मन अत्यंत शक्तिशाली है। यदि सद्विचारों के साथ आगे बढ़ा जाए तो मन के द्वारा जीवन में व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं। जेम्स एलेन ने एक पुस्तक में कहा भी है कि अच्छे विचार बीजों से सकारात्मक और स्वास्थ्यप्रद फल सामने आते हैं। इसी तरह बुरे विचार बीजों से नकारात्मक और घातक फल आपको वहन करने ही पड़ेंगे। जिस प्रकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के दो प्रकार-बाहरी और आंतरिक होते हैं ठीक उसी प्रकार मन के भी चार प्रकार होते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने मन की चार प्रवृत्तियां बताई हैं।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि व्यक्ति अक्सर वर्तमान मन, अनुपस्थित मन, एकाग्र मन और दोहरे मन वाले होते हैं। जो व्यक्ति जीवन में अधिकतर वर्तमान मन के साथ आगे बढ़ते हैं वे जीवन में सफलता पाते हैं। इसी तरह अनुपस्थित व दोहरे मन वाले व्यक्ति भटकते रहते हैं। वर्तमान मन यानी अभी क्या चल रहा है, उसे देखने वाला मन। अनुपस्थित मन से अभिप्राय है कि मन का कार्य के समय वहां पर न होकर कहीं ओर होना। एकाग्र मन में व्यक्ति एक ही सत्य और कार्य के लिए ग्रहणशील होता है। दोहरे मन में व्यक्ति के दो मन बन जाते हैं। एक ओर उसका मन कह रहा होता है कि किसी काम को करना चाहिए तो दूसरा मन कह रहा होता है कि अभी रुकना चाहिए। वर्तमान और एकाग्र मन के साथ काम करने वाले व्यक्ति असाधारण सफलता प्राप्त करते हैं।
दार्शनिक मार्ले का मानना है कि विश्व के हर काम में यश प्राप्त करने के लिए एकाग्रचित्त होना आवश्यक है। दोहरा और अनुपस्थित मन व्यक्ति को लक्ष्य व कार्य से भटका देता है। यदि मन कहीं ओर होता है यानी अनुपस्थित होता है तो महत्वपूर्ण निर्णय और बातें भी समझ में नहीं आती हैं। मन के कारण ही पूरा शरीर कार्य करता है। कई व्यक्तियों के मन में प्रारंभ से ही यह बात बैठ जाती है कि वह किसी विशेष काम को नहीं कर सकते। मसलन कई लोगों को लगता है कि वे अपने जीवन में कभी मंच पर नहीं बोल सकते हैं तो कई लोगों को गणित विषय हौवा लगता है। इसी तरह कई लोगों को यह संकोच होता है कि अंग्रेजी न बोल पाने के कारण वे कामयाबी नहीं पा सकते। यह स्थिति उस समय उत्पन्न होती है जब व्यक्ति मन की शक्ति को समझ नहीं पाता और मन में दोहरी स्थितियां उत्पन्न कर लेता है।