नई दिल्ली, 25 अक्टूबर : दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बुधवार को आरोप लगाया कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण के स्रोतों का पता लगाने के लिए दिल्ली सरकार के अपनी तरह के पहले अध्ययन को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अध्यक्ष अश्विनी कुमार के आदेश पर एकतरफा रोक लगा दी गई।
राय ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि दिल्ली कैबिनेट ने जुलाई 2021 में इस अध्ययन के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी और अक्टूबर 2022 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने कहा, ”इसकी अनुमानित लागत 12 करोड़ रुपये से अधिक थी। दिल्ली सरकार ने आवश्यक उपकरणों की खरीद के लिए आईआईटी कानपुर को 10 लाख रुपये जारी किए थे।”
मंत्री ने दावा किया कि दिसंबर में डीपीसीसी अध्यक्ष का पद संभालने वाले अश्विनी कुमार ने इस साल की शुरुआत में एक ‘फाइल नोट’ बनाया था, जिसमें ”अध्ययन से जुड़े अत्यधिक खर्च” को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी। राय ने कहा कि आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों के साथ कई बैठकें करने के बाद कुमार ने 18 अक्टूबर को संस्थान के लिए शेष धनराशि जारी करने पर रोक लगाने के आदेश जारी किए, जिससे अध्ययन प्रभावी रूप से रद्द हो गया। उन्होंने कहा, ”यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया जब दिल्ली को प्रदूषण संबंधी समस्या के समाधान के लिए वैज्ञानिक आंकड़ों की तत्काल आवश्यकता है।”
मंत्री ने दावा किया कि कुमार ने उन्हें या कैबिनेट को अपने फैसले के बारे में सूचित नहीं किया। राय ने कहा कि उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से डीपीसीसी अध्यक्ष कुमार को उनके ”असंवेदनशील और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार” के लिए निलंबित करने का अनुरोध किया है। स्रोत विभाजन अध्ययन किसी भी स्थान पर वायु प्रदूषण में वृद्धि के लिए जिम्मेदार कारकों जैसे कि वाहनों, धूल, बायोमास जलाने और उद्योगों से उत्सर्जन की पहचान करने में मदद करता है, जिसके आधार पर प्रदूषण को रोकने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री ने कहा कि दिल्ली सरकार सर्दियों के बाद प्रमुख वैज्ञानिकों से प्रदूषण स्रोत विभाजन अध्ययन की समीक्षा करने के लिए कहेगी।