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राजधानी के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में गमगीन माहौल में मनाया गया यौम-ए-आशूरा

-मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जगह-जगह से निकाला गया अजादारी का जुलूस

नई दिल्ली, 29 जुलाई : राजधानी दिल्ली के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मुहर्रम की 10वीं तारीख (यौम-ए-आशूरा) को गमगीन माहौल में मनाया गया। इस दौरान विभिन्न क्षेत्रों में ताजियों का जुलूस निकालकर मातम भी किया गया।

ऐतिहासिक जामा मस्जिद और उसके आसपास के इलाकों से निकला अज़ादारी का जुलूस काला महल, चितली कबर, मटिया महल होते हुए जामा मस्जिद, चावड़ी बाजार, अजमेरी गेट, पहाड़गंज, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, कनॉट प्लेस, जनपथ, जामा मस्जिद, तुगलक रोड, सफदरजंग मदरसा होते हुए कर्बला ज़ोरबाग पर जाकर संपन्न हुआ। जुलूस में पुरानी दिल्ली के विभिन्न मोहल्लों के ताज़िए शामिल हुए। इस अवसर पर दरगाह पंजा शरीफ कश्मीरी गेट में मजलिस-ए-अज़ा का आयोजन किया गया। इसमें मरसिया ख्वानी और मातम किया गया। यहां पर बड़ी तादाद में शिया मुसलमानों ने भाग लेकर शोक व्यक्त किया।

इसके अलावा यमुनापार के विभिन्न क्षेत्रों सीलमपुर, मुस्तफाबाद, जाफराबाद, वेलकम, सीमापुरी, नंदनगरी, शाहदरा, झील, खुरेजी, गीता कॉलोनी, लक्ष्मी नगर, शकरपुर, त्रिलोकपुरी, कल्याणपुरी, मयूर विहार आदि क्षेत्रों में ताजियों के साथ मातमी जुलूस निकाले गए। दिल्ली का सबसे प्राचीन माना जाने वाला लकड़ी का ताजिया दरगाह हजरत निजामुद्दीन से हर साल की तरह इस बार भी रंग-रोगन करके जुलूस की शक्ल में निकाला गया। यह ताजिया बादशाह तैमूर लंग के जमाने का बताया जाता है। इस ताज़िए को कर्बला जोरबाग पर जाकर दफन किया गया।

दक्षिण दिल्ली के मदनगीर, दक्षिणपुरी, खानपुर, संगम विहार, हमदर्द नगर, तिगड़ी, बत्रा आदि क्षेत्रों से भी ताजियों और मातमी जुलूस निकाला गया और ताजियों को दक्षिणपुरी के कब्रिस्तान में दफन किया गया। ओखला के मदनपुर खादर, बटला हाउस, जामिया नगर, अबूल फजल एनक्लेव आदि में भी ताजियों का जुलूस निकाला गया। हौज रानी, मालवीय नगर, महरौली में भी ताजियों का जुलूस निकाला गया।

मुहर्रम (यौम-ए-आशूरा) का दिन इस्लामी इतिहास में गमों से भरा है। इस दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला के मैदान में उस समय के शासक यजीद की सेना ने उनके 72 साथियों के साथ शहीद कर दिया था। मुसलमान इसी की याद को ताजा करने के लिए हर साल मुहर्रम मनाते हैं। मुहर्रम की दसवीं तारीख को यौम-ए-आशूरा कहा जाता है। इस दिन मातम व मरसिया ख्वानी करके हजरत इमाम हुसैन-हसन और उनके साथियों की कुर्बानी को याद किया जाता है।

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