वाराणसी/नई दिल्ली, 11 सितंबर: काशी गुरुवार को बड़ा वैश्विक रणनीतिक केंद्र भी बना नजर आया जब वाराणसी में मॉरीशस के पीएम ने डिएगो गार्सिया सहित चागोस द्वीपसमूह पर अपनी बात कही। दरअसल अमेरिका और ब्रिटेन से जुड़ा यह विवाद लंबे समय से मॉरीशस ही नहीं बल्कि भारत के लिए भी चिंंता का विषय रहा है।
अमेरिका के टैरिफ को लेकर भारत से विवाद के बीच अमेरिका के अवैध कब्जे को लेकर भी काशी में उठे सवालों से अमेरिकी रणनीतिकार भी बेचैन होंगे। दरअसल यहां पर चीन की भी रणनीतिक नजर बनी हुई है। भारत को यहां पर रणनीतिक बढ़त मिली तो समुद्र में ही नहीं बल्कि दुश्मन देशों पर भी भारत को बड़ी बढ़त हासिल हो जाएगी।
वहीं साझा घोषणा पत्र जारी करने के दौरान विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने स्पष्ट किया कि मॉरीशस को एक विशेष आर्थिक पैकेज की पेशकश करने का हमारा निर्णय है। इसमें पोर्ट लुइस के बंदरगाह का विकास के साथ ही चागोस समुद्री संरक्षित क्षेत्र की निगरानी के लिए विकास और सहायता भी प्रस्तावित है।
मॉरीशस के प्रधान मंत्री डॉ. नवीनचंद्र रामगुलाम ने गुरुवार को काशी में अपने देश के हितों के लिए काशी में भारत के साथ रणनीतिक संबंधों पर भी मुखर दिखे। उन्होंने कहा कि हमें भारत से तकनीकी सहयोग की आवश्यकता है। हमें निगरानी की आवश्यकता है। हमारे पास निगरानी की क्षमता नहीं है। इसके साथ ही, हम डिएगो गार्सिया सहित चागोस का दौरा करके वहां अपने देश का झंडा भी लगाना चाहते हैं। हम एक जहाज चाहते थे। ब्रिटिश ने हमें पेशकश की, लेकिन हमने कहा कि हम भारत से एक लेना पसंद करेंगे क्योंकि प्रतीकात्मक रूप से यह बेहतर होगा। दरअसल डिएगो गार्सिया सहित चागोस भी भारत की सुरक्षा के लिहाज से बड़ा केंद्र है जो मॉरीशस का हिस्सा होने के बाद भी ब्रिटेन और अमेरिका के कब्जे में है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मारीशस के पीएम नवीनचंद्र रामगुलाम की मुलाकात के दौरान गुरुवार को काशी बड़ा वैश्विक रणनीतिक केंद्र भी बना नजर आया। नवीनचंद्र रामगुलाम ने संयुक्त संबोधन में चागोस के साथ डिएगो गार्सिया पर भी अपनी संप्रभुता स्थापित करने के लिए भारत से सहयोग मांगा। पिछले वर्ष ब्रिटेन ने हिंद महासागर में स्थित 58 द्वीपों वाले चागोस द्वीप समूह की संप्रभुता मारीशस को सौंपने की घोषणा की।
हालांकि, इसमें रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण डिएगो गार्सिया द्वीप पर अपनी संप्रभुता बनाए रखी है। डिएगो गार्सिया को अमेरिका ने अपना सैन्य अड्डा बना रखा है। इसकी स्थिति एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के बीच सैन्य संचालन के लिए महत्वपूर्ण केंद्र बनाती है। यह सैन्य अड्डा समुद्री सुरक्षा और हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन को रणनीतिक बढ़त दिलाता है। मारीशस के प्रधानमंत्री का भारत में डिएगो गार्सिया पर अपने देश का झंडा लहराने की इच्छा जताना अमेरिका और ब्रिटेन दोनों को ही बेचैन करेगा। नवीनचंद्र रामगुलाम ने अपने संबोधन में समुद्री निगरानी के लिए भारत से सहयोग मांगा। उन्होंने कहा कि हम एक जलयान चाहते हैं। इसके लिए ब्रिटेन ने हमें पेशकश की थी लेकिन हम भारत से लेना पसंद करेंगे।
चागोस और डिएगो गार्सिया का सामरिक महत्त्व
1715 में चागोस द्वीपसमूह के साथ मारीशस में उपनिवेश स्थापित करने वाले फ्रांसीसी पहले लोग थे। फ्रांस 18वीं शताब्दी के अंत में यहां के नारियल बागानों में कार्य करने के लिए अफ्रीका और भारत से दास श्रमिकों को ले आया। नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के बाद व 1814 में ब्रिटेन ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया। 1965 में ब्रिटेन ने ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (बीआइओटी) का गठन किया, जिसमें चागोस द्वीप समूह एक केंद्रीय हिस्सा था। प्रशासनिक कारणों से चागोस मारीशस का हिस्सा था, जो हिंद महासागर में एक अन्य ब्रिटिश उपनिवेश था। 1968 में मारीशस को स्वतंत्रता प्राप्त हुई तो चागोस ब्रिटेन के पास रहा। 1966 में ब्रिटेन ने सैन्य उद्देश्यों के लिए बीआइओटी का उपयोग करने के लिए अमेरिका से समझौता किया।
इसके बाद डिएगो गार्सिया में बागान बंद कर दिए गए और किसी भी व्यक्ति के लिए बिना परमिट वहां प्रवेश करना या रहना गैरकानूनी हो गया। 1986 में डिएगो गार्सिया पूर्णतः कार्यशील सैन्य अड्डा बन गया। 9/11 हमलों के बाद अमेरिका के विदेश में चलाए गए ‘आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध’ अभियानों में यह प्रमुख स्थल था। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने 2019 में छह महीने के भीतर ब्रिटेन को इस क्षेत्र से अपने औपनिवेशिक प्रशासन को बिना शर्त हटाने के लिए कहा गया। इस वर्ष मई में इस पर मॉरीशस को अधिकार मिला है।
अपने आदेश में आइसीजे ने कहा कि 1965 में मारीशस की स्वतंत्रता से पहले चागोस को उससे अलग करना अवैध था। इस समझौते से मारीशस को डिएगो गार्सिया द्वीप को छोड़कर शेष द्वीपसमूह पर पूर्ण संप्रभुता प्राप्त हो गई है। मारीशस अब डिएगो गार्सिया को छोड़कर चागोस द्वीपसमूह पर लोगों को पुनर्स्थापित कर सकता है, जहां ब्रिटेन ने अमेरिकी नौसैनिक अड्डे के लिए 2,000 द्वीपवासियों को बेदखल कर दिया था।