भगवान विष्णु ने धर्म की पत्नी रुचि के माध्यम से नर और नारायण नाम के दो ऋषियों के रूप में अवतार लिया। वे जन्म से तपोमूर्ति थे, अतः जन्म लेते ही बदरीवन में तपस्या करने के लिये चले गये। उनकी तपस्या से ही संसार में सुख और शांति का विस्तार होता है। बहुत से ऋषि मुनियों ने उनसे उपदेश ग्रहण करके अपने जीवन को धन्य बनाया। आज भी भगवान नर नारायण निरन्तर तपस्या में रत रहते हैं। इन्होंने ही द्वापर में श्रीकृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतार लेकर पृथ्वी का भार हरण किया था। एक बार इनकी उग्र तपस्या को देखकर देवराज इंद्र ने सोचा कि ये तप के द्वारा मेरे इंद्रासन को लेना चाहते हैं, अतः उन्होंने इनकी तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव, वसंत तथा अप्सराओं को भेजा। उन्होंने जाकर भगवान नर नारायण को अपनी नाना प्रकार की कलाओं के द्वारा तपस्या से च्युत करने का प्रयास किया, किंतु उनके ऊपर कामदेव तथा उसके सहयोगियों का कोई प्रभाव न पड़ा। कामदेव, वसंत तथा अप्सराएं शाप के भय से थर थर कांपने लगे। उनकी यह दशा देखकर भगवान नर नारायण ने कहा-, तुम लोग तनिक भी मत डरो। हम प्रेम और प्रसन्नता से तुम लोगों का स्वागत करते हैं। भगवान नर नारायण की अभय देने वाली वाणी को सुनकर काम अपने सहयोगियों के साथ अत्यन्त लज्जित हुआ। उसने उनकी स्तुति करते हुए कहा- प्रभो! आप निर्विकार परम तत्व हैं। बड़े बड़े आत्मज्ञानी पुरुष आपके चरण कमलों की सेवा के प्रभाव से कामविजयी हो जाते हैं। देवताओं का तो स्वभाव ही है कि जब कोई तपस्या करके ऊपर उठना चाहता है, तब वे उसके तप में विघ्न उपस्थित करते हैं। काम पर विजय प्राप्त करके भी जिन्हें क्रोध आ जाता है, उनकी तपस्या नष्ट हो जाती है। परंतु आप तो देवाधिदेव नारायण हैं। आपके सामने भला ये काम क्रोधादि विकार कैसे फटक सकते हैं? हमारे ऊपर आप अपनी कृपादृष्टि सदैव बनाये रखें। हमारी आपसे यही प्रार्थना है। कामदेव की स्तुति सुनकर भगवान नर नारायण परम प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी योगमाया के द्वारा एक अद्भुत लीला दिखायी। सभी लोगों ने देखा कि साक्षात लक्ष्मी के समान सुंदर सुंदर नारियां नर नारायण की सेवा कर रही हैं। नर नारायण ने कहा- तुम इन िस्त्रयों में से किसी एक को मांगकर स्वर्ग में ले जा सकते हो, वह स्वर्ग के लिए भूषण स्वरूप होगी। उनकी आज्ञा मानकर कामदेव ने अप्सराओं में सर्वश्रेष्ठ अप्सरा उर्वशी को लेकर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया। उसने देवसभा में जाकर भगवान नर नारायण की अतुलित महिमा से सबको परिचित कराया, जिसे सुनकर देवराज इंद्र चकित और भयभीत हो गये। उन्हें भगवान नर नारायण के प्रति अपनी दुर्भावना और दुष्कृति पर विशेष पश्चाताप हुआ। भगवान नर नारायण के लिये यह कोई बड़ी बात नहीं थी। इससे उनके तप के प्रभाव की अतुलित महिमा का परिचय मिलता है। उन्होंने अपने चरित्र के द्वारा काम पर विजय प्राप्त करके क्रोध के अधीन होने वाले और क्रोध पर विजय प्राप्त करके अभिमान से फूल जाने वाले तपस्वी महात्माओं के कल्याण के लिए अनुपम आदर्श स्थापित किया।
इस व्रत को करने पर हनुमानजी करेंगे सभी कष्ट दूर, जानें महत्व ..
