डॉ. जयशंकर से मिले बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद, बिम्सटेक सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा

मस्कट, 17 फ़रवरी: ओमान में आठवें हिंद महासागर सम्मेलन के मंच से इतर रविवार को भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर की बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद से मुलाकात हुई। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों और बिम्सटेक पर विस्तृत चर्चा हुई। विदेश मंत्री ने एक्स पर पोस्ट साझा कर बताया है कि, उनकी बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन से मुलाकात हुई। उन्होंने लिखा कि मोहम्मद तौहीद हुसैन से बातचीत द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ बिम्सटेक पर केंद्रित थी। बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (बिम्सटेक) में सात देश बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमा, भूटान और नेपाल शामिल हैं। बांग्लादेश, इस साल 2-4 अप्रैल को बैंकॉक में आयोजित होने वाले बिम्सटेक शिखर सम्मेलन की अगली अध्यक्षता करेगा। हुसैन ने द्विपक्षीय संबंधों में और तनाव को रोकने के प्रयासों के तहत यह मुलाकात की। बांग्लादेश में पिछले साल शेख हसीना सरकार के पतन के बाद दोनों देशों के संबंधों में आई कड़वाहट के बाद उच्च स्तर पर हुई यह पहली मुलाकात है। पिछले साल अगस्त में छात्रों के नेतृत्व में बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे। जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा था और वे भारत आ गईं। बांग्लादेश में चल रही मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के दौरान हिंदुओं सहित व्यापक स्तर पर अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ गए। तब से दोनों देशों के बीच तनाव जारी है। ओमान में आयोजित आठवें हिंद महासागर सम्मेलन के मंच से इतर विदेश मंत्री जयशंकर ने बांग्लादेश के अतिरिक्त मॉरीशस, मालदीव, नेपाल, भूटान और श्रीलंका के अपने समकक्षों के साथ बैठकें कीं। जयशंकर ने मॉरीशस के अपने समकक्ष धनंजय रितेश रामफल से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच दोस्ती को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई। विदेश मंत्री जयशंकर ने मालदीव के अपने समकक्ष अब्दुल्ला खलील के साथ भी बैठक की। डॉ. जयशंकर ने एक्स पर इसकी जानकारी साझा करते हुए कहा कि भारत-मालदीव सहयोग के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत हुई। हमारे सहयोग के कई पहलुओं पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ। जयशंकर ने अपने श्रीलंकाई समकक्ष विजेता हेराथ से भी मुलाकात की और दोनों देशों के बीच व्यापक सहयोग पर चर्चा की। उन्होंने श्रीलंका की आर्थिक सुधार और प्रगति के लिए भारत की प्रतिबद्धता व्यक्त की। डॉ. जयशंकर ने नेपाल की समकक्ष आरजू राणा देउबा से भी मुलाकात की जिसमें दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा की और संबंधों को मजबूत करने की आशा व्यक्त की। जयशंकर ने अपने भूटान समकक्ष डीएन धुंगयेल के साथ बैठक कर द्विपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने पर चर्चा की। डॉ. जयशंकर ने एक्स पर लिखा- मस्कट में एफएम भूटान डी.एन. धुंगयेल के साथ बात करके खुशी हुई। हमारी चर्चा हमारे द्विपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग को आगे बढ़ाने पर केंद्रित थी।

पेरिस में पीएम मोदी और अमेरिकी उपराष्ट्रपति की मुलाकात, परमाणु ऊर्जा पर की चर्चा

पेरिस/नई दिल्ली, 12 फरवरी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने पेरिस में मुलाकात की। दोनों नेताओं ने भारत में अमेरिकी परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी में निवेश को लेकर चर्चा की। पेरिस के बाद पीएम मोदी वाशिंगटन के लिए रवाना होंगे। बैठक में वेंस की भारतीय मूल की पत्नी उषा वेंस और उनके तीन बच्चों में से दो भी मौजूद थे। प्रधानमंत्री मोदी ने उपराष्ट्रपति के बेटे विवेक को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं और उनके परिवार को उपहार भी दिए। यह मुलाकात पेरिस में एआई शिखर सम्मेलन के दौरान हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर इस बैठक के बारे में पोस्ट करते हुए इसे शानदार बताया और बताया कि उन्होंने कई महत्वपूर्ण विषयों पर बातचीत की। उपराष्ट्रपति वेंस ने भी एक बयान जारी कर कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठकर कॉफी पी और दोनों देशों के हितों से जुड़े विषयों पर चर्चा की। खासतौर पर यह बातचीत इस बारे में थी कि अमेरिका किस तरह स्वच्छ और विश्वसनीय परमाणु ऊर्जा तकनीक के जरिए भारत को अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने में मदद कर सकता है। भारत ने हाल ही में अपने वार्षिक बजट में 2047 तक परमाणु ऊर्जा उत्पादन को 100 गीगावाट तक बढ़ाने की योजना का ऐलान किया है। इसके लिए सरकार परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम में संशोधन करने की तैयारी कर रही है। यह कानून लंबे समय से विदेशी निवेशकों के लिए एक बाधा बना हुआ है, क्योंकि यह परमाणु दुर्घटनाओं की स्थिति में कंपनियों की जवाबदेही तय करता है। फ्रांस दौरे के बाद प्रधानमंत्री मोदी वाशिंगटन डी.सी. के लिए रवाना होंगे, जहां वे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात करेंगे। यह बैठक राष्ट्रपति ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी की पहली व्यक्तिगत मुलाकात होगी। पीएम मोदी पहले विदेशी नेताओं में से एक हैं, जिनका ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल के शुरुआती दिनों में स्वागत किया है। दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध हैं और इस वार्ता में व्यापार और ऊर्जा को लेकर मुख्य रूप से चर्चा होने की उम्मीद है। बैठक के बाद दोनों देशों की सरकारें एक संयुक्त बयान जारी करेंगी, जिसमें चर्चा किए गए मुद्दों का विवरण होगा।

