मार्सिले/नई दिल्ली, 12 फरवरी: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ बुधवार तड़के बंदरगाह शहर मार्सिले पहुंचे। दोनों यहां एक नए भारतीय वाणिज्य दूतावास का उद्घाटन करेंगे और विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि भी देंगे।

श्री मोदी ने कहा कि मार्सिले का विशेष महत्व है क्योंकि यहीं पर स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर ने ब्रिटिश अधिकारियों की कैद से भागने का साहसी प्रयास किया था। उन्होंने उस समय के फ्रांसीसी कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया जिन्होंने मांग की थी कि उन्हें ब्रिटिश हिरासत में नहीं सौंपा जाए।

प्रधानमंत्री ने ‘एक्स’ पर पोस्ट में कहा, “राष्ट्रपति मैक्रों और मैं थोड़ी देर पहले मार्सिले पहुंचे। इस यात्रा में भारत और फ्रांस को और जोड़ने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण कार्यक्रम होंगे। जिस भारतीय वाणिज्य दूतावास का उद्घाटन किया जा रहा है, वह लोगों के बीच संबंधों को और गहरा करेगा। मैं प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि भी अर्पित करूंगा।”

उन्होंने कहा, “भारत की स्वतंत्रता की खोज में यह शहर विशेष महत्व रखता है। यहीं पर महान वीर सावरकर ने कैद से भाग निकलने का साहसी प्रयास किया था। मैं मार्सिले के लोगों और उस समय के फ्रांसीसी कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मांग की कि उन्हें ब्रिटिश हिरासत में नहीं सौंपा जाए। वीर सावरकर की वीरता पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।”

गौरतलब है कि वीर सावरकर को जुलाई 1910 में नासिक षडयंत्र मामले में लंदन में गिरफ्तार किया गया था और मुकदमे के लिए जहाज से भारत ले जाया जा रहा था। जब जहाज मार्सिले में रुका तो वह समुद्र में कूद गए और जहाज से गोलीबारी का सामना करते हुए तैरकर फ्रांसीसी तट पर पहुंच गए।

उस समय वीर सावरकर अपनी कानून की पढ़ाई के लिए ब्रिटेन में थे और उन्होंने खुद को इंडिया हाउस और फ्री इंडिया सोसायटी जैसे संगठनों से जोड़ लिया था। उन्होंने पूर्ण भारतीय स्वतंत्रता की वकालत करने वाली पुस्तकें भी प्रकाशित कीं।

ब्रिटिश सरकार ने आदेश दिया कि इंडिया हाउस के साथ उनके संबंधों के कारण उन्हें भारत प्रत्यर्पित किया जाए। भारत की वापसी की यात्रा के दौरान वीर सावरकर ने स्टीमशिप एसएस मोरिया से भागने और फ्रांस में शरण लेने का प्रयास किया। इस दौरान जहाज मार्सिले के बंदरगाह पर खड़ा था। फ्रांसीसी बंदरगाह अधिकारियों ने हालाँकि, उन्हें ब्रिटिश सरकार को वापस सौंप दिया।

वीर सावरकर के भागने के प्रयास से फ्रांस और ब्रिटेन के बीच राजनयिक तनाव पैदा हो गया। फ्रांस ने आरोप लगाया कि उनकी वापसी ने ‘अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन’ किया, क्योंकि उचित प्रत्यर्पण प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था।

मामला स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में प्रस्तुत किया गया, जिसने 1911 में फैसला सुनाया कि हालांकि उनकी गिरफ्तारी में ‘अनियमितता’ थी, ब्रिटेन उन्हें फ्रांस को वापस करने के लिए बाध्य नहीं था।

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