हनुमानजी को पराक्रम, बल, सेवा और भक्ति के आदर्श देवता माने जाते हैं। इसी वजह से पुराणों में हनुमानजी को सकलगुणनिधान भी कहा गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि- ‘चारो जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा।’ इस चौपाई का अर्थ है कि हनुमानजी इकलौते ऐसे देवता हैं, जो हर युग में किसी न किसी रूप गुणों के साथ जगत के लिए संकटमोचक बनकर मौजूद रहेंगे। शास्त्रों में कहा गया है कि हनुमानजी की सेवा करने और उनका व्रत रखने से उनकी विशेष कृपा अपने भक्तों पर बनी रहती है। जानिए मंगलवार की व्रत कथा और पूजन विधि। हनुमानजी का व्रत करने का लाभ ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, हनुमानजी का व्रत करने से कुंडली में मौजूद सभी ग्रह शांत हो जाते हैं और उनकी अशीम कृपा प्राप्त होती है। अपने भक्तों पर आने वाले हर संकट को हनुमानजी दूर करते हैं। संतान प्राप्ति के लिए हनुमानजी का व्रत फलदायी माना जाता है। इस व्रत को करने से भूत-प्रेत और काली शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ता है। मंगलवार का व्रत करने से सम्मान, साहस और पुरुषार्थ बढ़ता है। मंगलवार पूजन विधि हनुमानजी का व्रत लगातार 21 मंगलवार करना चाहिए। मंगलवा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान वगैरह से निवृत्त होकर सबसे पहले हनुमानजी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प करें। इसके बाद ईशान कोण की दिशा (उत्तर-पूर्व कोने) में किसी एकांत स्थान पर हनुमानजी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। फिर गंगाजल के छीटें देकर उनका लाल कपड़ा धारण कराएं। फिर पुष्प, रोली और अक्षत के छीटें दें। इसके बाद चमेली के तेल का दीपक जलाएं और तेल की कुछ छीटें मूर्ति या तस्वीर पर डाल दें। इसके बाद हनुमानजी फूल अर्पित करें और अक्षत व फूल हाथ में रखकर उनकी कथा सुनें और हनुमान चालिसा और सुंदरकांड का पाठ भी करें। इसके बाद आप भोग लगाएं और अपनी मनोकामना बाबा से कहें और प्रसाद सभी में वितरण कर दें। अगर संभव हो सके तो दान जरूर करें। शाम के समय भी हनुमान मंदिर जाकर चमेली के तेल का दीपक जलाएं और सुंदरकांड का पाठ करें और उनकी आरती करें। 21 मंगलवार के व्रत होने के बाद 22वें मंगलवार को विधि-विधान के साथ बजरंगबली का पूजा कर उन्हें चोला चढ़ाएं। उसके बाद 21 ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें भोजन कराएं और क्षमतानुसार दान–दक्षिणा दें। मंगलवार व्रत कथा एक समय की बात है एक ब्राह्मण दंपत्ति प्रेमभाव से साथ-साथ रहते थे लेकिन उनकी कोई संतान ना होने के कारण दुखी रहते थे। ब्राह्मण हर मंगलवार के वन जाकर हनुमानजी की पूजा करने जाता था और संतान की कामना करता था। ब्राह्मण की पत्नी भी हनुमानजी की बहुत बड़ी भक्त थी और मंगलवार का व्रत रखती थी। वह हमेशा मंगलवार के दिन हनुमानजी का भोग लगाकर ही भोजन करती थी। एक बार व्रत के दिन ब्राह्मणी भोजन नहीं बना पाई, जिससे हनुमानजी का भोग नहीं लग सका। तब उसने प्रण किया कि वह अगले मंगलवार को हनुमानजी को भोग लगाकर ही भोजन करेगी। वह छह दिन तक भूखी-प्यासी रखी और मंगलवार के दिन व्रत के दौरान बेहोश हो गई। ब्राह्मणी की निष्ठा और लगन को देखकर हनुमानजी बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद के रूप में एक संतान दी और कहा कि यह तुम्हारी बहुत सेवा करेगा। संतान पाकर ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और उसने बालक का नाम मंगल रखा। कुछ समय बाद जब ब्राह्मण घर आया, तो घर में बच्चे की आवाज सुनाई दी और अपनी पत्नी से पूछा कि आखिर यह बच्चा कौन है? ब्राह्मणी की पत्नी ने कहा कि हनुमानजी ने व्रत से प्रसन्न होकर अपने आशीर्वाद के रूप में यह संतान हम दोनो की