर चखें। यदि आप कुछ रोमांचक सा महसूस करना चाहते हैं या आपको एक बदलाव की जरूरत है तो चाइना टाउन की यात्रा आपको कुछ स्वादिष्ट भारतीय मसाले वाले चाइनीज फूड का अनुभव करा सकती है। यहां आप मोमोज (पकौड़ी) का स्वाद चखना मत भूलिये। फिल्मों में कोलकाता कोलकाता के सुनहरे अतीत को हॉलीवुड और बॉलीवुड़ की फिल्मों ने दोहरा कर कोलकाता को अमर कर दिया, क्योंकि यहां विश्व प्रसिद्ध हावड़ा ब्रिज और शहर भर में चलने वाली ट्राम सेवा मौजूद है। कोलकाता, भारत की पहली भूमिगत रेल मेट्रो सेवा वाले शहर के रूप में भी जाना जाता है। स्थानीय फिल्में भी बहुत सी ललित कला अकादमी, विक्टोरिया मेमोरियल और एशियाटिक सोसाइटी की कर्जदार हैं। शिक्षा कोलकाता पर्यटन को इस तथ्य से भी बढ़ावा मिला है कि यह विशेष रूप से समुद्रतटीय बिरादरी के लिए शिक्षा का एक केंद्र है। देश का सबसे पुराना समुद्रतटीय इंस्टीट्यूट मेरी कोलकाता में है, जो गुजरे जमाने की याद दिलाता है। भारतीय मूल के कई नाविकों के दिल में इस शहर के लिए नरम जगह है। कोलकाता में खेल प्रेमी कोलकाता हमेशा से ही पूरे शहर भर बने हुए स्टेडियम के साथ क्रिकेट और सॉकर का प्रशंसक रहा है। ये स्टेडियम इन खेलों और राष्ट्रीय स्तर के मैचों के लिए प्रशिक्षण के मैदान रहे हैं। कोलकाता इंडियन प्रीमियर लीग में कोलकाता नाइट राइडर्स के नाम से एक आईपीएल फ्रेंचाइजी टीम भी प्रस्तुत करता है। कोलकाता में नाइटलाइफ कोलकाता की नाईटलाइफ को देश की सबसे अच्छी शहरी रातों में से एक माना जाता है। नाईट क्लबों का उचित प्रवेश शुल्क है। पुलिस और स्थानीय क़ानून का दबाव पूरे शहर में फैला हुआ है जो लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है। इसके अलावा, पड़ोस के शहर भी सुबह से देर रात तक अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। कोलकाता शहर सभी तरह के यात्रियों के लिए कुछ न कुछ पेश करता है। एक बैकपैकर हो या एक परिवार यह शहर स्थानीय भोजन, कला, समकालीन जीवन शैली और नाइटलाइफ का एक सही मिश्रण प्रदान करता है। व्यापार की दृष्टि से, यह शहर अच्छी तरह से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में दक्ष है और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से अच्छी तरह से सभी क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है। कोलकाता तक कैसे पहुंचें:- सड़क मार्ग:- कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग 6 और 2 के माध्यम से देश और राज्य के बाकी हिस्सों से जुड़ा हुआ है। जमशेदपुर, सिलीगुड़ी और दार्जिलिंग जैसे निकटवर्ती शहरों से सड़क मार्ग द्वारा यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। ट्रेन द्वारा:- कोलकाता टर्मिनस कुछ बड़ी शेड्यूल की लंबी दूरी वाली ट्रेनों के माध्यम से देश के बाकी हिस्सों और राज्यों से जुड़ा है। मुंबई और नई दिल्ली के लिए नियमित रूप से ट्रेनें उपलब्ध हैं। एयर द्वारा:- कोलकाता का नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, मुंबई और दिल्ली के लिए बहुत सी उड़ानों द्वारा देश के बाकी हिस्सों से जुड़ा हुआ है। और कई अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन भी हैं।