नई दिल्ली, 16 जुलाई: प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) अनिल चौहान ने बुधवार को कहा कि हाल के वैश्विक संघर्षों में यह बात सामने आई है कि कैसे ड्रोन ‘‘युद्ध की रणनीति को अपने आकार और मूल्य के अनुपात में असमान रूप बदल सकते हैं’’। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ड्रोन और काउंटर-अनमैन्ड एरियल सिस्टम (सी-यूएएस) (मानवरहित हवाई रोधी प्रणाली) में आत्मनिर्भरता भारत के लिए ‘‘रणनीतिक रूप से अनिवार्य’’ है।

यहां ‘मानेकशॉ सेंटर’ में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जनरल चौहान ने यह भी कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने दिखाया है कि क्यों स्वदेशी रूप से विकसित मानव रहित हवाई प्रणालियां (यूएएस) और सी-यूएएस ‘‘हमारे क्षेत्र और हमारी जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण हैं’’।

‘यूएवी और सी-यूएएस के क्षेत्र में विदेशी ओईएम से वर्तमान में आयात किए जा रहे महत्वपूर्ण घटकों के स्वदेशीकरण’ विषय पर थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर ज्वाइंट वारफेयर स्टडीज’ के सहयोग से एकीकृत रक्षा कार्मिक मुख्यालय (एचक्यू-आईडीएस) की मेजबानी में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की जा रही है।

रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि यह आयोजन हाल में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष की पृष्ठभूमि में हो रहा है जिसमें ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भी शामिल है। इस संघर्ष ने यूएवी और सी-यूएएस के सामरिक महत्व और परिचालन प्रभावशीलता को रेखांकित किया।

उद्घाटन सत्र में अपने मुख्य संबोधन में सीडीएस ने कहा कि ड्रोन वास्तविकता का प्रमाण हैं और हाल के संघर्षों में उनके व्यापक उपयोग ने दिखाया है कि कैसे ड्रोन युद्ध की रणनीति को अपने आकार और मूल्य के अनुपात में असमान रूप बदल सकते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ड्रोन का असमान उपयोग बड़े प्लेटफॉर्म को संवेदनशील बना रहा है और सेनाओं को हवाई रणनीतिक सिद्धांत, सी-यूएएस के विकास और इसके अनुकूल युद्ध कौशलों के वैचारिक पहलुओं पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करता है।’’

सीडीएस ने यह भी कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान ने 10 मई को हथियार रहित ड्रोन का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि उनमें से कोई भी वास्तव में भारतीय सैन्य या नागरिक बुनियादी ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सका।’’

जनरल चौहान ने कहा, ‘‘उनमें से अधिकतर को मार गिराया गया जबकि कुछ को जस की तस अवस्था में बरामद किया गया।’’

सीडीएस ने जोर देकर कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने ‘‘हमें दिखाया है कि हमारे भूभाग और हमारी जरूरतों के लिए स्वदेशी रूप से विकसित यूएएस, सी-यूएएस क्यों महत्वपूर्ण हैं’’।

आत्मनिर्भरता के सिद्धांत को रेखांकित करते हुए जनरल चौहान ने कहा, ‘‘हम उन आयातित विशिष्ट तकनीकों पर निर्भर नहीं रह सकते जो हमारे आक्रामक और रक्षात्मक अभियानों के लिए महत्वपूर्ण हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘विदेशी तकनीकों पर निर्भरता हमारी तैयारियों को कमजोर करती है, उत्पादन बढ़ाने की हमारी क्षमता को सीमित करती है और इसके कारण महत्वपूर्ण पुर्जों की कमी होती है।’’

इस कार्यक्रम में सैन्य अधिकारी, रक्षा विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, नीति निर्माता और निजी उद्योग के प्रतिनिधि शामिल हुए। कार्यक्रम का उद्देश्य स्वदेशीकरण के लिए एक ‘‘रणनीतिक रोडमैप’’ विकसित करना है, जिसका व्यापक उद्देश्य महत्वपूर्ण यूएवी और सी-यूएएस घटकों के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम करना है।

कार्यशाला के लिए अपने संदेश में सीडीएस ने लिखा, ‘‘सुरक्षा बलों की आमने-सामने की लड़ाई के विपरीत इस तरह के परोक्ष युद्ध में तेजी के बीच यूएवी एक परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में उभरे हैं। भारत जैसे राष्ट्र के लिए यूएवी और सी-यूएएस प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता न केवल एक रणनीतिक अनिवार्यता है, बल्कि यह भारत को अपनी नियति तय करने, अपने हितों की रक्षा करने और भविष्य के अवसरों का लाभ उठाने के लिए सशक्त बनाने के बारे में भी है।’’

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