ट्रंप की नीतियों, एलन मस्क के खिलाफ अमेरिका के कई शहरों में प्रदर्शन

वाशिंगटन, 06 फरवरी: ट्रंप प्रशासन की शुरुआती कार्रवाइयों के खिलाफ बुधवार को अमेरिका के कई शहरों में लोग सड़कों पर एकत्र हुए और विरोध-प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने ट्रंप प्रशासन की ओर से प्रवासियों के खिलाफ निर्वासन की कार्रवाई से लेकर ट्रांसजेंडर अधिकारों को वापस लेने और गाजा पट्टी से फलस्तीनियों को जबरन स्थानांतरित करने के प्रस्ताव की निंदा की। फिलाडेल्फिया, कैलिफोर्निया, मिनेसोटा, मिशिगन, टेक्सास, विस्कॉन्सिन, इंडियाना और कई अन्य शहरों में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की निंदा करते हुए पोस्टर लहराए। ओहायो के कोलंबस में स्टेटहाउस के बाहर विरोध-प्रदर्शन में शामिल मार्गरेट विल्मेथ ने कहा, ‘‘मैं पिछले दो सप्ताह में लोकतंत्र में हुए बदलावों से चकित हूं, लेकिन यह बहुत पहले शुरू हो गया था।’’ विल्मेथ ने कहा कि वह सिर्फ प्रतिरोध में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रहे हैं। विरोध-प्रदर्शन सोशल मीडिया पर हैशटैग ‘बिल्डदरेजिस्टेंस’ और हैशटैग ‘50501’ के तहत चलाए गए एक ऑनलाइन आंदोलन का परिणाम था। हैशटैग ‘50501’ के तहत एक दिन में 50 राज्यों में 50 विरोध-प्रदर्शन करने का आह्वान किया गया था। सोशल मीडिया पर कई वेबसाइट और अकाउंट पर ‘फासीवाद को अस्वीकार करें’ और ‘हमारे लोकतंत्र की रक्षा करें’ जैसे संदेशों के साथ कार्रवाई का आह्वान किया गया। जमा देने वाली ठंड में भी मिशिगन की राजधानी लांसिंग के बाहर सैकड़ों लोगों की भीड़ एकत्र हो गई। एन आर्बर क्षेत्र की कैटी मिग्लिएट्टी ने कहा कि वित्त विभाग के डेटा तक मस्क की पहुंच विशेष रूप से चिंताजनक है। उन्होंने एक चित्र थाम रखा था, जिसमें मस्क को ट्रंप को कठपुतली की तरह नचाते हुए दिखाया गया है। मिग्लिएट्टी ने कहा, ‘‘अगर हम इसे नहीं रोकते हैं और संसद से कुछ करने के लिए नहीं कहते हैं, तो यह लोकतंत्र पर हमला है।’’ कई शहरों में प्रदर्शन के दौरान मस्क और सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) की आलोचना की गई। मिसौरी की राजधानी जेफरसन में सीढ़ियों पर लगाए गए एक पोस्टर में लिखा था, ‘‘डीओजीई वैध नहीं है।’’ इसमें सवाल किया गया था कि एलन मस्क के पास हमारी सामाजिक सुरक्षा की जानकारी क्यों है। संसद सदस्यों ने भी चिंता व्यक्त की है कि अमेरिकी सरकार की भुगतान प्रणाली के साथ डीओजीई की भागीदारी से सुरक्षा जोखिम हो सकता है या सामाजिक सुरक्षा और मेडिकेयर जैसे कार्यक्रमों के भुगतान में चूक हो सकती है। अलबामा में ‘एलजीबीटीक्यू-प्लस’ लोगों को निशाना बनाने वाली कार्रवाइयों का विरोध करने के लिए सैकड़ों लोग स्टेटहाउस के बाहर एकत्र हुए। मंगलवार को अलबामा के गवर्नर के इवे ने घोषणा की थी कि वह उस कानून पर हस्ताक्षर करेंगे, जो केवल दो लिंग (पुरुष और महिला) को मान्यता देता है। इवे की यह घोषणा संघीय सरकार द्वारा लिंग को केवल पुरुष या महिला के रूप में परिभाषित करने से जुड़े ट्रंप के हालिया कार्यकारी आदेश के समरूप है।