दी है। ब्राह्मण को अपनी पत्नी की इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन जब ब्राह्मणी घर पर नहीं थी तो ब्राह्मण ने मौका देखकर बच्चे को कुएं में गिरा दिया। अजब-गजब हनुमान, पंचायत में करते हैं फैसला, उतारते हैं प्रेम का भूत जब ब्राह्मणी घर लौटी तो उसने मंगल के बारे में पूछा। तभी पीछे से मंगल मुस्कुरा कर आ गया और ब्राह्मण बच्चे को देखकर आश्चर्य चकित रह गया। रात को हनुमानजी ने ब्राह्मण को सपने में दर्शन दिए और बताया कि यह संतान तुम्हारी है। ब्राह्मण सत्य जानकर बहुत खुश हुआ। इसके बाद ब्राह्मण दंपत्ति प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखने लगे। शास्त्रों के अनुसार, जो भी मनुष्य मंगलवार व्रत और कथा पढ़ता या सुनता है, उसे हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्ति होती है। उसके सभी कष्ट दूर होते हैं और हनुमानजी की दया के पात्र बनते हैं।
वास्तु शास्त्र में तांबा का चमत्कारी प्रभाव, जाने कैसे करें इस्तमाल
वैज्ञानिक तौर पर तांबा शरीर के लिए उपयोगी माना गया है, लेकिन आज हम आपको बता रहें है कैसे ज्योतिषशास्त्र के अनुसार तांबा आपके जीवन की परेशानियों को दूर कर सकता है। तांबे की शुद्धता को ध्यान में रखते हुए इसे धारण किया जा सकता है। आइये जानते है तांबा पहनने के क्या फायदे होते है…. -अगर आपके घर में वास्तुदोष है जिसके कारण आपके और आपके परिवार के सदस्यों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो वास्तु के अनुसार अपने घर में एक चौकोर तांबे का टुकड़ा रखें। ऐसा करने से आपका घर वास्तुदोष से मुक्त होगा। -अगर आपने घर बनवाते समय वास्तु के नियमों को ध्यान में नहीं रखा है और आपके घर का मुख्य द्वार वास्तु के अनुसार नहीं है तो अपने दरवाजे के वास्तुदोष को दूर करने के लिए दरवाजे पर तांबे के सिक्के लटका दें। ये सिक्के आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होने देंगे। -अगर आपके घर की दक्षिण दिशा में दोष है तो आप इस दिशा के दोष से छुटकारा पाने के लिए ठोस तांबे का पिरामिड घर में रखें। इसे घर में रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहेगी। -छोटे बच्चे को अगर बार-बार नजर लग जाती है तो आप अपने बच्चे को एक तांबे के सिक्के में छेद करके उसे काले धागे में पिरोकर बच्चे को पहनाएं। ऐसा करने से आपका बच्चा किसी की बुरी नजर से सुरक्षित रहेगा। -तांबे की अंगूठी पहने से व्यक्ति के सूर्य दोष दूर होते हैं। इसलिए अगर कमजोर सूर्य के कारण जीवन में परेशानियां आप कम नहीं कर पा रहे तो ऐसे में यह अंगूठी पहनें। बहुत जल्द आपको इसका असर दिखेगा, आपको मान-सम्मान और प्रसिद्धि मिलेगी। -तांबे की अंगूठी गुस्सा नियंत्रण करने में कारगर है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह शांत प्रकृति का है और गर्मी दूर करता है। इसलिए व्यक्ति के मानसिक स्थिति को संतुलित कर गुस्सा शांत करता है। -आश्चर्यजनक रूप से तांबे का प्रयोग आपको वास्तु दोषों से भी दूर रखता है। शुद्धक होने के कारण आप अगर इसे किसी भी रूप में शरीर पर धारण करते हैं तो यह आपको वास्तु दोषों के प्रभाव से मुक्त करता है।
मन के कारण ही पूरा शरीर कार्य करता है…
