नई दिल्ली, 5 जुलाई ( संवाददाता परमहंश उपाध्याय): महाराष्ट्र में भाषा को लेकर छिड़ा विवाद एक बार फिर सुर्खियों में है। राज्य के कुछ हिस्सों में हिंदी और मराठी भाषा के उपयोग को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है। हाल ही में नागपुर और पुणे में कुछ बोर्डों पर हिंदी में लिखे नामों को लेकर स्थानीय संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए।

वहीं दूसरी ओर, गैर-मराठी भाषी लोगों द्वारा हिंदी के पक्ष में आवाज़ उठाई जा रही है। इस भाषाई संघर्ष ने सामाजिक सौहार्द्र को चुनौती दी है और राज्य में क्षेत्रीय पहचान बनाम राष्ट्रीय पहचान की बहस को फिर से हवा दी है। मामले की पृष्ठभूमि महाराष्ट्र में मराठी भाषा को राज्य की राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। लेकिन मुंबई जैसे महानगरों में हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं का प्रयोग होता है। मराठी संगठनों का आरोप है कि शहरी इलाकों में मराठी भाषा को दरकिनार किया जा रहा है, जिससे मराठी संस्कृति और पहचान खतरे में पड़ रही है।

संविधानिक प्रावधान क्या कहते हैं? भारतीय संविधान भाषाई विविधता को मान्यता देता है और भाषाओं की रक्षा व संवर्धन का अधिकार देता है

अनुच्छेद 344 और 351: केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु प्रोत्साहित करता है, लेकिन अन्य भारतीय भाषाओं के सम्मान की बात भी करता है।

अनुच्छेद 19(1)(a): प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है, जिसमें अपनी पसंदीदा भाषा में बोलने और लिखने की आज़ादी शामिल है।

 अनुच्छेद 29 और 30 :अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित रखने का अधिकार प्राप्त है।

अनुच्छेद 345: राज्य सरकार को यह अधिकार देता है कि वह अपनी एक या एक से अधिक भाषाओं को राजभाषा के रूप में चुन सकती है। सरकार का रुख राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर संतुलित रवैया अपनाने की कोशिश की है।

मुख्यमंत्री ने बयान जारी कर कहा, “मराठी हमारी आत्मा है, लेकिन महाराष्ट्र की विविधता हमारी ताकत है। सभी भाषाओं का सम्मान होना चाहिए।” राज्य सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह भाषा बोर्डों से संबंधित नीति पर पुनर्विचार कर सकती है। जनता की राय बंटी हुई जहां एक ओर मराठी भाषा के समर्थक इसे सांस्कृतिक अस्मिता का सवाल मानते हैं, वहीं दूसरे गुट का कहना है कि हिंदी या अन्य भाषाओं के प्रयोग को रोकना संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन है। निष्कर्ष भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान की भी वाहक होती है।

महाराष्ट्र जैसे बहुभाषी राज्य में संतुलन बनाए रखना सरकार, समाज और हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है। संवैधानिक ढांचे के तहत सभी भाषाओं को सम्मान देना ही इस विवाद से निकलने का रास्ता हो सकता है । सलाह वहां काम करने वाले अगर आप महाराष्ट्र में काम करते है तो थोड़ी बहुत मराठी सीख लेने में कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि आप और उन लोगों से जुड़ पाएंगे । आप हिन्दी बोलिए लेकिन उनके भाषा का भी सम्मान कीजिए।

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