अमेरिकी टैरिफ लागू होते ही चीन की जवाबी कार्रवाई, ‘व्यापार युद्ध’ शुरू

बीजिंग, 04 फरवरी: चीन ने मंगलवार को कुछ अमेरिकी आयातों पर टैरिफ लगाया। बीजिंग के इस कदम के साथ ही दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध शुरू हो गया। इससे पहले अमेरिका में सभी चीनी आयातों पर अतिरिक्त 10% टैरिफ मंगलवार को 00:01 ईटी (05:01 जीएमटी) से शुरू हुआ। चीन के वित्त मंत्रालय ने पलटवार करते हुए ऐलान किया कि वह अमेरिकी कोयले, तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) पर 15%, कच्चे तेल, कृषि उपकरण और कुछ ऑटोमोबाइल पर 10% टैरिफ लगाएगा। इसके अलावा, चीन के वाणिज्य मंत्रालय और उसके सीमा शुल्क प्रशासन ने कहा कि देश ‘राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा’ के लिए टंगस्टन, टेल्यूरियम, रूथेनियम, मोलिब्डेनम और रूथेनियम से संबंधित वस्तुओं पर निर्यात नियंत्रण लगा रहा है। चीन ने गूगल की जांच की भी घोषणा की। राज्य बाजार विनियमन प्रशासन के एक संक्षिप्त बयान के अनुसार, चीन अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनी के खिलाफ कथित अविश्वास उल्लंघन (एंटी ट्रस्ट वायलेशन) की जांच करेगा। इससे पहले ट्रंप ने सोमवार (3 जनवरी) को मैक्सिको और कनाडा पर 25% टैरिफ लगाने के फैसले को अंतिम समय पर स्थगित कर दिया। हालांकि अमेरिका की तरफ से चीन के लिए ऐसी कोई राहत नहीं दी गई। मैक्सिकन राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने सोमवार को घोषणा की कि वह और ट्रंप 30 दिनों के लिए टैरिफ रोकने के एक समझौते पर पहुंच गए हैं। मैक्सिको ने सीमा पर 10,000 नेशनल गार्ड सदस्यों को भेजने पर सहमति व्यक्त की है। बाद में उसी दिन, कनाडाई प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि उन्होंने ट्रंप के साथ अंतिम समय में बात की थी। कनाडा ने टैरिफ पर 30 दिनों के रोक के बदले में अपनी सीमा को मजबूत करने पर सहमति व्यक्त की। बता दें मेक्सिको और कनाडा ने अमेरिकी टैरिफ के बदले में जवाबी टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। बता दें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार (1 फरवरी) को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें मेक्सिको से आने वाले सामानों पर 25% टैरिफ लगाया गया। कनाडा से आने वाले सामानों पर भी 25% टैरिफ लगाया गया, लेकिन कनाडा के ऊर्जा संसाधनों पर 10% टैरिफ ही लगाने की घोषणा की गई। इस ऑर्डर में चीन से आयात पर भी 10% टैरिफ की बात कही गई। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि यह कदम अवैध इमिग्रेशन और ड्रग्स तस्करी के बारे में उनकी चिंताओं को लेकर उठाया गया है। रिपब्लिकन नेता ने इन दो मुख्य मुद्दों को अपने चुनावी अभियान का आधार बनाया था।