मन अत्यंत शक्तिशाली है। यदि सद्विचारों के साथ आगे बढ़ा जाए तो मन के द्वारा जीवन में व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं। जेम्स एलेन ने एक पुस्तक में कहा भी है कि अच्छे विचार बीजों से सकारात्मक और स्वास्थ्यप्रद फल सामने आते हैं। इसी तरह बुरे विचार बीजों से नकारात्मक और घातक फल आपको वहन करने ही पड़ेंगे। जिस प्रकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के दो प्रकार-बाहरी और आंतरिक होते हैं ठीक उसी प्रकार मन के भी चार प्रकार होते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने मन की चार प्रवृत्तियां बताई हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि व्यक्ति अक्सर वर्तमान मन, अनुपस्थित मन, एकाग्र मन और दोहरे मन वाले होते हैं। जो व्यक्ति जीवन में अधिकतर वर्तमान मन के साथ आगे बढ़ते हैं वे जीवन में सफलता पाते हैं। इसी तरह अनुपस्थित व दोहरे मन वाले व्यक्ति भटकते रहते हैं। वर्तमान मन यानी अभी क्या चल रहा है, उसे देखने वाला मन। अनुपस्थित मन से अभिप्राय है कि मन का कार्य के समय वहां पर न होकर कहीं ओर होना। एकाग्र मन में व्यक्ति एक ही सत्य और कार्य के लिए ग्रहणशील होता है। दोहरे मन में व्यक्ति के दो मन बन जाते हैं। एक ओर उसका मन कह रहा होता है कि किसी काम को करना चाहिए तो दूसरा मन कह रहा होता है कि अभी रुकना चाहिए। वर्तमान और एकाग्र मन के साथ काम करने वाले व्यक्ति असाधारण सफलता प्राप्त करते हैं। दार्शनिक मार्ले का मानना है कि विश्व के हर काम में यश प्राप्त करने के लिए एकाग्रचित्त होना आवश्यक है। दोहरा और अनुपस्थित मन व्यक्ति को लक्ष्य व कार्य से भटका देता है। यदि मन कहीं ओर होता है यानी अनुपस्थित होता है तो महत्वपूर्ण निर्णय और बातें भी समझ में नहीं आती हैं। मन के कारण ही पूरा शरीर कार्य करता है। कई व्यक्तियों के मन में प्रारंभ से ही यह बात बैठ जाती है कि वह किसी विशेष काम को नहीं कर सकते। मसलन कई लोगों को लगता है कि वे अपने जीवन में कभी मंच पर नहीं बोल सकते हैं तो कई लोगों को गणित विषय हौवा लगता है। इसी तरह कई लोगों को यह संकोच होता है कि अंग्रेजी न बोल पाने के कारण वे कामयाबी नहीं पा सकते। यह स्थिति उस समय उत्पन्न होती है जब व्यक्ति मन की शक्ति को समझ नहीं पाता और मन में दोहरी स्थितियां उत्पन्न कर लेता है।
सुख का संबंध आत्मा से होता है
समाज में सभी सुखी रहना चाहते हैं, लेकिन यह हो कैसे? इसका एक सूत्र है-प्रेम। वस्तुतः प्रेम वह तत्व है जो प्रेम करने वाले को सुखी तो बनाता ही है, जिससे प्रेम किया जाता है वह भी सुखी होता है। याद रखें, सुख और सुविधा दो भिन्न चीजें हैं। जो शरीर को आराम पहुंचाता है वह सुख नहीं, सुविधा है, लेकिन सुख का संबंध आत्मा से होता है। आप अच्छे घर में रहते हैं, अच्छी कार में बैठते हैं, एयरकंडीशन ऑफिस में काम करते हैं उससे आपके शरीर को सुविधा प्राप्त होती है, परंतु आप सत्य बोलते हैं, सबको प्रेम करते हैं, ईमानदारी और नैतिकता का व्यवहार अपनाते हैं, सच्चाई और संवेदना दर्शाते हैं, अहिंसा के मार्ग पर चलते हैं तो उससे आपको जो सुख मिलता है वह आत्मिक सुख कहलाता है। यही सुख व्यक्ति और समाज को सुखी बनाता है। जिंदगी के सफर में नैतिक व मानवीय उद्देश्यों के प्रति मन में अटूट विश्वास होना जरूरी है। कहा जाता है आदमी नहीं चलता, उसका विश्वास चलता है। आत्मविश्वास सभी गुणों को एक जगह बांध देता है यानी विश्वास की रोशनी में मनुष्य का संपूर्ण व्यक्तित्व और आदर्श उजागर होता है। दुनिया में कोई भी व्यक्ति महंगे वस्त्र, आलीशान मकान, विदेशी कार, धन-वैभव के आधार पर बड़ा या छोटा नहीं होता। उसकी महानता उसके चरित्र से बंधी है और चरित्र उसी का होता है जिसका खुद पर विश्वास है। मनुष्य के भीतर देवत्व है, तो पशुत्व भी है। सर्वे भवंतु सुखिनः का पुरातन भारतीय मंत्र संभवतः दानवों को नहीं सुहाया और उन्होंने अपने दानवत्व को दिखाया। पूर्वजों के लगाए पेड़ आंगन में सुखद छांव और फल-फूल दे रहे थे, लेकिन जब शैतान जागा और दानवता हावी हुई तो भाई-भाई के बीच दीवार खड़ी हो गई। बड़े भाई के घर में वृक्ष रह गए और छोटे भाई के घर में छांव पडऩे लगी। अधिकारों में छिपा वैमनस्य जागा और बड़े भाई ने सभी वृक्षों को कटवा डाला। पड़ोसियों ने देखा तो दुख भी हुआ। उन्होंने पूछा इतने छांवदार और फलवान वृक्ष को आखिर कटवा क्यों दिया? उसने उत्तर दिया, क्या करूं पेड़ों की छाया का लाभ दूसरों को मिल रहा था और जमीन मेरी रुकी हुई थी। वर्तमान में हमने जितना पाया है, उससे कहीं अधिक खोया है। भौतिक मूल्य इंसान की सुविधा के लिए हैं, इंसान उनके लिए नहीं है।
