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408 घंटों में 21 एजेंसियों वाले ‘वॉर रूम’ ने ऑगर से लेकर रैट माइनर्स को दी थी झटपट मंजूरी

नई दिल्ली/देहरादून, 28 नवंबर: उत्तरकाशी की सिल्क्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए केंद्र सरकार में एक ऐसा ‘वॉर रूम’ तैयार किया गया था, जिसने 408 घंटे तक लगातार काम किया है। सरकारी महकमों को लेकर वह सोच, यहां तो किसी भी योजना से जुड़ी फाइलें, कछुआ गति से आगे बढ़ती हैं, सिल्क्यारा सुरंग के मामले में बदल गई। केंद्र और राज्य सरकार को मिलाकर 21 से अधिक एजेंसियां, रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी रहीं। ये सभी एजेंसियां, प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ मिलकर त्वरित गति से जरूरी निर्णय लेती रहीं। बात चाहे अमेरिकी ड्रिल मशीन ‘ऑगर’ को सुरंग में उतारने की हो या विपरित परिस्थितियों में खुदाई के लिए ‘रैट माइनर्स’ की मदद लेना, ऐसे किसी भी मामले को हरी झंडी, महज साठ मिनट से भी कम समय में दे दी जाती थी। खास बात ये रही कि इन एजेंसियों के बीच में जो तालमेल रहा, वह एक उदाहरण बन गया है।

केंद्र सरकार में इस टनल रेस्क्यू ऑपरेशन से जुड़े रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, देखिये ये अभी तक का एक बड़ा अभियान था। यहां पर 41 लोगों की जिंदगी का सवाल था। जब मजदूरों के सुरंग में फंसने की सूचना मिली थी, पीएमओ और गृह मंत्रालय तभी सक्रिय हो गया था। बिना किसी देरी के केंद्रीय एजेंसियों और राज्य सरकार के विभागों के बीच बैठक हुई। महज 24 घंटे के भीतर केंद्रीय ‘वॉर रूम’ तैयार कर दिया गया। इसके बाद 41 मजदूरों को बचाने की जंग शुरू हो गई। पीएम मोदी के प्रधान सचिव पीके मिश्रा और कैबिनेट सेक्रेटरी राजीव गौबा, गृह सचिव अजय भल्ला, एनडीएमए के सदस्य सैयद अता हसनैन, एनडीआरएफ चीफ और उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव समेत दर्जनभर से अधिक विभागों के हेड ने सुरंग से 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने की योजना बनाई।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, सीमा सड़क संगठन (बीआरओ), टेलीकम्यूनिकेशन विभाग, आर्मी, एयरफोर्स, तेल और प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड, सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड, रेल विकास निगम लिमिटेड, राष्ट्रीय राजमार्ग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर विकास निगम लिमिटेड, एनआईडीएम और टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड जैसी एजेंसियों के प्रमुखों के साथ बातचीत की गई। उक्त सभी एजेंसियों को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गईं। कई एजेंसियों को एक टीम के तौर पर जरूरी निर्णय लेने के लिए फ्री हैंड दिया गया।

यही वजह रही कि अमेरिकी ड्रिल मशीन ‘ऑगर’ को सुरंग तक लाने में देरी नहीं हुई। सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए युद्ध स्तर पर काम शुरू हुआ। जब ‘ऑगर’ मशीन टूटy गई, तो सेना को रेस्क्यू के काम में लगाया गया। इसके बाद भूवैज्ञानिकों, जियो-मैपिंग विशेषज्ञ और एनआईडीएम के विशेषज्ञों से बात की गई। खास बात ये रही कि जब अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ अर्नाल्ड डिक्स को बुलाने की बात हुई, तो इस प्रपोजल को चंद मिनट में मंजूरी दे दी गई। अर्नाल्ड डिक्स के साथ छह अन्य टनल एक्सपर्ट भी मौके पर पहुंचे थे। ऑस्ट्रेलियाई नागरिक अर्नाल्ड डिक्स, जिनेवा स्थित इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। पेशे से वह एक बैरिस्टर, वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैं। इतना ही नहीं, वॉर रूम की तरफ से ऑस्ट्रेलियाई विशेषज्ञ को भी फ्री हैंड दिया गया। उनकी मदद के लिए सभी एजेंसियों को लगाया गया।

सीनियर कंसलटेंट, एनआईडीएम विनोद दत्ता भी मानते हैं कि इस अभियान में लगी तमाम एजेंसियों के बीच गजब का तालमेल रहा है। सुरंग तक मशीन कैसे आएंगी। हैवी व्हीकल के लिए सड़क मार्ग को तैयार कौन करेगा, इस तरह के दूसरे कार्यों के लिए वॉर रूम की तरफ से राज्य स्तर पर एक टीम गठित की गई थी। एनडीएमए के सदस्य सैयद अता हसनैन ने मंगलवार को कहा, सेफ्टी के साथ रेस्क्यू अभियान चलाया गया है। बहुत बाधाएं आई हैं, लेकिन इसके बावजूद हम कामयाबी के करीब पहुंच गए हैं। पीएमओ ने सभी एजेंसियों और उनके विशेषज्ञों का हौसला बढ़ाया है। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के 150 से ज्यादा कर्मियों की टीम दिन-रात लगी रही।

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