नहर के आसपास चीन का प्रभाव कम करे पनामा, अन्यथा अमेरिका करेगा कार्रवाई: रुबियो

पनामा सिटी, 03 फरवरी: अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो से रविवार को कहा कि मध्य अमेरिकी सहयोगी को पनामा नहर क्षेत्र पर चीन के प्रभाव को तुरंत कम करना चाहिए, अन्यथा अमेरिकी प्रशासन कार्रवाई कर सकता है। यह अमेरिका के विदेश मंत्री के रूप में रुबियो की पहली विदेश यात्रा है। उनका यह दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पनामा नहर के संचालन का नियंत्रण अमेरिका को वापस देने की मांग सहित पड़ोसी देशों और सहयोगियों पर दबाव बढ़ा दिया है। मुलिनो ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि रुबियो ने ‘‘नहर पर पुनः कब्जा करने या बल प्रयोग करने की कोई वास्तविक धमकी नहीं दी।’’ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मांग की है कि नहर का नियंत्रण वापस अमेरिका को सौंप दिया जाना चाहिए। रुबियो ने ट्रंप की ओर से मुलिनो से कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रारंभिक रूप से यह निर्धारित किया है कि नहर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति उस संधि का उल्लंघन करती है जिसके तहत अमेरिका ने 1999 में जलमार्ग को पनामा को सौंपा था। उस संधि में अमेरिकी निर्मित नहर में स्थायी तटस्थता की बात कही गई है। रुबियो की रविवार को बाद में नहर का दौरा करने की योजना है। अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने बैठक की जानकारी देते हुए कहा, ‘‘मंत्री रुबियो ने स्पष्ट किया कि यह यथास्थिति अस्वीकार्य है और तत्काल परिवर्तन न किए जाने की स्थिति में अमेरिका को संधि के तहत अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे।’’ इस बीच, मुलिनो ने रुबियो के साथ अपनी बातचीत को ‘‘सम्मानजनक’’ और ‘‘सकारात्मक’’ बताते हुए कहा कि उन्हें ‘‘ऐसा नहीं लगता कि संधि को कोई वास्तविक खतरा है।’’ उन्होंने स्वीकार किया कि नहर के छोर पर स्थित बंदरगाहों में चीन की भूमिका ने वाशिंगटन के लिए चिंताएं पैदा कर दी हैं लेकिन उन्हें नियंत्रित करने वाले संघ की लेखा परीक्षा की जा रही है और नहर प्राधिकरण रूबियो को अधिक विस्तृत स्पष्टीकरण देगा।

अवैध अप्रवासियों की तलाश में गुरुद्वारों में छापे मार रही पुलिस, सिख नेता बोले- ये हमारी आस्था के खिलाफ

वॉशिंगटन, 27 जनवरी: अमेरिका में अवैध अप्रवासियों के खिलाफ लगातार कड़ी कार्रवाई जारी है। इसी के तहत अब अमेरिका की होमलैंड सिक्योरिटी के अधिकारी अब गुरुद्वारों में भी अवैध अप्रवासियों की तलाश कर रहे हैं। होमलैंड सिक्योरिटी के अधिकारियों ने न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी के गुरुद्वारों में जाकर अवैध अप्रवासियों की तलाश की। हालांकि जांच अधिकारियों की इस कार्रवाई ने सिख संगठनों को नाराज कर दिया है और उन्होंने इसे आस्था से खिलवाड़ बताया है। ट्रंप ने बदले नियम न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी के कुछ गुरुद्वारों को लेकर माना जाता है कि वहां सिख अलगाववादी और अवैध अप्रवासी रहते हैं। पूर्व की बाइडन सरकार में ऐसे नियम थे कि पूजास्थलों, स्कूल आदि में आव्रजन और सीमा सुरक्षा जांच एजेंसियां कार्रवाई नहीं कर पाती थीं। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकारी आदेश से उस पाबंदी को खत्म कर दिया है। होमलैंड सिक्योरिटी के अधिकारियों का कहना है कि अब अपराधी और अवैध अप्रवासी स्कूलों, चर्च या अन्य पूजा स्थलों में छिप नहीं सकेंगे। वहीं होमलैंड सिक्योरिटी द्वारा गुरुद्वारों में छापेमार कार्रवाई का सिख संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया है। एक बयान में सिख अमेरिकन लीगल डिफेंस एंड एजुकेशन फंड ने संवेदनशील जगहों जैसे पूजास्थलों, स्कूल आदि में तलाशी की आलोचना की। संगठन ने कहा कि गुरुद्वारे सिर्फ पूजा की जगह ही नहीं हैं बल्कि ये सामुदायिक भवन है, जो सिखों और अन्य समुदायों की मदद करते हैं। इस तरह गुरुद्वारों को निशाना बनाने से पूरे सिख समुदाय में नाराजगी पैदा होगी। एक अन्य संगठन ने कहा कि बिना वारंट या वारंट के साथ भी गुरुद्वारों की निगरानी करना अस्वीकार्य है। ये हमारी आस्था पर हमला है और इससे धार्मिक क्रियाकलाप प्रभावित होंगे। सहयोग न करने वाले देशों पर लगाएंगे प्रतिबंध अमेरिकी संसद के निचले सदन के स्पीकर माइक जॉनसन ने चेतावनी दी है कि जो भी देश अमेरिका से निर्वासित हुए अपने नागरिकों को वापस लेने में सहयोग नहीं करेगा, उस पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे। गौरतलब है कि ट्रंप सरकार ने अमेरिका से अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करना शुरू कर दिया है। कोलंबिया ने पूर्व में अपने निर्वासित नागरिकों को वापस भेजने के अमेरिका के तरीके से नाराजगी जाहिर करते हुए अपने नागरिकों को वापस लेने से मना कर दिया था। जिसके बाद ट्रंप सरकार ने कोलंबिया पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का निर्देश दिया तो कोलंबिया की सरकार ने यू-टर्न लेते हुए अपने निर्वासित नागरिकों को वापस लेने का फैसला किया।

पीएम मोदी को मिला कुवैत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान; ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से हुए सम्मानित