हर महिला को बोलने चाहिए माँ दुर्गा के ये 4 मंत्र, घर-परिवार में होगी उन्नति
हर महिला की यही कोशिश होती हैं कि उसके घर परिवार में सब कुछ अच्छा चले. माँ दुर्गा इस काम में आपकी मदद अवश्य कर सकती हैं. माता रानी के पास असीम शक्तियों का खजाना होता हैं. ऐसे में यदि आप माँ के समक्ष कुछ ख़ास मंत्रों का जाप करते हैं तो आपके घर की सभी परेशानियाँ समाप्त हो जाती हैं. पहला मंत्र सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते। इस मंत्रा का उच्चारण आप मंगलवार की सुबह दुर्गा माँ की प्रतिमा के सामने करे. इस दौरान महिलाएं लाल या पीले रंग की साड़ी पहने और जमीन पर आसन बिछा उसपर बैठ जाए. इसके बाद माँ दुर्गा के सामने घी का दीपक प्रज्वलित करे. इसके साथ ही दीपक को हाथ में लेकर इस मंत्र का उच्चारण 7 बार करे. दूसरा मंत्र ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।। ये मंत्र आप सप्ताह में किसी भी दिन बोल सकते हैं. इसे आप माँ दुर्गा की आरती करने के पूर्व और आरती समाप्त होने के बाद दोनों समय बोले. ऐसा करने से आपके मन की मुराद माँ दुर्गा के पास शीघ्र पहुंचेगी. तीसरा मंत्र या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। यह मंत्र आप मंगलवार या गुरुवार के दिन जपे. इसे आप सामान्य तरीके से माँ दुर्गा के समक्ष बैठकर दिन में कभी भी और कितनी भी बार जप सकते हैं. चौथा मंत्र नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ इस मंत्र का उच्चारण आपको कम से कम 51 बार करना हैं. इससे ज्यादा बार भी इसका जाप किया जा सकता हैं. इस मंत्र में बहुत शक्ति होती हैं. इसे महिलाओं के साथ घर के पुरुष भी जप सकते हैं. ये पुरे परिवार के हित में कार्य करता हैं. इन चार मंत्र जिनका जाप आप सभी को अवश्य करना चाहिए. इन मंत्रों को आप एक ही दिन या अलग अलग समय पर दोनों ही तरीकों से जप सकते हैं. ये मंत्र आपके घर में पॉजिटिविटी बढ़ने का कार्य भी करेंगे. इनके प्रयोग से घर की बरकत भी बनी रहेगी. साथ ही धन अवाक के नए मार्ग खुल जाएंगे.
ज्योतिष से जानिए चरित्र और भाग्य
-ब्रह्मर्षि वैद्य पं. नारायण शर्मा कौशिक- ज्योतिष शास्त्रानुसार मानव एवं प्राणी मात्र की सूक्ष्म जानकारी, प्रकृति तथा व्यवहार-चरित्र चिन्तन ज्योतिष फलित सूत्रों से जाना जा सकता है। यह फलित योग जानने हेतु सूक्ष्म अध्ययन की आवश्यकता है तथा अनुभूत योगों के द्वारा घटनाओं की घोषणा तथा कुछ समय पश्चात उस स्थिति से प्रभावित होना पुष्टि होना माना जाता है। प्रस्तुत आलेख में स्त्री के उत्तम चरित्र संबंधी सूत्रों का बोध कराया गया है। सच्चाई का जानना बुरा नहीं, स्त्री की जन्म कुण्डली में सही गणना मिले तो जानकारी होती है। इसी क्रम में ज्योतिष सिद्धांत सूत्र- जातक परिजातानुसार कतिपय योग लिखे जा रहे हैं। सप्तम भाव में गुरु हो तथा उस पर शुक्र व बुध की दृष्टि है तो स्त्री पतिवल्लभा एवं साध्वी होती है। सप्तमेश- शुक्र के साथ हो तथा दोनों पर गुरु की दृष्टि हो तो स्त्री पतिव्रता होती है। सप्तमेश- गुरु के साथ हो तथा दोनों पर शुक्र की दृष्टि हो तो स्त्री पतिव्रता होती है। गुरु लग्न में, एकादश या तृतीय भाव में बैठकर सप्तम भाव को देखे तो स्त्री पतिव्रता होती है। सप्तमेश केन्द्र में शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो स्त्री पति परायणा होती है। सप्तमेश सप्तम भाव में हो तथा उस पर पाप ग्रहों का प्रभाव नहीं हो तो स्त्री सुशीला एवं पतिव्रता होती है। गुरु