नई दिल्ली, 14 जुलाई (संवाददाता परमहंस) : भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित “वन नेशन, वन इलेक्शन” योजना को देशभर में एक ऐतिहासिक और सुधारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस पहल के तहत लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने का प्रस्ताव है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे चुनावों पर होने वाला भारी खर्च कम होगा और प्रशासनिक मशीनरी पर पड़ने वाला दबाव भी घटेगा। एक अनुमान के अनुसार, बार-बार होने वाले चुनावों की तुलना में यदि सभी चुनाव एक साथ कराए जाएं तो सरकार ₹10,000 करोड़ से अधिक की बचत कर सकती है।
इसके अतिरिक्त, बार-बार आचार संहिता लागू होने से नीति-निर्माण प्रक्रिया प्रभावित होती है। एक साथ चुनाव से सरकारें नीतिगत निर्णयों को अधिक सुचारू रूप से लागू कर सकेंगी, जिससे विकास कार्यों में तेजी आएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस विचार का समर्थन करते हुए कहा, “बार-बार चुनाव से देश की विकास प्रक्रिया बाधित होती है। यह पहल लोकतंत्र को मजबूत बनाएगी।”
“वन नेशन, वन इलेक्शन: क्या यह लोकतांत्रिक विविधता को नुकसान पहुंचाएगा?”
जहाँ एक ओर सरकार “वन नेशन, वन इलेक्शन” को लोकतंत्र के लिए सुधारात्मक कदम बता रही है, वहीं विपक्षी दलों और कई संवैधानिक विशेषज्ञों ने इस योजना पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
विपक्षी नेताओं का तर्क है कि भारत जैसे विविध और संघीय ढांचे वाले देश में एक साथ चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं है। हर राज्य की अपनी राजनीतिक स्थिति, समस्याएं और प्राथमिकताएं होती हैं, और एक ही समय पर चुनाव होने से क्षेत्रीय मुद्दों पर राष्ट्रीय विमर्श हावी हो सकता है।
इसके अलावा, कई दलों ने इसे संविधान की आत्मा के खिलाफ बताया है। उनका कहना है कि अगर किसी राज्य सरकार की अवधि खत्म होने से पहले वह गिर जाए, तो क्या पूरे देश के चुनाव फिर से होंगे? या उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा? इन सवालों का कोई स्पष्ट समाधान अभी सामने नहीं आया है।
विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया है कि इस योजना का उद्देश्य राजनीतिक लाभ लेना है, न कि लोकतंत्र को मजबूत करना