कुवैत सिटी/नई दिल्ली, 22 दिसंबर: कुवैत में प्रधानमंत्री मोदी को वहां के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया है। कुवैत के अमीर अमीर शेख मेशाल अल-अहमद अल-जबर अल सबा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से सम्मानित किया। पीएम मोदी कुवैत के दो दिवसीय दौरे पर हैं। इससे पहले 19 देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित कर चुके हैं। इस लिस्ट में शुमार होने वाला यह 20वां देश है। पीएम मोदी को यह सम्मान भारत और कुवैत के बीच अच्छे संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को यह पुरस्कार दिया गया है। ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ मित्रता के संकेत के रूप में राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी संप्रभुओं और विदेशी शाही परिवारों के सदस्यों को प्रदान किया जाता है। पीएम मोदी से पहले बिल क्लिंटन, प्रिंस चार्ल्स और जॉर्ज बुश जैसे विदेशी नेताओं को भी ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ प्रदान किया जा चुका है। बीते माह इन देशों ने किया था पीएम मोदी को सम्मानित इससे पहले पिछले महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुयाना और बारबाडोस ने पीएम मोदीको अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया था। गुयाना ने पीएम मोदी को सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान- द ऑर्डर ऑफ एक्सीलेंस से सम्मानित किया था, वहीं बारबाडोस में पीएम मोदी को प्रतिष्ठित ऑनररी ऑर्डर ऑफ फ्रीडम ऑफ बारबाडोस सम्मान दिया गया था। डोमिनिका ने भी उन्हें हाल ही में सर्वोच्च सम्मान दिया था। किन-किन देशों से मिल चुका है पीएम मोदी को सम्मान वैश्विक स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता सर्वाधिक है। एक सर्वे में उन्हें सबसे लोकप्रिय नेता करार दिया गया था। इतना ही नहीं कई देश भी उन्हें अपने सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित कर चुके हैं। क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर उनके नेतृत्व के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 से अब तक 20 देशों के सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कारों समेत संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। अफगानिस्तान और फिलिस्तीन से भी पीएम मोदी हो चुके हैं सम्मानित बता दें कि पीएम मोदी को साल 2016 में अफगानिस्तान द्वारा स्टेट ऑर्डर ऑफ गाजी अमीर अमानुल्लाह खान, फरवरी 2018 में फिलिस्तीन द्वारा ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ फिलिस्तीन, अक्तूबर 2018 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा यूएन चैंपियन ऑफ द अर्थ अवार्ड दिया गया था। वहीं, अप्रैल 2019 में यूएई द्वारा ऑर्डर ऑफ जायद और अप्रैल 2019 में ही रूस द्वारा ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा, पीएम मोदी को जून 2019 में मालदीव से ऑर्डर ऑफ द डिस्टिंग्विश्ड रूल ऑफ इज़ुद्दीन, अगस्त 2019 में बहरीन द्वारा किंग हमाद ऑर्डर ऑफ द रेनेसां, दिसंबर 2020 में अमेरिका द्वारा लीजन ऑफ मेरिट, दिसंबर 2021 में भूटान द्वारा ऑर्डर ऑफ द ड्रैगन किंग और इस साल मई में फिजी द्वारा ऑर्डर ऑफ फिजी और पापुआ न्यू गिनी द्वारा ऑर्डर ऑफ लोगोहू से सम्मानित किया गया था। मिस्र ने भी पीएम को दिया है सर्वोच्च राजकीय सम्मान वहीं, पिछले साल जून में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने प्रधानमंत्री मोदी को ‘ऑर्डर ऑफ द नाइल’ पुरस्कार से सम्मानित किया। यह मिस्र का सर्वोच्च राजकीय सम्मान है। मई 2023 में पापुआ न्यू गिनी द्वारा कंपेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ लोगोहू, मई 2023 में कंपेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ फिजी, मई 2023 में पलाऊ गणराज्य द्वारा एबाकल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पुरस्कार देने में फ्रांस और रूस ने भी नहीं छोड़ी है कोई कसर जुलाई 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ्रांस ने लीजन ऑफ ऑनर से सम्मानित किया। यह फ्रांस का सर्वोच्च सम्मान है। पीएम मोदी यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। लीजन ऑफ ऑनर दुनिया भर के चुनिंदा प्रमुख नेताओं और प्रतिष्ठित हस्तियों को दिया गया है। इनमें दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला, वेल्स के तत्कालीन राजकुमार किंग चार्ल्स, जर्मनी की पूर्व चांसलर एंजेला मर्केल, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बुट्रोस बुट्रोस-घाली समेत अन्य शामिल हैं। बीते जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रूस के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्र्यू एपोस्टल’ से सम्मानित किया गया।

भारत में दुनिया की स्किल कैपिटल बनने और स्किल डिमांड पूरा करने का सामर्थ्य: प्रधानमंत्री