सप्तम भाव में हो, लग्नेश बली हो तथा शुक्र चर राशि (1, 4, 7, 10) में हो तो स्त्री सुन्दर, पतिव्रता तथा पति में आसक्त होती है। सप्तमेश गुरु हो (मिथुन या कन्या लग्न में) तथा शुक्र या बुध की दृष्टि गुरु पर हो तो स्त्री सुन्दर, दयावती तथा सच्चरित्रा होती है। यदि सप्तम भाव की नवांश राशि का स्वामी शुभ ग्रह हो तो ऐसी स्त्री पतिव्रता होती है। यदि चन्द्रमा से सप्तम भाव में शुभ ग्रह हो तो स्त्री सच्चरित्र होती है। यदि लग्नेश या लग्न के नवांश का स्वामी शुभ ग्रह हो तो स्त्री चरित्रवान होती है। चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह हो तो स्त्री सच्चरित्रा होती है। यदि गुरु उच्च का स्वराशि (कर्क, धनु, मीन) में त्रिकोण (5, 9) या केन्द्र (1, 4, 7, 10) में हो तो स्त्री शील युक्त साध्वी, सुपुत्रा, धनी एवं गुणी होती है। कर्क लग्न हो, सूर्य सप्तम में मकर राशि में हो, सप्तमस्थ सूर्य पर गुरु की दृष्टि हो (एकादश, लग्न या तृतीय भाव से) तो स्त्री विदुषी व श्रेष्ठ पुत्र युक्त, सुलक्षणा होती है। सूर्य, मंगल की युति के साथ गुरु के साथ हो तो स्त्री उत्तम वक्ता एवं सत्यनिष्ठा होती है। गुरु, शुक्र व शनि की वृत्ति से स्त्री शिष्ट, धनी, समृद्ध तथा प्रसिद्धि प्राप्त करती हैं। चंद्र, बुध व गुरु की युति हो तो स्त्री विख्यात, समृद्ध व सुखी तथा पति का भी भाग्योदय करती है। गुरु और शुक्र की युति से स्त्री प्रतिभाशाली, श्रेष्ठ एवं समृद्ध होती है। गुरु से केंद्र में चन्द्रमा और शुक्र हो तो ऐसी स्त्री निर्धन के घर जन्म लेकर भी रानी तुल्य सुख प्राप्त करती है। गुरु के साथ सूर्य व बुध हो तो स्त्री धनी तथा बुद्धिमान तथा कवियित्री होती है। लग्नस्थ बुध स्त्री को गुणज्ञ बनाता है। स्त्री की लग्न कुण्डली में बुध व शुक्र लग्न में हो तो ऐसी स्त्री आकर्षक, कलाविज्ञ तथा पतिप्रिया होती है।
मार्ग शीर्ष अमावस्या के दिन पूर्वजों का तर्पण करना शुभ
हिंदू धर्म में हर अमावस्या और पूर्णिमा का बहुत ही अधिक महत्व है। इन्ही में से एक अमावस्या है। मार्ग शीर्ष की अमावस्या। यह अमावस्या मार्गशीर्ष माह में पड़ती है। इस अमावस्या का महत्व कार्तिक अमावस्या से कम नहीं है। जिस प्रकार कार्तिक मास की अमावस्या को लक्ष्मी का पूजन कर दीपावली बनाई जाती है, उसी तरह इस दिन भी देवी लक्ष्मी का पूजन करना शुभ होता है। इसके अलावा अमावस्या होने के कारण इस दिन स्नान, दान और अन्य धार्मिक कार्य आदि भी किए जाते है। मार्ग शीर्ष अमावस्या के दिन को पितरों का दिन भी माना जाता है। इस दिन पूर्वजों से संबंधित काम करना बहुत शुभ माना जाता है। इस महिनें का महत्व हिंदू धर्म के पुराणों में अधिक महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि देवों से पहले पितरों को प्रसन्न करना चाहिए। जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पितृ दोष हो, संतान हीन योग बन रहा हो या फिर नवम भाव में राहू नीच के होकर स्थित हो, उन व्यक्तियों को इस दिन ब्रत जरुर रखना चाहिए। इस व्रत को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धा भाव से अमावस्या का व्रत रखने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, पशु-पक्षी और समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं। भगवान कृष्ण ने पवित्र गीता में कहा है कि महीनों मे मैं मार्गशीर्ष माह हूं तथा सत युग में देवों ने मार्ग-शीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही साल की शुरुआत होगी। मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन स्नान करते समय नमो नारायणाय या गायत्री मंत्र का उच्चारण करना फलदायी होता है। मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व:- जिस तरह कार्तिक, माघ, वैशाख आदि महीनों के समय में गंगा स्नान करने से शुभ फल प्राप्त होता है। उसी तरह इस अमावस्या में स्नान करने से विशेष फल मिलता है। मार्गशीर्ष माह की अमावस्या का आध्यात्मिक महत्व अधिक है। इस दिन व्रत करने और सत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा करने से आपको अमोघ फलदायी होता है। इस दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते बै साथ ही पुण्य की प्राप्ति होती है।
देवताओं के तेज से प्रकट हुई थीं महादुर्गा, जानिए कहां से मिले उन्हें अस्त्र-शस्त्र
महादुर्गा पार्वती का दूसरा नाम है। हिन्दुओं के शाक्त साम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है। पुराण में महादुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। महादुर्गा असल में शिव की पत्नी पार्वती का एक रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिये देवताओं की प्रार्थना पर पार्वती ने लिया था। इस तरह महादुर्गा युद्ध की देवी हैं। देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं। मुख्य रूप उनका गौरी है, अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप। उनका सबसे भयानक रूप काली है, अर्थात काला रूप। विभिन्न रूपों में महादुर्गा भारत और नेपाल के कई मन्दिरों और तीर्थस्थानों में पूजी जाती हैं। कुछ दुर्गा मन्दिरों में पशुबलि भी चढ़ती है। भगवती दुर्गा की सवारी शेर है। एक बार महिषासुर नामक असुरों के राजा ने अपने बल और पराक्रम से देवताओं से स्वर्ग छिन लिया। जब सारे देवता भगवान शंकर व विष्णु के पास सहायता के लिए गए। पूरी बात जानकर शंकर व विष्णु को क्रोध आया तब उनके तथा अन्य देवताओं से मुख से तेज प्रकट हुआ, जो नारी स्वरूप में परिवर्तित हो गया। शिव के तेज से देवी का मुख, यमराज के तेज से केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से वक्षस्थल, सूर्य के तेज से पैरों की अंगुलियां, कुबेर के तेज से नाक, प्रजापति के तेज से दांत, अग्नि के तेज से तीनों नेत्र, संध्या के तेज से भृकुटि और वायु के तेज से कानों की उत्पत्ति हुई। इसके बाद देवी को शस्त्रों से सुशोभित भी देवों ने किया। देवताओं से शक्तियां प्राप्त कर महादुर्गा ने युद्ध में महिषासुर का वध कर देवताओं को पुनः स्वर्ग सौंप दिया। महिषासुर का वध करने के कारण उन्हें ही महादुर्गा को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है। देवताओं ने दिए माता दुर्गा को शस्त्र देवी भागवत के अनुसार, शक्ति को प्रसन्न करने के लिए देवताओं ने अपने प्रिय अस्त्र-शस्त्र सहित कई शक्तियां उन्हें प्रदान की। इन सभी शक्तियों को प्राप्त कर देवी मां ने महाशक्ति का रूप ले लिया- 1. भगवान शंकर ने मां शक्ति को त्रिशूल भेंट किया। 2. भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र प्रदान दिया। 3. वरुण देव ने शंख भेंट किया। 4. अग्निदेव ने अपनी शक्ति प्रदान की। 5. पवनदेव ने धनुष और बाण भेंट किए। 6. इंद्रदेव ने वज्र और घंटा अर्पित किया। 7. यमराज ने कालदंड भेंट किया। 8. प्रजापति दक्ष ने स्फटिक माला दी। 9. भगवान ब्रह्मा ने कमंडल भेंट दिया। 10. सूर्य देव ने माता को तेज प्रदान किया। 11. समुद्र ने मां को उज्जवल हार, दो दिव्य वस्त्र, दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, कड़े, अर्धचंद्र, सुंदर हंसली और अंगुलियों में पहनने के लिए रत्नों की अंगूठियां भेंट कीं। 12. सरोवरों ने उन्हें कभी न मुरझाने वाली कमल की माला अर्पित की। 13. पर्वतराज हिमालय ने मां दुर्गा को सवारी करने के लिए शक्तिशाली सिंह भेंट किया। 14. कुबेर देव ने मधु (शहद) से भरा पात्र मां को दिया।
इन पांच लोगों को खिलाएं खाना, रहेगी स्थिर लक्ष्मी