कुवैत सिटी/नई दिल्ली, 21 दिसंबर: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत आज दुनिया की स्किल कैपिटल बनने और स्किल डिमांड को पूरा करने का सामर्थ्य रखता है। भारत के स्टार्टअप और फिनटेक हेल्थ केयर से लेकर स्मार्ट सिटीज और ग्रीन टेक्नोलॉजी तक कुवैत की हर जरूरत के लिए कटिंग एज सॉल्यूशन बना सकते हैं। भारत का स्लिड यूथ कुवैत की फ्यूचर जर्नी को भी नए स्ट्रेंथ दे सकता है। प्रधानमंत्री आज दो दिवसीय यात्रा पर कुवैत पहुंचे जहां उनका गर्म जोशी से स्वागत किया गया। इस दौरान भारतीय समुदाय से जुड़े लोगों ने उनका स्वागत किया। प्रधानमंत्री ने यहां भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए बताया कि भारत सरकार विदेश में काम करने वाले भारतीयों के कल्याण के लिए विभिन्न देशों के साथ समझौते कर रही है। ई-माइग्रेट मंच के माध्यम से विदेशी कंपनियों और पंजीकृत एजेंट को एक साथ लाकर प्रभावी जनशक्ति समाधान दिया जा रहा है। पिछले 5 वर्षों में इस पोर्टल के माध्यम से हजारों लोगों को खाड़ी देशों में रोजगार मिला है। प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत-कुवैत के बीच संस्कृति और वाणिज्य के माध्यम से बने संबंध आज नई ऊंचाइयां छू रहे हैं। कुवैत भारत का एक महत्वपूर्ण ऊर्जा और व्यापार भागीदार है। कुवैती कंपनियां भारत में बड़ा निवेश कर रही हैं। कुवैत और भारत के नागरिकों ने संकट के समय में हमेशा एक दूसरे की मदद की है। प्रधानमंत्री ने इस बात का विशेष उल्लेख किया कि 43 साल बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री कुवैत की यात्रा कर रहा है उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान से यहां आने में 4 घंटे लगते हैं लेकिन प्रधानमंत्री को आने में चार दशक लग गए। प्रधानमंत्री ने स्थानीय भारतीय समुदाय की सराहना की और कहा कि वह उनकी उपलब्धियां को सेलिब्रेट करने आए हैं। कुवैती नेतृत्व भी भारतीयों के योगदान को की प्रशंसा करता है। उन्होंने कहा कि भारत उन चुनिंदा देशों में है जिन्होंने कुवैत को स्वतंत्रता मिलने के बाद मान्यता दी थी। कोविड के दौरान कुवैत ने भारत को लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई किया और उस दौरान कुवैत को वैक्सीन और मेडिकल टीम भेजकर भारत ने भी लड़ने का साहस दिया। अपनी कुवैत यात्रा के पहले कार्यक्रम के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग 1500 भारतीय नागरिकों के कार्यबल के साथ कुवैत के मीना अब्दुल्ला क्षेत्र में एक श्रमिक शिविर का दौरा किया। प्रधानमंत्री ने भारत के विभिन्न राज्यों के विभिन्न वर्गों के भारतीय श्रमिकों के साथ बातचीत की और उनकी कुशलक्षेम पूछी। विदेश मंत्रालय के अनुसार श्रमिक शिविर का दौरा प्रधानमंत्री द्वारा विदेशों में भारतीय श्रमिकों के कल्याण को दिए गए महत्व का प्रतीक है। पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने विदेशों में भारतीय श्रमिकों के कल्याण के लिए ई-माइग्रेट पोर्टल, मदद पोर्टल और उन्नत प्रवासी भारतीय बीमा योजना जैसी कई प्रौद्योगिकी-आधारित पहल की हैं।

असद की सरकार गिरी, सीरिया का काला युग बीता: बहरा

दमिश्क, 08 दिसंबर: सीरिया में विपक्षी गठबंधन के नेता हादी अल-बहरा ने कहा है कि राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार गिर गयी है और इसके साथ ही सीरिया के इतिहास का एक काला युग बीत चुका है। श्री बहरा ने अरबी समाचार संगठन अल-अरबिया से बातचीत में यह जानकारी दी। बीबीसी ने बताया कि नेशनल कोलिशन फॉर सीरियन रिवोल्यूशन एंड अपोजिशन फोर्सेज के नेता बहरा ने जनता को आश्वासन दिया है कि दमिश्क सुरक्षित है। श्री बहरा ने ‘एक्स’ पर लिखा, “सभी संप्रदायों और धर्मों के हमारे लोगों के लिए संदेश है कि जब तक आप किसी अन्य नागरिक के खिलाफ हथियार नहीं उठाते हैं और जब तक आप अपने घरों में रहते हैं, तब तक आप सुरक्षित हैं। बदला या प्रतिशोध के कोई मामले नहीं होंगे और मानवाधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं होगा। लोगों की गरिमा का सम्मान किया जाएगा और उनकी गरिमा को बनाये रखा जाएगा।” रिपोर्ट के अनुसार, सीरिया के प्रधानमंत्री मोहम्मद गाजी अल-जलाली ने कहा कि वह लोगों द्वारा चुने गए नेतृत्व के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं। मोहम्मद गाजी अल-जलाली ने सोशल मीडिया पर प्रसारित एक भाषण में यह भी कहा कि सीरिया एक सामान्य देश हो सकता है जो अपने पड़ोसियों और दुनिया के साथ अच्छे संबंध बनाता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले डेढ़ सप्ताह में विद्रोही बलों की ओर से प्रमुख शहरों में सफल आक्रमण शुरू करने पर सीरियाई लोग खुशी से झूम रहे हैं। रविवार को, दमिश्क में भी जश्न के ऐसे ही दृश्य देखे गए, जब विद्रोही अंदर घुसे और राष्ट्रपति बशर अल-असद के भाग जाने की सूचना मिली। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विपक्षी लड़ाकों द्वारा हवाई अड्डे पर कब्जा करने से कुछ ही क्षण पहले ओपन-सोर्स फ्लाइट ट्रैकर्स ने सीरिया के हवाई क्षेत्र में एक विमान की गतिविधि रिकॉर्ड की। रिपोर्ट में कहा गया है कि उड़ान संख्या सीरियन एयर 9218 वाला इल्युशिन 76 विमान दमिश्क से उड़ान भरने वाला अंतिम विमान था। पहले यह पूर्व की ओर उड़ा, फिर उत्तर की ओर मुड़ गया। कुछ मिनट बाद, होम्स के ऊपर चक्कर लगाते ही इसका सिग्नल गायब हो गया। दावे किये जा रहे हैं कि श्री असद विमान में सवार होकर दमिश्क से किसी अज्ञात स्थान के लिए रवाना हो गये हैं।