हमारें जीवन में कई उतार चढ़ाव आते है जिससे की लोग बहुत दुखी होते है और कुछ लोग उस समस्या का निजात निकाल कर उससे निकल जाते है। इस दुनिया में बहुत कम लोग है जो अपने जीवन से खुशी है। किसी न किसी को की न कोई समस्या है। अमीर के पास धन होते हुए भी और धन की ललसा और एक गरीब के पास धन न होते हुए सिर्फ पेट की भुख मिटाने तकी ललसा। हम माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए क्या नही करते है। तरह-तरह के उपाय अपनाते है जिससे कि माता लक्ष्मी हमारे घर से कभी न जाएं। हिंदू धर्म के शास्त्रों में कई ऐसे उपाय बताए गें है जिनका आमरण करे तो हम सफलता ही हर ऊचांई को छूते चले जाएगे। शास्त्रों में दी गई बातें हमें कभी निराश नही कर सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में भोजन के बारें में की बातें बताई गई है। इसके अनुसार जब भोजन करते है तो उससे पहले हमें इन लोगों के लिए भोजन जरूर निकालना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से माता लक्ष्मी हमारें घर से कभी नही जाएगा। एक उपाय तो ये है कि हम अपनी मेहनत से और स्वयं की समझदारी से इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास करें और दूसरा उपाय यह है कि हम धार्मिक कर्म करें। शास्त्रों में पांच लोग ऐसे बताए गए हैं, जिन्हें खाना खिलाने से हमारे जीवन की सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। जानिए वह कौन पांच लोग है। जिससे आपको अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी। किन लोगों को खिलाना चाहिए खाना… गाय को खिलाएं रोटी हिंदू धर्म में गाय को माता समान माना जाता है। यह पुज्नीय भी है। हमारें शास्त्रों में कहा गया है कि जब भी हम खाना बनाएं उसके बाद सबसे पहले एक रोटी गाय को खिलाएं। माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति किसी गाय को रोटी या हरी घास रोज खिलाता है तो उसे जल्द ही कोई अच्छा फल मिलता है साथ ही कई गुना पुण्य भी मिलता है। साथ ही कुंडली में लगे कई दोष ही शांत हो जाते है। और घर में माता लक्ष्मी का वास हो जाता है। इसलिए एक रोटी जरुर खिलाना चाहिए। कुत्तें को खिलाएं रोटी अगर आपको अपने शत्रु का भय सता रहा हो जिसके कारण आप उससे डर कर रह रहे है। तो रोज एक रोटी कुत्ते को खिलाएं। इससे आपका शत्रु का भय खत्म हो जाएगा। और आप निडर हो कर रह सकेगे। साथ ही अगरा पकी कुंडली में शनि का दोष है तो शिवार के दिन काले रंग के कुत्तें को रोटी खिलाएं। इससे आपको जल्द फायदा मिलेगा। और शनि दोष शांत होगा। माता लक्ष्मी आपके घर हमेशा के लिए आ जाएगी। मछली को खिलाएं आटे की गोली शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि अगर आपकी पुरानी संपत्ति हाथ से निकल गई हो या फिर कोई मुल्यवान चीज खो गई हो तो रोज तालाब या नदी में जाकर मछलियों को आटे की गोलियां बनाकर खिलाएं। ऐसा करने से आपकी पुरानी संपत्ति वापस मिल जाएगी। साथ ही माता लक्ष्मी की कृपा आप पर बनी रहेगी। जिसके कारण आपके घर में कभी भी धन की कमी नही होगी। साथ ही आपको अक्षय पुण्य की प्राप्त होगा। चीटियों को डालें आटा अगर आप बहुत ज्यादा परेशान है। आपको हर काम में असफलता मिल रही है जिसके कारण आप कर्ज में डूबते चले जा रहे है। जिसके कारण आप तनाव में चले जाते है। शास्त्रों में माना जाता है कि अगर आप अपने घर में निकलने वाली चीटियों को आटा या चीनी डालेगे। जो इससे आपको अधिक फायदा होगा। इससे हमें सभी कर्ज से मुक्ति मिल जाएगी। साथ ही घर में कभी भी धन की कमी नही होगी। पक्षियों को खिलाएं अनाज शास्त्रों के अनुसार माना गया है कि अगर आपके घर में आर्थिक लाभ न हो रहा हो। हर काम में असफलता प्राप्त हो रही हो तो इस समस्या से निजात आपको पक्षी दिला सकते है। इसके लिए रोज पक्षियों को दाना डालें जिससे महालक्ष्मी की कृपा आप पर बनी रहेगी। और काम में आपको सफलता प्राप्त होगी।