मोदी ने गुयाना को दिया, लोकतंत्र प्रथम-मानवता प्रथम” का मंत्र

जॉर्जटाउन/नई दिल्ली, 22 नवंबर : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुयाना को मौजूदा विश्व में आगे बढ़ने के लिये “लोकतंत्र प्रथम-मानवता प्रथम” का मंत्र देते हुए कहा कि इससे सबको साथ लेकर सबका विकास करते हुए मानवता का हित करना संभव होता है। श्री मोदी गुयाना की संसद के एक विशेष अधिवेशन को संबोधित करते हुए यह मंत्र दिया। इस मौके पर संसद के अध्यक्ष मंजूर नादिर, उप राष्ट्रपति भरत जगदेव, प्रधानमंत्री मार्क एंथनी फिलिप्स, नेता प्रतिपक्ष, चांसलर ऑफ द ज्यूडिशियरी भी उपस्थित थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत बनाने के प्रयासों के बीच, हमें आज वैश्विक परिस्थितियों पर भी लगातार नजर ऱखनी है। जब भारत और गयाना आजाद हुए थे, तो दुनिया के सामने अलग तरह की चुनौतियां थीं। आज 21वीं सदी की दुनिया के सामने, अलग तरह की चुनौतियां हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनी व्यवस्थाएं और संस्थाएं,ध्वस्त हो रही हैं, कोरोना के बाद जहां एक नई वैश्विक व्यवस्था की तरफ बढ़ना था, दुनिया दूसरी ही चीजों में उलझ गई, इन परिस्थितियों में,आज विश्व के सामने, आगे बढ़ने का सबसे मजबूत मंत्र है-“लोकतंत्र प्रथम—मानवता प्रथम”। “लोकतंत्र प्रथम” की भावना हमें सिखाती है कि सबको साथ लेकर चलो,सबको साथ लेकर सबके विकास में सहभागी बनो। “मानवता प्रथम” की भावना हमारे निर्णयों की दिशा तय करती है, जब हम मानवता प्रथम को अपने निर्णयों का आधार बनाते हैं, तो नतीजे भी मानवता का हित करने वाले होते हैं। श्री मोदी ने कहा कि हमारी लोकतांत्रिक मूल्य इतने मजबूत हैं कि विकास के रास्ते पर चलते हुए हर उतार-चढ़ाव में हमारा संबल बनती हैं। एक समावेशी समाज के निर्माण में लोकतंत्र से बड़ा कोई माध्यम नहीं। नागरिकों का कोई भी मत-पंथ हो, उसका कोई भी बैकग्राउंड हो, लोकतंत्र हर नागरिक को उसके अधिकारों की रक्षा की,उसके उज्जवल भविष्य की गारंटी देती है। और हम दोनों देशों ने मिलकर दिखाया है कि लोकतंत्र सिर्फ एक कानून नहीं है,सिर्फ एक व्यवस्था नहीं है, हमने दिखाया है कि लोकतंत्र हमारे डीएनए में है, हमारे विजन में है, हमारे आचार-व्यवहार में है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी मानव केन्द्रित कार्यशैली,हमें सिखाती है कि हर देश के नागरिक उतने ही अहम हैं, इसलिए, जब विश्व को एकजुट करने की बात आई, तब भारत ने अपनी जी-20 अध्यक्षता के दौरान ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ का मंत्र दिया। जब कोरोना का संकट आया, पूरी मानवता के सामने चुनौती आई, तब भारत ने ‘एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य’ का संदेश दिया। जब जलवायु से जुड़ी चुनौतियों में हर देश के प्रयासों को जोड़ना था, तब भारत ने वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड का विजन रखा, जब दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हुए, तब भारत ने सीडीआरआई यानि कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रेज़ीलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर की पहल शुरू की। जब दुनिया में पृथ्वी प्रेमी लोगों का एक बड़ा नेटवर्क तैयार करना था, तब भारत ने मिशन लाइफ जैसा एक वैश्विक आंदोलन शुरु किया। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र प्रथम—मानवता प्रथम” की इसी भावना पर चलते हुए, आज भारत विश्वबंधु के रूप में विश्व के प्रति अपना कर्तव्य निभा रहा है। दुनिया के किसी भी देश में कोई भी संकट हो, हमारा ईमानदार प्रयास होता है कि हम फर्स्ट रिस्पॉन्डर बनकर वहां पहुंचे। आपने कोरोना का वो दौर देखा है, जब हर देश अपने-अपने बचाव में ही जुटा था। तब भारत ने दुनिया के डेढ़ सौ से अधिक देशों के साथ दवाएं और वैक्सीन्स शेयर कीं। मुझे संतोष है कि भारत, उस मुश्किल दौर में गयाना की जनता को भी मदद पहुंचा सका।” श्री मोदी ने कहा कि दुनिया में जहां-जहां युद्ध की स्थिति आई,भारत राहत और बचाव के लिए आगे आया। श्रीलंका हो, मालदीव हो, जिन भी देशों में संकट आया, भारत ने आगे बढ़कर बिना स्वार्थ के मदद की, नेपाल से लेकर तुर्की और सीरिया तक, जहां-जहां भूकंप आए, भारत सबसे पहले पहुंचा है। यही तो हमारे संस्कार हैं, हम कभी भी स्वार्थ के साथ आगे नहीं बढ़े, हम कभी भी विस्तारवाद की भावना से आगे नहीं बढ़े। हम संसाधनों पर कब्जे की, संसाधनों को हड़पने की भावना से हमेशा दूर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं मानता हूं, अंतरिक्ष हो, समुद्र हो, ये सार्वभौमिक टकराव के नहीं बल्कि सार्वभौमिक सहयोग के विषय होने चाहिए। दुनिया के लिए भी ये समय, टकराव का नहीं है, ये समय, टकराव पैदा करने वाले कारणों को पहचानने और उनको दूर करने का है। आज आतंकवाद, ड्रग्स, साइबर अपराध, ऐसी कितनी ही चुनौतियां हैं, जिनसे मुकाबला करके ही हम अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य संवार पाएंगे। और ये तभी संभव है, जब हम लोकतंत्र प्रथम मानवता प्रथम को केन्द्रीय स्थान देंगे।” प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने हमेशा सिद्धांतों के आधार पर, भरोसे और पारदर्शिता के आधार पर ही अपनी बात की है। एक भी देश, एक भी क्षेत्र पीछे रह गया, तो हमारे वैश्विक लक्ष्य कभी हासिल नहीं हो पाएंगे। तभी भारत कहता है – हर देश महत्वपूर्ण है! इसलिए भारत, द्वीपीय देशों को छोटे द्वीपीय देश नहीं बल्कि बड़े महासागरीय देश मानता है। इसी भाव के तहत हमने हिन्द महासागर से जुड़े द्वीपीय देशों के लिए सागर प्लेटफॉर्म बनाया। हमने प्रशांत महासागर के देशों को जोड़ने के लिए भी विशेष फोरम बनाया है। इसी नेक नीयत से भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल कराकर अपना कर्तव्य निभाया। उन्होंने कहा कि आज भारत, हर तरह से वैश्विक विकास और शांति के पक्ष में खड़ा है, इसी भावना के साथ आज भारत, ग्लोबल साउथ की भी आवाज बना है। भारत का मत है कि ग्लोबल साउथ ने अतीत में बहुत कुछ भुगता है। हमने अतीत में अपने स्वभाव औऱ संस्कारों के मुताबिक प्रकृति को सुरक्षित रखते हुए प्रगति की। लेकिन कई देशों ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हुए अपना विकास किया। आज जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी कीमत, ग्लोबल साउथ के देशों को चुकानी पड़ रही है। इस असंतुलन से दुनिया को निकालना बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहा, “भारत हो, गयाना हो, हमारी भी विकास की आकांक्षाएं हैं, हमारे सामने अपने लोगों के लिए बेहतर जीवन देने के सपने हैं। इसके लिए ग्लोबल साउथ की एकजुट आवाज़ बहुत ज़रूरी है। ये समय ग्लोबल साउथ के देशों के नवजागरण का